ज्ञान देकर अर्जुन के मोह तथा शोक को दूर किया। भगवान के वचन हैं कि
‘‘न में भक्त: प्रणश्यति’’
अर्थात मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होता।
पाण्डु पुत्र अर्जुन संवेदना, करूणा एवं ममता से भरा है इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता अर्जुन को सुनाई। क्या आप जानते हैं जिस समय भगवान ने गीता का उपदेश दिया तो वो अर्जुन के अतिरिक्त चार और लोगों ने भी सुना और वो चार लोग थे
1 हनुमान जी
2 महर्षि वेद व्यास जी के शिष्य तथा धृतराष्ट्र की राजसभा के सम्मानित सदस्य संजय
3 घटोत्कच और अहिलावती के पुत्र तथा भीम के पोते बर्बरीक
4 धृतराष्ट्र
जब भगवान अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे उस समय हनुमान जी अर्जुन के रथ पर सवार थे। संजय ने भगवान वेद व्यास जी से दिव्य दृष्टि पाकर धृतराष्ट्र को महाभारत का हाल बता रहे थे। जब भगवान गीता का उपदेश दे रहे थे तो उस समय धृतराष्ट्र ने पूरी गीता का व्याख्यान संजय के मुख मण्डल से सुना।
भगवान श्री कृष्ण चाहते थे कि धृतराष्ट्र को अपने कर्त्तव्य का बोध हो और एक राजा के रूप में वो भारत में होने वाले विनाश को रोक लें इसलिए उन्होंने गीता का उपदेश दिया। अर्जुन के अतिरिक्त इन चार महान व्यक्तियों ने भगवान श्री कृष्ण को विश्वरूप देखा।