एनजीटी ने जर्मनी की कार निर्माता कंपनी फॉक्सवैगन को 100 करोड़ रुपए जमा कराने का आदेश दिया। कंपनी पर आरोप था कि उसने डीजल गाड़ियों में कार्बन उत्सर्जन घटाने की जगह ऐसी डिवाइस का इस्तेमाल किया, जो आंकड़ों में हेर-फेर कर देती थी।
एनजीटी चेयरपर्सन आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले की जांच के लिए पर्यावरण मंत्रालय, उद्योग मंत्रालय, सीपीसीबी और ऑटोमोटिव रिसर्च असोसिएशन के अधिकारियों की एक कमेटी बनाई थी।
इस कमेटी को यह पता लगाने की जिम्मेदारी दी गई थी कि फॉक्सवैगन की गाड़ियों से पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा है।एनजीटी ने इस कमिटी को एक महीने में रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया था।
साथ ही, कंपनी और याचिकाकर्ता को एनजीटी के सामने सात दिन में साक्ष्य समेत उपस्थित होने के लिए कहा था। इस मामले में शिक्षिका सलोनी ऐलावाड़ी ने याचिका दायर की थी। उन्होंने फॉक्सवैगन की गाड़ियों से कार्बन उत्सर्जन के नियमों के उल्लंघन होने की शिकायत की थी।
कार निर्माता कंपनी ने एनजीटी से अपने जवाब में कहा था कि वह23 लाख वाहनों को मार्केट से वापस लेकर उनमें ऐसी डिवाइस लगाएगी, जो कार्बन का उत्सर्जन कम कर देगी। जांच में सामने आया कि कंपनी की ओर से गाड़ियों में फिट की गई नई डिवाइस महज एक सॉफ्टवेयर था, जो डीजल वाहनों में कार्बन उत्सर्जन के आंकड़ों में हेर-फेर कर देता था।
फॉक्सवैगन ने सितंबर 2015 में पहली बार कबूला था कि उसने 2008 से 2015 के बीच दुनियाभर में बेची गई 1.11 करोड़ गाड़ियों में ‘डिफीट डिवाइस’ लगाई थी। यह डिवाइस इस तरह से डिजाइन की गई थी कि लैब में परीक्षण के दौरान ये कारों को पर्यावरण के मानकों पर खरा साबित कर देती थी।
हकीकत में इन कारों से नाइट्रिक ऑक्साइड नामक प्रदूषित गैस का उत्सर्जन होता था।यह उत्सर्जन यूरोपीय मानकों से चार गुना अधिक था। फॉक्सवैगन को इस घोटाले के कारण अब तक अरबों रुपए का जुर्माना देना पड़ा है। कंपनी सिर्फ जर्मनी में 8,300 करोड़ रुपए का जुर्माना दे चुकी है। इसके अलावा कंपनी के कुछ शीर्ष अधिकारियों को जेल भी हुई है।