MOVIE REVIEW : फिल्म लखनऊ सेंट्रल

रेटिंग  :  2.5/5

स्टार कास्ट  :  फरहान अख्तर, डायना पेंटी, गिप्पी ग्रेवाल, दीपक डोबरियाल, राजेश शर्मा, इनामुल्हक, रोनित रॉय, उदय टिकेकर, रवि किशन

डायरेक्टर  :  रंजीत तिवारी

म्यूजिक  :  अर्जुना हरजाई, रोचक कोहली, तनिष्क बागची

प्रोड्यूसर  :  निखिल अडवाणी, मोनिशा अडवाणी, मधु जी भोजवानी

जॉनर  :  सोशल ड्रामा

डायरेक्टर रंजीत तिवारी की फिल्म लखनऊ सेंट्रल सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। उनकी ये पहली फिल्म है।डायरेक्टर रंजीत तिवारी की फिल्म लखनऊ सेंट्रल सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। रंजीत के डायरेक्शन में बनी ये पहली फिल्म है। ये फिल्म जेल में कैदियों की स्थिति और उनके साथ होने वाले बर्ताव को दर्शाती है।

हालांकि, फिल्म की कहानी में कुछ भी नयापन नहीं है और घिसी पिटी कहानी को आधार बनाकर फिल्म बनाई गई है।फिल्म की कहानी शुरू होती है मुरादाबाद में रहने वाले किशन मोहन गिरहोत्रा (फरहान अख्तर) की। बचपन से ही किशन की ख्वाहिश है कि वे सिंगर बने और खुद का एक बैंड बनाएं। किशन भोजपुरी सिंगर मनोज तिवारी का दीवाना है।

मनोज तिवारी के एक म्यूजिक प्रोग्राम में किशन अपनी गाने की सीडी लेकर जाता है ताकि उन्हें दें सके, लेकिन वो मनोज को सीडी देने में कामयाब नहीं हो पाता है। कहानी आगे बढ़ती है और किशन की जिदंगी में एक ऐसी घटना घटती है, जिससे उसके सारे सपने बिखर कर रह जाते हैं। एक आईएएस अधिकारी की मौत का इल्जाम उसपर आ जाता है और इस जुर्म में उसे जेल भेज दिया जाता है।

इस जुर्म के लिए किशन को उम्र कैद की सजा सुनाई जाती है लेकिन वकील मांग करता है कि किशन को उम्र कैद नहीं फांसी दी जाना चाहिए। इसी बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री (रवि किशन) की ओर से ये एलान होता है कि 15 अगस्त के दिन प्रदेश की सारी जेलों के बीच संगीत प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा। इसके लिए किशन को मुरादाबाद की जेल से लखनऊ सेंट्रल जेल शिफ्ट किया जाता है।

जहां किशन जेल के कैदियों के साथ मिलकर एक बैंड तैयार करता है, इसमें उनकी मदद करती है सोशल वर्कर गायत्री कश्यप (डायना पेंटी), जो कैदियों के पुर्नवास के लिए काम करती हैं। किशन अपने बैंड में दूसरे कैदी पुरुषोतम पंडित (राकेश शर्मा), विक्टर चट्टोपाध्याय (दीपक डोबरियाल), दिक्कत अंसारी (इनामुलहक), परमिंदर सिंह (गिप्पी गिरेवाल) को शामिल करता है।

हालांकि, इनका मकसद बैंड तैयार करने से ज्यादा जेल से भागना होता है। इन कैदियों पर जेलर (रोनित रॉय) को शक होता है और वे इनपर कड़ी नजर रखना शुरू कर देता है। क्या किशन अपने प्लान में कामयाब हो पाता है ? क्या वो लखनऊ सेंट्रल जेल के जेलर (रॉनित रॉय) को चकमा दे पाता है ? इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

लखनऊ सेंट्रल डायरेक्टर रंजीत तिवारी के डायरेक्शन में बनीं पहली फिल्म है। इस लिहाज से डायरेक्शन अच्छा है। जेल का वातावरण और लोकेशन कमाल की हैं। कैदियों के हालात पर बनी फिल्म को अच्छी तरह से शूट किया गया है। फिल्म में कैदियों की लाइफ को बहुत ही करीब से दिखाया गया है, जेल में कैदियों के साथ होने वाले व्यवहार को बेहद नजदीक से दिखाया गया है।

फिल्म के संवाद भी अच्छे है और कुछ संवाद तो सुनने वालों को अंदर तक हिला कर रख देते हैं। हालांकि, कहानी घिसी पीटी है, जिसकी वजह से फिल्म देखते समय अगले ही पल पता चल जाता है कि आगे क्या होने वाला है। इसके स्क्रीनप्ले को और बेहतर बनाया जा सकता था। फिल्म में ऐसे कई किरदार हैं, जिनपर फोकस नहीं किया गया। फर्स्ट हाफ अच्छा है लेकिन सेकंड पार्ट बिखरा हुआ है।

फिल्म के क्लाइमेक्स को और बेहतर किया जा सकता था।फिल्म में फरहान अख्तर का काम अच्छा है। उनकी संवाद अदायगी भी बेहतरीन है। उनके कुछ संवाद दिल को छू जाते हैं। बाकी एक्टर्स डायना पेंटी, गिप्पी ग्रेवाल, दीपक डोबरियाल, राजेश शर्मा, इनामुल्हक, उदय टिकेकर ने भी अपने-अपने किरदार को सहज तरीके से निभाए है।

वहीं, जेलर बने रोनित रॉय अपने किरदार में एकदम सटीक बैठते हैं। मुख्यमंत्री के किरदार में रवि किशन जब भी स्क्रीन पर नजर आते हैं तो ऑडियंस को हंसाते हैं।फिल्म में संगीत ठीक-ठाक ही है, बहुत ज्यादा इम्प्रेसिव नहीं है। बैकग्राउंड म्यूजिक भी ठीक ही है। फिल्म के दो गाने रंगदारी और कावा-कावा थोड़ बहुत फेसम हुए है।

जेल में कैदियों के साथ होने वाले बर्ताव और रिश्तों के ताने-बाने पर बनी फिल्म के साथ ही यदि आप फरहान अख्तर की एक्टिंग को पसंद करते हैं तो ही फिल्म देखने जाए।

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