अखाड़ों की शुरुआत
हिन्दुओं की आश्रम परम्परा के साथ अखाड़ों की परंपरा भी प्राचीनकाल से ही रही है। अखाड़ों का आज जो स्वरूप है उस रूप में पहला अखाड़ा ‘अखंड आह्वान अखाड़ा’ सन् 547 ई. में सामने आया। इसका मुख्य कार्यालय काशी में है और शाखाएं सभी कुम्भ तीर्थों पर हैं।
अखाड़ा शब्द का अर्थ
अखाड़ा शब्द के मूल में अखंड शब्द को भी देखा जाता है। आज जो अखाड़े प्रचलन में हैं उनकी शुरुआतचौदहवीं सदी से मानी जाती है। अखाड़ा, यूं तो कुश्ती से जुड़ा हुआ शब्द है, मगर जहां भी दांव-पेंच की गुंजाइश होती है, वहां इसका प्रयोग भी होता है। आज की ही तरह प्राचीनकाल में भी शासन की तरफ से एक निर्धारित स्थान पर जुआ खिलाने का प्रबंध रहता था, जिसे अक्षवाट कहते थे. यही अक्षवाट आगे चलकर अखाड़ा बन गया।
इस समय कुम्भ में शाही स्नान के क्रम में प्रसिद्ध सात शैव अखाड़ों में श्रीपंचायती तपोनिधि निरंजनी अखाड़ा, श्रीपंचायती आनंद अखाड़ा, श्रीपंचायती दशनामी जूना अखाड़ा, श्रीपंचायती आवाहन अखाड़ा, श्रीपंचायती अग्नि अखाड़ा, श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा और श्रीपंचायती अटल अखाड़ा हैं।
वैष्णव साधुओं के अखाड़ों के बाद कुछ दूसरे अखाड़े भी आते हैं। गुरु नानकदेव के पुत्र श्रीचंद ने उदासीन सम्प्रदाय चलाया था। इसके दो अखाडे़, श्रीपंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा और श्रीपंचायती नया उदासीन अखाड़ा भी सामने आए। इसी तरह सिखों की एक अलग जमात निर्मल सम्प्रदाय का श्रीपंचायती निर्मल अखाड़ा भी अस्तित्व में आया।
पहले सिर्फ शैव साधुओं के अखाड़े होते थे। बाद में वैष्णव साधुओं में भी अखाड़ा परम्परा शुरू हुई। शैव जमात के सात अखाड़ों के बाद वैष्णव बैरागियों के तीन खास अखाड़े हैं- श्रीनिर्वाणी अखाड़ा, श्रीनिर्मोही अखाड़ा और श्रीदिगंबर अखाड़ा। इन प्रमुख अखाड़ों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं:-