गरीबी को मुंह चिढाती योजना आयोग की रिपोर्ट

गरीबी का अर्थ हर किसी के लिए अलग – अलग होता है। वैसे भी अपने देश में खुद को गरीब कहना विनम्रता का प्रतीक रहा है। हमारे यहाँ गरीबी के महिमामंडन की एक परम्परा रही है। दान – पुण्य के द्वारा अपना परलोक सुधारने या मुक्ति की चाह रखने वालों के लिए गरीबी कुछ और ही होती है, लेकिन इन सब बातो को छोड़ दे तो गरीबी एक कड़वी हकीकत है।

गरीबी किसी दूसरी दुनिया की विचित्र कथाओ से निकले पात्र नहीं बल्कि हमारे अर्थव्यवस्था का एक नतीजा भी है। अनेक अर्थशास्त्रियो ने गरीबी के कारणों और इससे निजात के तरीके खोजने में अपना सर काफी खपाया है लेकिन ऐसी जादू की छडी नहीं मिली जिससे गरीबी को रातों – रात भगाया जा सके। देखा जाए तो योजना आयोग के सदस्य बीती बात कर रहे है। दरअसल गरीबी रेखा तय करने का योजना आयोग के पास एक रेडीमेड तरीका है। वह महंगाई के आकड़ो और खर्च के हिसाब – किताब को जोड़ – घटाकर एक मानक तैयार करता है उसी के अनुरूप गरीबी की परिभाषा तय करता है जबकी गरीबी इन्ही से तय नहीं होती है।

जाहिर है की बिहार में गुजारे के लिए एक आदमी को जितने रुपये चाहिए मुंबई में उतने में काम नहीं चलने वाला है। पर इन सबकी अनदेखी करते हुए योजना आयोग ने पिछली बार एक मानक तय किया था की शहरों 20 सभी और गांवो सभी 15 रुपये रोज खर्च करने वाले गरीब नहीं है। महंगाई को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को गरीबी रेखा का नया मानक तय करने को कहा तो हेर-फेर के साथ उसने एक नया मानक दिया है की शहरों सभी 32 और गावो सभी 26 रुपये रोज खर्च करने वाले लोग गरीबी रेखा के ऊपर है एक तरह महंगाई सुरक्षा की तरह बढती जा रही है, दूसरी तरफ योजना आयोग का मानना ​​है की अनाज 5 पर 30 रुपये पैसे दाल 1 पर रुपये दो पैसे, दूध पर 2 रुपये 33 पैसे रोजाना तथा स्वाथ्य 50 पर रुपये से भी कम महीना खर्च करने वाले लोग गरीबी रेखा के ऊपर है। यह कैसी बिडम्बना है की एक ओर अमीरों की संख्या बढ़ रही है। दूसरी ओर गरीबी को विकास की मुख्य धारा में लाये बगैर उनकी संख्या घटाने का काम हो रहा है।

एक आंकड़ो के अनुसार अरब 21 करोड़ जनसंख्या वाले इस देश के गरीब 44 प्रतिशत से भी ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते है यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा की जिस गति से महंगाई, बेरोजगारी, जनसंख्या बढ़ती गई है। आजादी से लेकर अब तक हर सरकार गरीबी की रिपोर्ट लाई है इस समय 121 करोड़ जनसंख्या में से 84 करोड़ लोग गरीब है। ये आंकडे चौकाने वाले जरुर हैं। लेकिन वास्तविकता से कहां मुंह मोड़ा जा सकता है जब आजाद देश  जैसे – जैसे देश विकास के मार्ग पर बढ़ रहा है वैसे – वैसे गरीबी की खाई कम होने के बजाय बढती जा रही है। अब सवाल उठता हा की क्यों? अर्थ शास्त्रियों कामानना ​​है की जनसंख्या बढ़ने से गरीबी बढ़ती है लेकिन चीन, अमेरिका की जनसंख्या भी कम नहीं है, जहां अमेरीका की जनसंख्या 22 35 करोड़ लाख है वहाँ पर इतनी गरीबी नहीं है जितनी भारत में, वहां पर पोस्टेड साक्षरता दर भी यहाँ के अपेक्षा ज्यादा है।

योजना आयोग कहता है की शहरी 965 सभी क्षेत्र रुपये और ग्रामीण क्षेत्र सभी 781 रुपये प्रतिमाह आय वाला व्यकित गरीब श्रेणी सभी नहीं आता है जबकी सच्चाई ये है की 100 रुपये दैनिक आय वाले नौकरीपेशा, मजदूरो को बड़ी मुश्किल से दो जून की रोटी मिलती है। सरकार द्वारा हर वर्ष नई – नई योजना का लाभ लाभर्थियो तक नही पहुंचता है कारण सारी योजनाये बिचौलिय के पास चला जाना। यानी व्यवस्था खरबपति योजना कंगाल राजीव गाधी ने 1984
में कहा था की अगर किसी कार्य को करने के 1 लिए रुपये भेजा जाता है तो 15 पैसे ही पहुंचता है। कारण दिन – प्रतिदिन बड़े – बड़े घोटालो का उजागर होना और योजनाओं का पैसा राजनेताओं के जेब में चला जाना। हर बार हम चीन अमेरिका से तुलना करते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं की वहां की व्यवस्था काफी
सुद्रढ़ है। हम लखपति तो नहीं बन सके लेकिन कंगालपति जरुर बन गए हैं।

सवाल ये उठता है की वल्रर्ड बैंक के आकड़ो में भारतीय गरीबी का ग्राफ उठता जा रहा है। तो इसके जिम्मेदार किसे ठहराया जाय? गरीबी में भारत ने सबसे गरीब माने जाने वाले सहारा अफ्रीका को भी छोड़ दिया है। चीन की बराबरी हमेशा होती रहती है लेकिन चीन में देश की तुलना में आधे से भी कम है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालो की 42 करोड़ संख्या के आस पास है। पश्चिमी देशो में गरीबी के मानक अलग है लेकिन गरीबी तो गरीबी है
चाहे जहां की हो।  चुनाव के समय सबसे ज्यादा बिकाऊ ये गरीब ही होते है!

हांलाकि इस तथ्य की अभी उपेछा नहीं की जा सकती हाल ही के दशको में बड़ी संख्या में लोगो को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में सफलता मिली है। मानव संसाधन भारत की बहुमूल्य सम्पदा है। तथापि मानव संसाधन तभी उपयोगी हो सकता है जब रोटी, शिक्षा, कपड़ा, मकान स्वाथ्य, रोजगार तथा उत्तम प्राकृतिक और सामाजिक परिवेश जैसी बुनियादी जरूरते सबके लिए पूरी हो।यदि देश में मानव संसाधन का बहुत बड़ा भाग गरीब है तो कोई भी देश सम्रध्द नहीं हो सकता है।

अम्बरीश द्विवेदी

इंडिया हल्ला बोल

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