Healthy Eating While Dining out । कैसे रखे भोजन करते वक़्त बातों का ध्यान

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Healthy Eating While Dining out: खाना खाते समय यदि कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो स्वास्थ्य लाभ के साथ ही देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त की जा सकती है। यहां हम आपको शास्त्रों की कुछ ऐसी बातें बता रहे है जो भोजन बनाते और करते समय ध्यान रखनी चाहिए।सनातन धर्म ने हर एक हरकत को नियम में बांधा है और हर एक नियम को धर्म में। ये नियम ऐसे हैं जिससे आप किसी भी प्रकार का बंधन महसूस नहीं करेंगे, बल्कि ये नियम आपको सफल और ‍निरोगी ही बनाएँगे। नियम से जीना ही धर्म है।

भोजन के नियम :

* भोजन की थाली को पाट पर रखकर भोजन किसी कुश के आसन पर सुखासन में (आल्की-पाल्की मारकर) बैठकर ही करना चाहिए।

* कांसे के पात्र में भोजन करना निषिद्ध है।

* भोजन करते वक्त मौन रहने से लाभ मिलता है।

* भोजन भोजन कक्ष में ही करना चाहिए।

* भोजन करते वक्त मुख दक्षिण दिशा में नहीं होना चाहिए।

* जल का गिलास हमेशा दाईं ओर रखना चाहिए।

* भोजन अँगूठे सहित चारों अँगुलियों के मेल से करना चाहिए।

* परिवार के सभी सदस्यों को साथ मिल-बैठकर ही भोजन करना चाहिए।

* भोजन का समय निर्धारित होना चाहिए।

* दो वक्त का भोजन करने वाले के लिए जरूरी है कि वे समय के पाबंद रहें।

* संध्या काल के अस्त के पश्चात भोजन और जल का त्याग कर दिया जाता है।

शास्त्र कहते हैं कि योगी एक बार और भोगी दो बार भोजन ग्रहण करता है। रात्रि का भोजन निषेध माना गया है। भोजन करते वक्त थाली में से तीन ग्रास (कोल) निकालकर अलग रखे जाते हैं तथा अंजुली में जल भरकर भोजन की थाली के आसपास दाएँ से बाएँ गोल घुमाकर अंगुली से जल को छोड़ दिया जाता है।

अंगुली से छोड़ा गया जल देवताओं के लिए और अंगूठे से छोड़ा गया जल पितरों के लिए होता है। यहाँ सिर्फ देवताओं के लिए जल छोड़ा जाता है। यह तीन कोल ब्रह्मा, विष्णु और महेश के लिए या मन कथन अनुसार गाय, कौआ और कुत्ते के लिए भी रखा जा सकता है।

भोजन के तीन प्रकार :

* जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन। भोजन शुद्ध और सात्विक होना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि सात्विक भोजन से व्यक्ति का मन सकारात्मक सोच वाला व मस्तिष्क शांतिमय बनता है। इससे शरीर स्वस्थ रहकर निरोगी बनता है।

* राजसिक भोजन से उत्तेजना का संचार होता है जिसके कारण व्यक्ति में क्रोध तथा चंचलता बनी रहती है।

* तामसिक भोजन द्वारा आलस्य, अति नींद, उदासी, सेक्स भाव और नकारात्मक धारणाओं से व्यक्ति ग्रसित होकर चेतना को गिरा लेता है।

सात्विक भोजन से व्यक्ति चेतना के तल से उपर उठकर निर्भीक तथा होशवान बनता है और ता‍मसिक भोजन से चेतना में गिरावट आती है जिससे व्यक्ति मूढ़ बनकर भोजन तथा संभोग में ही रत रहने वाला बन जाता है। राजसिक भोजन व्यक्ति को जीवनपर्यंत तनावग्रस्त, चंचल, भयभीत और अति-भावुक बनाए रखकर संसार में उलझाए रखता है।

जल के नियम :

* भोजन के पूर्व जल का सेवन करना उत्तम, मध्य में मध्यम और भोजन पश्चात करना निम्नतम माना गया है।

* भोजन के 1 घंटे पश्चात जल सेवन किया जा सकता है।

* भोजन के पश्चात थाली या पत्तल में हाथ धोना भोजन का अपमान माना गया है।

* पानी छना हुआ होना चाहिए और हमेशा बैठकर ही पीया जाता है।

* खड़े रहकर या चलते-फिरते पानी पीने से ब्लॉडर और किडनी पर जोर पड़ता है।

* पानी गिलास में घूंट-घूंट ही पीना चाहिए।

* अंजुली में भरकर पिए गए पानी में मिठास उत्पन्न हो जाती है।

* जहाँ पानी रखा गया है वह स्थान ईशान कोण का हो तथा साफ-सुथरा होना चाहिए। पानी की शुद्धता जरूरी है।

विशेष :

भोजन खाते या पानी पीते वक्त भाव और विचार निर्मल और सकारात्मक होना चाहिए। कारण कि पानी में बहुत से रोगों को समाप्त करने की क्षमता होती है और भोजन-पानी आपकी भावदशा अनुसार अपने गुण बदलते रहते हैं।

* एकादशी, द्वादशी और तेरस के दिन बैंगन खाना मना है। बीमारी लौट आती है और पुत्र का नाश होता है।

* अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी और अष्टमी, रविवार, श्राद्ध एवं व्रत के दिन तिल का तेल, लाल रंग के साग का सेवन करना मना है। इस दिन स्त्री सहवास भी नहीं करना चाहिए।

* रविवार के दिन अदरक भी नहीं खाना चाहिए।

* कार्तिक मास में बैंगन और माघ मास में मूली का त्याग करना चाहिए।

* जो भोजन लड़ाई-झगड़ा करके बनाया गया हो, उसे ग्रहण नहीं करना चाहिए।

* जिस भोजन को किसी ने लांघ दिया हो, उसका भी त्याग करना चाहिए।

* एमसी (रजस्वला) वाली स्त्री ने बनाया या छू लिया हो, उस भोजन का भी त्याग करना चाहिए।

* लक्ष्मी प्राप्त करने वाले को रात में दही और सत्तू नहीं खाना चाहिए आदि…।

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