विपक्ष केंद्र सरकार को संसद में घेरने के लिए तैयार

SansadBhavan_dtv

जाति जनगणना 2011 में जाति के आंकडे जारी नहीं करने के लिए सरकार को संसद के मानसून सत्र में विपक्ष की एकजुट घेराबंदी का सामना करना पड़ सकता है। कांग्रेस, माकपा, द्रमुक, सपा, राजद और जद-यू जैसे दलों में इस मुद्दे पर एकजुटता बन रही है।जाति संबंधी आंकड़े नहीं जारी करने का बिहार के विधानसभा चुनावों से कोई लेना देना है। विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ने का फैसला करने वाले लालू प्रसाद के राजद और नीतीश कुमार के जद-यू ने ये आंकड़े सार्वजनिक करने की जोरदार वकालत की है ताकि अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) के मतों को अपने साथ जोड़ा जा सके।

हिन्दी भाषी राज्यों में ओबीसी की ताकत को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने ओबीसी मोर्चे का गठन किया है ताकि बिहार और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में संभावनाओं को मजबूत किया जा सके। बिहार में इस साल तो उत्तर प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं। दोनों ही राज्यों में पिछडे समुदाय के लोगों की अच्छी खासी संख्या है।जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने बताया कि यह मुद्दा लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में उठाया जाएगा। सरकार पर जाति संबंधी आंकड़े सार्वजनिक करने का दबाव बनाने के लिए संयुक्त रणनीति बनाने के उद्देश्य से अन्य दलों से भी बातचीत की जा रही है।

शरद यादव ने आरोप लगाया कि सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछडे वर्ग, अल्पसंख्यक और उंची श्रेणी के लोगों के आंकडे जारी नहीं कर देश से सच्चाई छिपा रही है ताकि भविष्य में आरक्षित श्रेणी के कोटा को चतुराई से कम किया जा सके। जाति संबंधी आंकड़े जारी नहीं किये जाने को हास्यास्पद बताते हुए शरद ने आरोप लगाया कि 2010 में तत्कालीन सरकार के संसद में दिये गये आश्वासन को पूरा नहीं किया गया है। आश्वासन ये था कि जाति संबंधी जनगणना करायी जाएगी ताकि समाज में विभिन्न सामाजिक समूहों की स्थिति को समझा जा सके और कमजोर एवं वंचित वर्गों के लोगों के उन्नयन के लिए आगे कार्रवाई की जा सके।

उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार ने सदन पटल पर दिये गये आश्वासन को पूरा नहीं कर जनता के साथ धोखाधड़ी की है। जदयू महासचिव के सी त्यागी ने एक प्रेस बयान में कहा कि जनता दल यूनाइटेड पहली सामाजिक आर्थिक एवं जाति जनगणना में जाति संबंधी आंकडे नहीं देने के केन्द्र सरकार के प्रयासों की आलोचना करती है। संसद के आगामी सत्र में जनता परिवार के दल इस मुद्दे को उठाएंगे।द्रमुक प्रमुख एम करूणानिधि, माकपा की वरिष्ठ नेता सुहासिनी अली और कांग्रेस प्रवक्ता राजीव गौडा ने भी इन आंकडों को सार्वजनिक करने का समर्थन किया है।

संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू हो रहा है और यह 13 अगस्त को संपन्न होगा। सरकार विभिन्न मुद्दों पर पहले ही विपक्ष के कड़े विरोध का सामना कर रही है। अब जाति संबंधी आंकड़ों को लेकर एकजुट हो रहे विपक्ष के तीखे हमलों का सामना उसे संसद में करना पडेगा। तीन जुलाई को सरकार ने पहली सामाजिक आर्थिक एवं जाति जनगणना :एसईसीसी: जारी की जो आठ दशकों में जारी हुई लेकिन उसने जाति आधारित आंकड़े जारी नहीं किये। उसका कहना था कि वह आर्थिक आंकड़े को लेकर चिन्तित है, जिनकी मदद से उसके कार्यक्रमों को प्रभावशाली ढंग से लागू किया जा सकेगा। सरकार ने इस बात से इंकार किया कि उसने बिहार विधानसभा चुनावों को देखकर राजनीतिक वजहों से ऐसा नहीं किया। ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेन्दर सिंह ने गेंद जनगणना महानिदेशालय के पाले में डालते हुए कहा कि यह मामला उनके अधिकारक्षेत्र में आता है। एसईसीसी प्रक्रिया 2011 में संप्रग सरकार के समय शुरू हुई। इसे लेकर जबर्दस्त राजनीतिक विवाद उत्पन्न हुआ। विभिन्न राजनीतिक दलों के ओबीसी नेताओं ने 1931 की जनगणना की तर्ज पर जाति आधारित जनगणना कराने की जोरदार वकालत की।

