नेपाल में संसद भंग करने के राष्ट्रपति के ऐलान से विपक्षी पार्टियां नाराज

नेपाल में संसद भंग करने के राष्ट्रपति के आदेश के बाद गहमागहमी तेज हो गई है. इस फैसले के खिलाफ विपक्षी गठबंधन ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का फैसला किया है. जानकारी के मुताबिक विपक्षी पार्टियों ने पहले रविवार को रिट याचिका दायर करने की योजना बनाई थी.

लेकिन रिट तैयार करने के लिए पर्याप्त समय न मिलके के कारण इसे सोमवार तक के लिए टाल दिया गया.हिमालय टाइम्स ने बताया कि अब सोमवार सुबह 10 बजे रिट याचिका दायर की जाएगी. अखबार ने बताया कि गठबंधन के नेता रविवार को बैठक करने और सांसदों से हस्ताक्षर करवाने में व्यस्त रहे.

इस बैठक में माओवादी केंद्र, नेपाली कांग्रेस, जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल, राष्ट्रीय जनमोर्चा और सत्तारूढ़ सीपीएन-यूएमएल पार्टी के माधव नेपाल गुट के नेता शामिल रहे.माओवादी केंद्र के नेता ने बताया कि हस्ताक्षर एकत्र करने का अभियान समाप्त नहीं हुआ है. संसद में बहुमत साबित करने के लिए पर्याप्त सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं.

बताते चलें कि राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा (संसद का निम्न सदन) को पांच महीने में दूसरी भंग करने और 12 व 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी. उन्होंने यह फैसला प्रधानमंत्री केपी ओली शर्मा की सलाह पर किया था, जो अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं.

इससे पहले उन्होंने प्रधानमंत्री ओली और विपक्षी गठबंधन के सरकार बनाने के दावे को भी खारिज कर दिया. ओली और विपक्षी नेता शेर बहादुर देउबा ने राष्ट्रपति से अलग-अलग मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया था.

राष्ट्रपति के संसद को फिर से भंग करने के फैसले पर विपक्षी पार्टियां बिफर गई हैं. विपक्षी गठबंधन के नेताओं ने इस फैसले को असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और पीछे ले जाने वाला बताते हुए इसे  कानूनी चुनौती देने की घोषणा की.

विपक्षी गठबंधन ने राष्ट्रपति पर सदन में बहुमत गंवा चुके प्रधानमंत्री के साथ मिलकर देश के संविधान और लोकतंत्र पर हमला करने का आरोप लगाया है. राजनीतिक उठापटक के बीच नेपाल के अफसरों ने उच्चतम न्यायालय की इमारत के आस-पास सुरक्षा कड़ी कर दी है.

राष्ट्रपति के  फैसले से नेपाल में राजनीतिक संकट और गहरा गया है. इसके साथ ही यह दिसंबर 2020 के उनके फैसले की पुनवृत्ति प्रतीत होता है जब उन्होंने पहली बार ओली की सलाह पर संसद को भंग किया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में संसद भंग करने के उनके फैसले को रद्द कर दिया था.

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