ना निगला जाये, ना थूका जाये!

एक बै एक जाट भाई अपनी एक नई रिश्तेदारी में चल्या गया, साथ में उसका नाई भी था।

नई रिश्तेदारी थी, खातिरदारी में फटाफट गरमा-गरम हलवा हाजिर किया गया।

दोनूं सफर में थक रहे थे, भूख भी करड़ी लाग रही थी। हलवा आते ही दोनूंआं नै चम्मच भरी और मुंह में गरमा-गरम हलवा धर लिया।

ईब इतना गरम हलवा ना निगल्या जा और ना बाहर थूक्या जा। बुरा हाल हो-ग्या, आंख्यां में आंसू आ-गे।

नाई ने हिम्मत करी और बोल्या, “चौधरी, के होया?”

जाट बोल्या, “भाई, जब घर तैं चाल्या था, तै थारी चौधरण बीमार सी थी, बस उस की याद आ गी।”

नाई की आंख्यां में भी पाणी देख कै जाट बोल्या, “र, तेरै के होया?”

नाई बोल्या, “चौधरी, मन्नै तै लाग्गै सै चौधरण मर ली।”

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