क्रिटिक रेटिंग : 3.5/5
स्टार कास्ट : तृप्ति डिमरी, अविनाश तिवारी, सुमित कौल, मीर सरवर
डायरेक्टर : साजिद अली
प्रोड्यूसर : एकता कपूर, शोभा कपूर
जोनर : रोमांटिक ड्रामा
ड्यूरेशन : 2 घंटे 15 मिनट
फिल्म की कहानी कश्मीर की खूबसूरत वादियों से शुरू होती है। अली की लैला (तृप्ति डिमरी) एक दिलचस्प किरदार है। वो अपनी खूबसूरती के आकर्षण के बारे में जानती है और पुरुषों से मिलने वाले इस अटेंशन को एन्जॉय भी करती है। वो सुंदर है इसका दर्शन करना पसंद करती है।
जब कैस (अविनाश तिवारी) लैला से मिलता है तो दोनों अपने आप ही एक-दूसरे की तरफ आकर्षित हो जाते हैं।कैस के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वो शराबी और लड़कीबाज है। कैस के बारे में ऐसी बातें पता चलने पर लैला का इंटरेस्ट बढ़ जाता है। फ्लर्ट से शुरू हुई बातचीत गहरे प्यार में बदल जाती है।
कैस, लैला के लिए जुनूनी हो जाता है और यही से उसके विनाश की शुरुआत हो जाती है। लैला के पिता (परमीत सेठी) एक पावरफुल आदमी है। उनका कैस के पिता (बेंजामिन गिलानी) से प्रॉपर्टी को लेकर झगड़ा चल रहा है, इसलिए दोनों फैमिलीज लैला-मजनूं के प्यार को एक्सेप्ट नहीं करतीं। कैस देश छोड़कर चला जाता है।
चार साल बाद वो वापस आता है लेकिन अब वो पागलपन के कगार पर पहुंच चुका है।इम्तियाज अली जिन्हें रोमांटिक स्टोरीज में महारत हासिल है, इस बार उन्होंने वही पुरानी लैला-मजनूं की स्टोरी पर्दे पर दिखाई है। इस फिल्म को उनके भाई साजिद ने डायरेक्ट किया है। साजिद ने इस फिल्म के साथ पूरा न्याय किया है।
साहसी लैला और दीवाने मजनूं के कैरेक्टर को शानदार तरीके से गढ़ा गया है। शशांक भट्टाचार्य ने बेहतरीन सिनेमेटोग्राफी कर कश्मीर की खूबसूरती को दिखाया है जिसने इस लव स्टोरी को रियल बनाने का काम किया है। साजिद ने बिना किसी इंटीमेट सीन के प्यार की गहराई को दिखाया है।
आज के समय में जब लव स्टोरीज बहुत फास्ट दिखाई जाती हैं, लैला मजनूं की कहानी धीरे-धीरे गहराई में उतरती है। जिसमें दो प्रेमियों का पागलपन दिखता है। फिल्म सच्चे प्यार पर विश्वास दिलाती हुई आगे बढ़ती जाती है।
इसका प्रमुख किरदार कैस है जो कि फिल्म की ताकत है। तृप्ति खूबसूरत हैं और उन्होंने अपने किरदार को बखूबी निभाया है लेकिन फिल्म की जान कैस बने अविनाश तिवारी ही हैं। इम्तियाज अली ने कैस के किरदार पर ही फोकस किया है और उनके पागलपन को दिखाया है। तिवारी ने इस किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाया है।
ऐसा कह सकते हैं कि वे एक शानदार अभिनेता हैं। साजिद ने 2 घंटे 15 मिनट की इस फिल्म को कहीं भी भटकने नहीं दिया। आखिर में इमोशन को दिखाते हुए ऐसा लगता है कि उन्होंने अपना कंट्रोल खोया है। फिल्म कहीं-कहीं सूरज बड़जात्या की मैंने प्यार किया को ट्रिब्यूट देती दिखाई देती है। यहां पर कबूतर है जो प्यार के संदेशों को ले जाता है।
फिल्म में एक और अच्छी बात इसका म्यूजिक है। फिल्म में 10 गाने हैं लेकिन लगता है कि और होने चाहिए थे। म्यूजिक कंपोज निलादरी कुमार और जॉई बरुआ ने किया है। यह इस साल का बेस्ट संगीत हो सकता है। इम्तियाज अली की फिल्मों में शानदार म्यूजिक होता है। यह फिल्म भी वैसी ही है।इस फिल्म को जरूर देखें क्योंकि ऐसी भावुक और गहरी लव स्टोरी आज के समय में देखने को नहीं मिलती।