चंदेल जिले में 4 जून को हुए उग्रवादी हमले के पीछे चीनी आर्मी का हाथ होने का दावा किया गया है। सुरक्षा सूत्रों के अनुसार, चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी के दो अधिकारी मणिपुर हमले की जिम्मेदारी लेने वाले उग्रवादी संगठन एनएससीएन (खापलांग) के संपर्क में थे। फोन इंटरसेप्ट और लोकेशन डिटेल के आधार पर एक अधिकारी ने यह दावा किया है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के अनुसार, केंद्र के साथ सीजफायर समझौते का उल्लंघन करने वाले उग्रवादी संगठन ने चीन की आर्मी के निर्देशों पर यह हमला किया है। बता दें कि चंदेल जिले में हमले में 20 जवान शहीद हो गए थे।अधिकारी ने बताया कि 10-11 अप्रैल को दिल्ली में विदेश मंत्रालय, केंद्रीय गृह मंत्रालय और म्यांमार अधिकारियों की मीटिंग में यह जानकारी साझा भी की गई थी। अधिकारी ने यह भी बताया कि उग्रवादी संगठन उल्फा के लीडर परेश बरुआ ने एनएससीएन लीडर एस.एस. खापलांग को केंद्र के साथ सीजफायर समझौता तोड़ने के लिए राजी किया था। बताया जा रहा है कि उल्फा लीडर परेश बरुआ भी चीनी सेना के निर्देशों पर उग्रवादी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। अधिकारी ने बताया, “उग्रवादी संगठन म्यांमार में ट्रांसपोर्ट बिजनेस और अफीम का कारोबार कर रहे हैं। हमने राज्य सरकार को इससे जुड़े सबूत और तस्वीरें भी सौंपी हैं।”
खापलांग और बरुआ दोनों ही टागा (म्यांमार) से रुली और कुन्मिंग (दोनों ही चीन के युन्नान प्रांत में) के बीच आते-जाते हैं। दोनों पर चीनी अधिकारियों से संपर्क रखने का आरोप है।इंटेलिजेंस सूत्रों के मुताबिक, चीनी सेना के पूर्व अधिकारी मुक यान पाओ हुआन ने म्यांमार के कचिन प्रांत में असॉल्ट राइफल फैक्ट्री लगाई है और पूर्वोत्तर राज्यों के उग्रवादी संगठनों को यहीं से हथियार सप्लाई किए जा रहे हैं। यह फैक्ट्री कचिन प्रांत के पांग्वा में स्थित बताई जा रही है। बर्मा कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व लीडर टिन यिंग भी इस फैक्ट्री को चलाने में चीनी अधिकारी की मदद करता है।भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे। यह मणिपुर में बीते 33 साल में सेना पर हुआ सबसे खतरनाक हमला है। 1982 में राज्य में इसी तरह के हमले में 20 जवान शहीद हुए थे। उस वक्त उग्रवाद चरम पर था। इसके अलावा, यह भी पहली बार हुआ है कि उग्रवादियों ने आरपीजी यानी रॉकेट लॉन्चर्स का इस्तेमाल किया। दो उग्रवादी संगठनों-उल्फा (आई) और एनएससीएन (के) ने इस हमले की साझा जिम्मेदारी ली है।