होली जलाने का वैज्ञानिक कारण ?

होली पर्व पूर्ण रुप से वैज्ञानिक स्तर पर आधारित है जाड़े की ऋतु-समाप्त होती है और ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। ऋतु बदलने के कारण अनेक प्रकार के संक्रामक रोगों का शरीर पर आक्रमण होता है जैसे चेचक ,हैजा ,खसरा आदि। इन संक्रामक रोगों को वायुमण्डल में ही भस्म कर देने का यह सामूहिक अभियान होलिका दहन है पूरे देश में रात्रि – काल में एक ही दिन होली जलाने से वायुमण्डलीय कीटाणु जलकर भस्म हो जाते हैं यदि एक जगह से उड़कर ये दूसरी जगह जाना भी चाहें तो भी इन्हें स्थान नहीं मिलेगा क्योंकि प्रत्येक ग्राम और नगर में होली की अग्नि जल रही होगी।

अग्नि की गर्मी से कीटाणु भस्म हो जाते हैं जो हमारे लिए अत्याधिक लाभकारी हैं अतः वैज्ञानिक दृष्टि से भी होली का त्योहार उचित है। जलती होलिका की प्रदक्षिणा करने से हमारे शरीर में कम से कम 140 फारेनहाइट गर्मी प्रविष्ट होती है या हमें काटते हैं तो उनका प्रभाव हम पर नहीं होता बल्कि हमारे अंदर आ चुकी उष्णता से वे स्वमं नष्ट हो जाते हैं। दूसरे दिन रंगो की होली मनायी जाती हैं। रंगों का भी हमारे जीवन में बहुत लाभ है। शास्त्रारों ने टेसुआ (ढाक के फूलों का रंग) जैसे रंग को होली में उपयोग करने की मान्यता दी है।

इंडिया हल्ला बोल

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