प्यास क्यों लगती है ?

प्यास लगने के कारण के बारे में 460 ईसवीं पूर्व प्रसिद्ध दार्शनिक हिपोक्रेटस ने सर्वप्रथम बताया था –  जब मनुष्य का मुख सूजने लगता है तब प्यास लगती है . सके बाद अरस्तू ने कहा कि – आंखों में पानी  की कमी के कारण प्यास लगती है । मगर गैलेने ने बताया कि फेफड़ों और हृदय में पानी का अभाव होते  ही प्यास लगने लगती है ।

गैलेने के सोलह सौ सालों बाद सन् 1800 तक प्यास के बारे में कोई नहीं बोला , फिर 1803 में डूपास  नामक वैज्ञानिक ने खून में पानी की कमी और उसके गाढ़े होने को प्यास लगने का कारण बताया ।  लेकिन सन 1867 में शिपू वैज्ञानिक डूपास के तर्क का खण्डन किया और बताया कि जब मनुष्य के  शरीर की कोशिकाओं औऱ खून में पानी की कमी हो जाती है तब प्यास लगती है।

1936 तक वैज्ञानिक अनुमान भर लगाते रहे फिर 1937 में गिलमैन नामक वैज्ञानिक ने प्यास लगने  का प्रमाणिक कारण बताया कि प्यास मानव शरीर में कोशिकाओं में पानी की कमी यानी कोशीय  निर्जलीकरण के कारण लगती है ।

वास्तव में पृथ्वी पर दो-तिहाई पानी की भांति हमारे शरीर में भी दो-तिहाई भाग पानी ही है । पानी भी  कोशीय जल और बाह्य जल के रुप में बंटा होता है। शरीर में आधा किलोग्राम पानी की कमी होते ही  हमें प्यास लगने लगती है जिसे हम धरती के अमृत यानि पानी से पूरा करते हैं ।

मुकेश कपिल

टीवी पत्रकार

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