अफगानिस्तान में विदेशियों के हस्तक्षेप का विफल होना तय है : ईरान

ईरान ने कहा है कि अफगानिस्तान में विदेशियों के हस्तक्षेप का विफल होना तय है।पूर्व राजनयिक मोहसेन रूही सेफत ने कहा है कि पूर्व सोवियत संघ, ब्रिटेन और हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह ही अगर पाकिस्तान जैसा देश भी अफगान मामलों में हस्तक्षेप करता है, तो उसे उसी तरह का नुकसान होगा, जैसा इन देशों को उठाना पड़ा है।

सेफत ने उदाहरण देते हुए कहा कि अनुभव से पता चलता है कि ब्रिटेन (1839-42), सोवियत संघ (1980-88) और अमेरिका (2001-2021) की तरह ही अफगानिस्तान में कोई भी विदेशी हस्तक्षेप अंत में विफलता के साथ ही समाप्त होना है।

रिपोर्ट के अनुसार एक साक्षात्कार में सेफत ने आईएसएनए को बताया विदेशियों के हस्तक्षेप को एक विफलता ही माना जाएगा। पूर्व सोवियत संघ, ब्रिटेन और हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह ही अगर पाकिस्तान जैसा देश हस्तक्षेप करता है, तो उसका भी यही हश्र होगा।

ऐसी कुछ रिपोर्टें हैं जो दावा करती हैं कि पाकिस्तान के आईएसआई प्रमुख जनरल फैज हमीद तालिबान सरकार के गठन और पंजशीर घाटी पर तालिबान के हमले में शामिल थे।रिपोर्ट के अनुसार पूर्व राजनयिक ने कहा अफगानिस्तान के लोग विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ हैं।

यह जल्द ही दिख जाएगा कि यदि कोई देश हस्तक्षेप करता है, तो वह विफल ही होना है। सभी पड़ोसियों और प्रमुख शक्तियों को हमारी सलाह है कि अफगानिस्तान के मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए।

पंजशीर में राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा और तालिबान के बीच चल रही झड़पों के बारे में, अफगान मामलों के विशेषज्ञ ने कहा पंजशीर क्षेत्र में 21 घाटियां हैं, जिनमें से तालिबान बलों ने केवल निकटतम घाटी में प्रवेश किया है, जहां राज्यपाल का कार्यालय स्थित है।

अन्य 20 घाटियां विपक्षी ताकतों (विद्रोही गुट) के नियंत्रण में हैं। इसलिए, हमें देखना होगा कि इन संघर्षों की प्रक्रिया में क्या होता है।रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में तेहरान भी पाकिस्तानी प्रभाव के प्रति झिझक रहा है और उसकी बेचैनी बढ़ रही है। तालिबान और पाकिस्तान के बीच मजबूत संबंध बन गए हैं और कुछ तालिबानी नेता इस्लामाबाद से जुड़े हुए हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे गंभीर संकेत हैं, जो बताते हैं कि ईरान (एक शिया-बहुल देश) और पाकिस्तान (एक सुन्नी-बहुल देश) के बीच तनाव बढ़ रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान भी एक सुन्नी बहुल समूह है।ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद खतीबजादेह ने भी पंजशीर घाटी में तालिबान के ऑपरेशन के प्रति तेहरान की बेचैनी व्यक्त की है।

खतीबजादेह ने तालिबान पर पाकिस्तान के प्रभाव के संबंध में एक अप्रत्यक्ष संदर्भ में कहा अफगानिस्तान के इतिहास से पता चलता है कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह के विदेशी हस्तक्षेप से हमलावर बल को हार के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ है। अफगान लोग स्वतंत्रता चाहने वाले और जोशीले हैं और निश्चित रूप से कोई भी हस्तक्षेप बर्बाद है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश तालिबान नेता पाकिस्तानी मदरसों में शिक्षित हैं और पश्तून भी पाकिस्तान में दूसरी सबसे बड़ी जातीयता है।रिपोर्ट में बताया कि तेहरान स्थित ईरानी पत्रकार फातिमा करीमखान ने कहा ईरान और पाकिस्तान क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धी हैं।

ईरान के वाणिज्य दूतावास पर मजार-ए-शरीफ हमले में पाकिस्तान नंबर एक संदिग्ध है और अब सरकार बनाने से पहले ही तालिबान का पहला विदेशी मेहमान पाकिस्तान का आईएसआई प्रमुख है। बेशक, ईरान इसका स्वागत नहीं करेगा।1998 में मजार-ए-शरीफ में नौ ईरानी राजनयिक मारे गए थे और तेहरान ने तालिबान पर हमले का आरोप लगाया था।

तालिबान ने किसी भी संलिप्तता से इनकार किया था।हाल ही में, पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई के प्रमुख फैज हमीद ने अफगानिस्तान का दौरा किया और तालिबान के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की थी।रिपोर्ट में कहा गया है कि ईरान और तालिबान ने एक साझा आधार खोजने और मतभेदों को कम करने के लिए एक लंबा सफर तय किया है।

लेकिन पिछले कुछ दिनों में, ईरान का विदेश मंत्रालय तालिबान के पिछले विपक्षी गढ़, पंजशीर घाटी पर नियंत्रण करने के प्रति नाराजगी दिखा रहा है, जिसने उनके द्विपक्षीय संबंधों में बेचैनी का संकेत दिया है।पूर्व ईरानी राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने भी तालिबान के लिए कठोर शब्द कहे थे।

उन्होंने कहा एक ऐसे समूह का समर्थन किया गया है, जिसे बनाया गया है और फिर पड़ोसियों द्वारा प्रशिक्षित, सशस्त्र और समर्थित किया गया है। इसने एक देश पर कब्जा कर लिया है और खुद को सरकार कहा है। दुनिया या तो देख रही थी या समर्थन कर रही थी। यह दुनिया के सामने एक बदसूरत बात है।

लेकिन तेहरान में रहने वाली ईरानी पत्रकार फातिमा करीमखान का मानना है कि चीजें वैसी नहीं हैं, जैसी पहले हुआ करती थीं।करीमखान ने टीआरटी वल्र्ड को बताया हम देख सकते हैं कि हनीमून अब खत्म हो गया है, लेकिन आगे क्या होगा, इसके बारे में अभी कोई सुराग मिलना बाकी है।करीमखान को हाल ही में बनी अफगान सरकार में भी काफी दिक्कतें नजर आ रही हैं।

उन्होंने पश्तून बहुत तालिबान की आलोचना करते हुए कहा तालिबान ने एक बहुजातीय सरकार बनाने की बात कही थी, लेकिन जैसा कि आप देख सकते हैं कि सरकार लगभग पूरी तरह से पश्तून है, हजाराओं के लिए कोई भूमिका नहीं, ताजिक, उज्बेक्स और शिया आबादी के लिए कुछ भी नहीं है।

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