‘यादव-त्रय’सपा के मुलायम सिंह यादव, राजद के लालू प्रसाद और जदयू के शरद यादव ने 2010 और 2011 में ये मुद्दा संसद के भीतर और बाहर उठाया। उनकी मांग थी कि जनगणना जाति के आधार पर की जाए ताकि पिछड़े वर्ग के लोगों की संख्या का पता चल सके। संप्रग सरकार में भी इस मुद्दे को लेकर तीखे मतभेद थे। जिन्होंने इसका विरोध किया, उन्हें आशंका थी कि इससे ‘भानुमति का पिटारा’खुल जाएगा और आरक्षण पर नये सिरे से विचार करने की मांग मुखर हो जाएगी।

त्यागी ने कहा कि जब 2011 में संप्रग सरकार के समय एसईसीसी प्रक्रिया शुरू हुई तो जदयू, सपा, राजद, भाजपा के दिवंगत गोपीनाथ मुंडे और अन्य नेताओं ने मांग की कि जनगणना जाति आधारित होनी चाहिए ताकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों की संख्या का आकलन किया जा सके। इस बीच सूत्रों ने बताया कि राज्यसभा में शरद यादव तो लोकसभा में मुलायम सिंह यादव ये मुद्दा उठाएंगे। द्रमुक प्रमुख करूणानिधि ने कल केन्द्र से आग्रह किया था कि वह जाति संबंधी आंकड़े तत्काल जारी करे। तमिलनाडु की ही एक अन्य पार्टी पीएमके ने भी ऐसी ही मांग की है। बिहार में राजद प्रमुख लालू ने कहा कि वह 13 जुलाई को इस मुद्दे पर राजभवन तक मार्च करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि सुनियोजित साजिश के तहत केन्द्र सरकार ये आंकडे जारी नहीं कर रही है।

लालू खुद के यादव जाति का नेता होने का दावा करते हैं। बिहार में कुल 6.5 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 14 प्रतिशत यादव हैं। उन्होंने कहा कि हर किसी को अपनी जाति की आबादी जानने का अधिकार है। जनता को पता होना चाहिए कि किस जाति विशेष की आबादी कितनी है। कई लोगों से हम जाति के आंकडों के बारे में दावे सुनते आये हैं लेकिन जनगणना के आंकड़े सही संख्या प्रदर्शित करेंगे।

माकपा नेता सुभाषिनी अली ने कहा कि केन्द्र को ये आंकडे सार्वजनिक करने चाहिएं ताकि पिछडी जाति के लोगों की वित्तीय स्थिति को लेकर सही तस्वीर सामने आ सके। पूर्व में अलग सुर में बोलने वाली कांग्रेस भी अब अन्य विपक्षी दलों की राय के साथ है लेकिन उसने आगाह किया है कि सामाजिक एवं राजनीतिक संवेदनशीलता को देखते हुए ये आंकडे जारी करते समय काफी सतर्कता बरतने की जरूरत है।

Check Also

आरबीआई ने सभी क्रेडिट सूचना कंपनियों को दिया एक आंतरिक लोकपाल नियुक्त करने का निर्देश

आरबीआई ने सभी क्रेडिट सूचना कंपनियों को 1 अप्रैल, 2023 तक एक आंतरिक लोकपाल नियुक्त करने …