HOMEMADE REMEDIES FOR KAPHA-PITTA FEVER । कफ-पित्त ज्वर के घरेलू उपचार के बारे में जानिए

HOMEMADE REMEDIES FOR KAPHA-PITTA FEVER :- जब शरीर का तापमान सामान्य तापक्रम से अधिक हो जाए तो उसे ज्वर या बुखार कहा जाता है। डॉक्टरों की माने तो अधिकतर बुखार बैक्टीरियल या वायरल इन्फेक्शन्स यानी संक्रमण होने पर होते हैं। इसमें आप टायफाइड, टांसिलाइटिस, इन्फुएन्जा या मीजल्स आदि बुखार से पीड़ित हो जाते हैं। यदि बुखार किसी इन्फेक्शन के कारण होता है तो ऐलोपौथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार रोगी को एण्टीबायोटिक दवाई दी जाती है और उसे तब तक दवा दी जाती है, जब तक इनफेक्शन समाप्त नहीं हो जाता।

पित्त बढ़ाने वाली तथा कफकारक भोजन करने पर पित्त तथा कफ पेट को दूषित कर देते हैं, इसलिए यह बुखार उत्पन्न हो जाता है। कफ-पित्त बुखार धीरे-धीरे चढ़ता है और आखिरकार गंभीर रूप धारण कर लेता है। इसके कारणों में कफ-पित्त वाली खाने-पीने की चीजों को अधिक मात्रा में सेवन करना और ज्यादा काम करना तथा गर्मियों में धूप में धूमना आदि शामिल है।

पित्त एक प्रकार का पाचक रस होता है लेकिन यह विष (जहर) भी होता है। पित्त क्षारमय (पतला रस) तथा चिकनाई युक्त लसलसा होता है तथा इसका रंग सुनहरा तथा गहरा पिस्तई युक्त होता है। पित्त का स्वाद कड़वा होता है। पाचनक्रिया में पित्त का कार्य महत्वपूर्ण होता है। यह आंतों को उसके कार्य को करने में मजबूती प्रदान करता है तथा उन्हें क्रियाशील बनाए रखता है।

पित्त शरीर के अन्य पाचक रसों को भी उद्दीप्त करता है अर्थात उनकी कार्यशीलता को बढ़ा देता है। इसके अलावा पित्त एक और भी कार्य करता है। पित्त जब पित्ताशय में होता है तो उसमें सड़न रोकने की शक्ति नहीं होती है, लेकिन आंतों में पहुंचकर खाद्य पदार्थ जल्द सड़ने से रोकता है। यदि किसी प्रकार से आंतों में पित्त का पहुंचना रोक दिया जाए तो खाद्य पदार्थ बहुत ही जल्द सड़कर गैस उत्पन्न करने लगेंगे और रोग उत्पन्न हो जायेगा।

यदि पेट में वायु बनने लगे तो पित्त का रोग और भी जल्दी होता है।कफ-पित्त ज्वर भी धीरे-धीरे चढ़ता है और अंतत: उग्न रूप धारण कर लेता है| यह ज्वर दिन के तीसरे प्रहर तथा रात के अंतिम प्रहर में हल्का पड़ जाता है| इसमें रोगी की नाड़ी धीमी चलती है| मल मटमैले रंग का आता है|

कफ-पित्त ज्वर का कारण :- कफ तथा पित्त कारक पदार्थों का अधिक सेवन करने से आमाशय में विभिन्न प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं| अन्त में इस प्रकार का बुखार बन जाता है| यह ज्वर अधिक परिश्रम करने तथा अधिक धूप-गरमी सहने के कारण भी हो जाता है|

कफ-पित्त ज्वर की पहचान :- कफ-पित्त बुखार में आंतों में जलन होती है| मुख का स्वाद कड़वा हो जाता है| भोजन ग्रहण करने में अरुचि, प्यास अधिक लगना, खांसी, कभी गरमी एवं कभी सर्दी, नींद अधिक आना, जोड़ों में दर्द, कंठ में बार-बार थूक आना, मुंह तथा गले में कफ, गले का रुंधना, कफ व पित्त रुक-रूककर निकलना आदि इस रोग के मुख्य लक्षण हैं|

कफ-पित्त ज्वर के घरेलु नुस्खे इस प्रकार हैं:- गिलोय, नीम, धनिया, लाल चन्दन और कुटकी :- गिलोय, नीम की छाल, धनिया, लाल चन्दन और कुटकी-इन सबका काढ़ा बनाकर पीने से कफ-पित्त ज्वर खत्म हो जाता है| यह अग्निदीपक है और अरुचि को कम करता है|

नीम, कालीमिर्च और शहद :- नीम की चार निबौली और चार दाने कालीमिर्च पीसकर शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करें|

गिलोय, नीम, नागरमोथा, इन्द्रजौ, सोंठ और कालीमिर्च :- गिलोय, नीम की छाल, नागरमोथा, इन्द्रजौ, सोंठ तथा कालीमिर्च – सबको बराबर की मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पिएं|

तुलसी, पीपल, लौंग और इलायची :- आठ पत्तियां तुलसी, पीपल का एक पत्ता, दो लौंग और एक अल इलायची-सबका काढ़ा बनाकर सेवन करें|

परवल, नागरमोथा, लाल चंदन, सोंठ, पित्तपापड़ा, खस और अड़ूसा :- परवल, नागरमोथा, लाल चंदन, सोंठ, पित्तपापड़ा, खस और अड़ूसा – इन सबको कूट-पीसकर काढ़ा बनाकर रात को सोने से पूर्व सेवन करें|

अदरक :- अदरक एक गांठ तथा पटोलपत्र 5 ग्राम – दोनों का काढ़ा बनाकर पीने से उल्टी, बुखार, खुजली, पित्त तथा कफ शान्त होता है|

इन्द्रजौ, पित्त्पापड़ा, धनिया, नीम और मिश्री :- इन्द्रजौ, पित्त्पापड़ा, धनिया तथा नीम की छाल का काढ़ा बनाकर मिश्री डालकर सेवन करें|

सोंठ, लाल चंदन, गिलोय, पटोलपत्र और शहद :- सोंठ, लाल चंदन, गिलोय और पटोलपत्र – सभी बराबर की मात्रा में लेकर क्वाथ या काढ़ा बनाकर ठंडा करके शहद मिलाकर सेवन करें|

कफ-पित्त ज्वर में क्या खाएं क्या नहीं :- इस रोग में कफ-पित्त पैदा करने वाले पदार्थ नहीं खाने चाहिए| इसके अलावा खट्टे-मीठे, चटपटे, खारे तथा कब्जियत वाली वस्तुएं भी नहीं ग्रहण करनी चाहिए| भूख लगने पर ही सादा एवं सुपाच्य भोजन करें| गेहूं की चपाती, तरोई, लौकी, टिण्डे आदि खाए जा सकते हैं| फलों में सेब, अनन्नास तथा पपीते का सेवन करें|  

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