मुफ्त में देते है बच्चो को बॉक्सिंग की ट्रेनिंग

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जहाँ एक ओर विजेंदर सिंह ने अधिक पैसे के लिए इंडियन बॉक्सिंग छोड़कर प्रोफेशनल बॉक्सिंग चुन लिया है, वहीं दूसरी ओर हावड़ा के म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में काम करने वाले पूर्व नेशनल चैम्पियन कृष्णा राउत 150 से अधिक बच्चों को फ्री में ट्रेनिंग दे रहे हैं। वे दिनभर नालों की सफाई करते हैं और शाम को स्थानीय गरीब बच्चों में टैलेंट सर्च करने जुट जाते हैं। राउत का यह फ्री ट्रेनिंग सेंटर किसी इंटरनेशनल एकेडमी से कम नहीं लगता।

43 साल के कृष्णा राउत खुद हावड़ा म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में कर्मचारी है। सबसे बड़ी बात यह है कि राउत से ट्रेनिंग कोई भी ले सकता है, बस उसमें बॉक्सिंग के प्रति जज्बा होना चाहिए। ट्रेनिंग की न तो कोई फीस है और ना ही कोई अन्य खर्च। इस बारे में कृष्णा का कहना है कि जब मैं किसी युवा के अंदर बॉक्सिंग के प्रति जज्बा और लगन देखता हूं, तो खुद उसे सिखाने में अच्छा महसूस करता हूं।
ये है राउत का संघर्ष

एक इंटरव्यू में कृष्णा ने बताया, “मैं बचपन से ही बॉक्सर बनना चाहता था, लेकिन 10 साल की उम्र में ही मेरे पिता की मौत हो गई। इसके बाद मुझे पढ़ाई छोड़कर परिवार की देखभाल में जुटना पड़ा। इसके बावजूद बॉक्सिंग का जज्बा मरा नहीं। मैंने बॉक्सिंग की तैयारी की और नेशनल लेवल का टूर्नामेंट जीता।” बता दें कि उन्होंने 1987 में ऑल इंडिया बॉक्सिंग चैम्पियनशिप (सूर्यसेन ट्रॉफी) जीती, जबकि 1992 में रनरअप रहे। 1987 में वेस्ट बंगाल स्टेट ओपन लालचंद रॉय मेमोरियल बॉक्सिंग चैम्पियनशिप का खिताब अपने नाम किया, जबकि 1985 में वे रनरअप रहे। इसके अलावा उनके नाम वेस्ट बंगाल बॉक्सिंग चैम्पियनशिप-1985 का खिताब दर्ज है। राउत ने 1990 में स्टेट इंटर स्कूल और कॉलेज बॉक्सिंग चैम्पियनशिप का खिताब भी जीता था।

कृष्णा राउत की प्रतिदिन की कमाई 232 रुपए है। वे हावड़ा जिले में शिबपुर के बागड़ीपारा में एक सिंगल रूम में रहते हैं। यहां उनके अलावा उनकी पत्नी, तीन बच्चे और बीमार (क्षय रोग) भाई रहता है। इस बारे में कृष्णा का कहना है कि परिवार के लिए बेहतर सुविधा दे पाना मेरे लिए कठीन है, लेकिन मैं वह सबकुछ करता हूं जो मुझसे संभव हो सका है।

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