क्रिटिक रेटिंग : 2.5/5
स्टार कास्ट : राहुल भट्ट, रिचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी, सौरभ शुक्ला, विनीत सिंह
डायरेक्टर : सुधीर मिश्रा
प्रोड्यूसर : प्रीतिश नन्दी
संगीत : विपिन पटवा, संदेश शांडिल्य, शाहमीर टंडन
जॉनर : रोमांस-थ्रिलर
डायरेक्टर सुधीर मिश्रा के निर्देशन में बनी फिल्म दास देव सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म शरतचंद्र के नॉवेल देवदास का मॉर्डन वर्जन है। ये फिल्म देवदास की तरह रोमांटिक नहीं बल्कि राजनीतिक थ्रिलर है। फिल्म में राहुल भट्ट, रिचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी, सौरभ शुक्ला, विनीत सिंह लीड रोल में हैं।
फिल्म की कहानी उत्तरप्रदेश की है, जहां देव (राहुल भट्ट) राजनीतिक घराने का उत्तराधिकारी है। उसे पारो (रिचा चड्ढा) से प्यार है। नशे और अय्याशी में डूबे देव को उसके सीएम चाचा अवधेश (सौरव शुक्ला) ने पाल-पोसकर बड़ा किया है। देव का चाचा चाहता है कि वह खानदान की राजनीतिक विरासत को संभाले।
इस काम के लिए चांदनी (अदिति राव हैदरी) को लाया जाता है। देव से प्यार करने वाली चांदनी राजनेताओं और रसूख रखनेवाले लोगों के काले कारनामों की भी साथी है। कहानी में एक मोड़ ऐसा आता है, जब चांदनी एक चक्रव्यूह रचकर देव को राजनीति की बागडोर हाथ में लेने पर मजबूर कर देती है, मगर इस चक्रव्यूह में पारो और देव के बीच टकराव होता है।
अपने आदर्शों पर चलने वाली पारो विपक्ष के नेता (विपिन शर्मा) से शादी कर लेती है। कौन किसके साथ राजनीतिक खेल खेलता है, क्या पारो-देव मिल पाते है, चांदनी अपनी चालों में कितनी कामयाब होती है, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
एक्टिंग की बात करें तो राहुल भट्ट ने देव के किरदार के साथ न्याय करने की कोशिश की है। फिल्म में उन्हें अपना टैलेंट दिखाने का पूरा मौका मिला है। रिचा चड्ढा और अदिति राव के किरदारों में ग्रे शेड देखने को मिला। अदिति ने अपना किरदार ठीक निभाया है वहीं, ऋचा थोड़ी कमजोर लगी है।
सौरव शुक्ला, विनीत सिंह, दीपराज राणा, दलीप ताहिल जैसे कलाकारों ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है।सुधीर मिश्रा हमेशा से अपने जटिल विषयों के लिए जाने जाते हैं। डार्क और इंटेंस सिनेमा उनकी खूबी रही है। दास देव में भी उन्होंने ऐसा ही कुछ दिखाने की कोशिश की है। उन्होंने शरत चंद्र की देवदास के तीन अहम किरदार देव, पारो और चांदनी को लेकर उसमें ग्रे और विश्वाघाती रंग को मिलाकर दिखाया है।
हालांकि, उन्होंने कहानी को काफी फैलाया, जिसकी जरूरत नहीं थी। फिल्म की कहानी ने कई जगह अपनी पकड़ भी खोई है। फिल्म के कई किरदार देखने वालों में उलझन भी पैदा करते हैं।विपिन पटवा, संदेश शांडिल्य, शाहमीर टंडन के संगीत से सजी फिल्म में रंगदारी, सहमी है धड़कन जैसे गाने अच्छे बन पड़े हैं। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी ठीकठाक है।