आइटम गीत बना फिल्म का मुख्य हथियार

धरती पर मनुष्य का उद्भव एक मनोरंजक प्राकृतिक  घटना क्रम है और मनुष्य अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक मनोरंजन ही करता रहता है। अगर मनोरंजन के मामले में हम बात करे सिनेमा की तो, सिनेमा को मनोरंजन के एक सशक्त माध्यम के तौर पर देखा जाता है। आज के दौर में फिल्मो से अच्छे  गीतगायब होते जा रहे है और उनका स्थान आइटम गीतों ने ले लिया है।

पहले मुजरा गीत, डिस्को गीत बोनस के रूप में परोसे जाते थे और दर्शक गदगद हो जाते थे। लेकिन अब फिल्म का मुख्य हथियार आइटम गीत माना जा रहा है। फिल्मो में बढ़ते आइटम गीतों की भरमार से दर्शको की दुनिया ही बदल गईहै। हर निर्देशक – निर्माता बिना आइटम गीतों के फिल्मो का निर्माण नहीं कर रहे है। इन आइटम गीतों को किसी सेक्सी छरहरी बदन वाली लडकियों पर फिल्माया जाता है। ताकि दर्शक इन गीतों का खूब मजा ले सके। शायद इस का कारण जो दिखता है वह बिकता है वाली नीति पर हमारे निर्माता – निर्देशक आइटम गीत को अच्छे गीत के स्थान पर परोस रहे है। ताकि उनकी फिल्म बाक्स आफिस पर धमाल कर सके। अगर कुछ फिल्मो को छोड़ दिया जाए तो अब बनने वाली फिल्मो में कंटेंट का काफी अभाव दिखता है। इसलिए आइटम गीतों के द्वारा ज्यादा से ज्यादा व्यवसाय करने की जद्दोजहद की जाती है।

जैसा  की माना जाता है की फिल्म संगीत का उद्भव शास्त्रीय संगीत के अलावा कव्वाली, भजन, कीर्तन तथा नाटक संगीत का वातावरण में हुआ है। कुछ गीत ऐसे भी है जो लोगो को थिरकने के लिए बाध्य  करते है। जैसे – पिया तु अब तो आ जा —- हम तुम इक कमरे में बंद हो, और चाभी खोजाये —-

लेकिन सन् 2000 से फिल्म संगीत को रिमिक्स के मलेरिया बुखार ने जकड़ रखा है। आइटम गीतों की जमीन और मजबूत हुई है।

पिछले दिनों आनंद राज आनंद डबल धमाल के अपने हीट आइटम गीत“जलेबी बाई” को लेकर काफी उत्साहित थे। कभी ‘कांटे’ के आइटम गीत ‘ माही वे’ और “इश्क समंदर” से अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करा चुके आनंद राज काफी चर्चा में रहें हैं। अभी हाल ही में आई फिल्म तीस मार खां का आइटम गीत“शीला की जवानी”, दबंग का “मुन्नी बदनाम हुई”के गीत काफी लोकप्रिय रहे है और आलम यह है की बुढो से लेकर बच्चो  तक इस गीत का असर दिखा।इन गीतोंका काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। अच्छे गीतों को ये आइटम गीत निगलतेजा रहे है। जहां ९० के दशक में फिल्मो में ऐसे गीतों को शामिल किया था जो सुनने में कानों  को प्रिय लगते थे और कुछ न कुछ उन गीतों का सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता था, लेकिन धीरे धीरे इन गीतों की धार  फिल्मो से लुप्त होती जा रही है। आज गीत केवल युवाओंको ध्यान में रख कर ही फिल्माए जाते हैं क्यों की युवा और बच्चे फिल्मो के दर्शक का बड़ा वर्ग है। सिनेमा समाज का आईना होता है, लेकिन ये किस समाज का आईना है ये सोचने का विषय है।

अम्बरीश द्विवेदी

इंडिया हल्ला बोल

 

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