अमेरिकी सैनिकों की वापसी से इराक में हालात फिर से बिगड़ने की आशंका

राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इराक में अमेरिकी सेना के लड़ाकू मिशन को खत्म करने का ऐलान किया है. इराकी प्रधानमंत्री मुस्तफा अल काज़िमी से मुलाकात के बाद बाइडेन ने कहा कि इस साल के अंत तक अमेरिका सेना के इस मिशन को खत्म कर दिया जाएगा.

हालांकि उन्होंने कहा कि ISIS आतंकियों से निपटने के लिए अमेरिका की ओर से इराकी सेना को ट्रेनिंग और मदद मुहैया कराई जाती रहेगी.बाइडेन प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया कि अमेरिकी सैन्य मिशन का मकसद इस्लामिक स्टेट को हराने में इराक की मदद करना था और साल के अंत तक उसकी भूमिका को इराकी सेना को ट्रेनिंग देने में तब्दील कर दिया जाएगा.

व्हाइट हाउस में दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद इसका ऐलान किया गया है.अधिकारी ने कहा कि इराकी बलों ने अपने जौहर दिखाए हैं और साबित किया है कि वह अपने मुल्क की रक्षा करने में सक्षम हैं. अधिकारी ने कहा कि फिर भी बाइडेन प्रशासन का मानना है कि ISIS से अब भी काफी खतरा है.

आईएस अब 2017 जितना ताकतवर नहीं है, लेकिन उसने दिखाया है कि वह ऐसे हमले कर सकता है जिसमें ज्यादा तादाद में लोग मारे जाएं. पिछले हफ्ते, उसने बगदाद के एक बाजार में सड़क किनारे किए गए बम विस्फोट की जिम्मेदारी ली थी जिसमें 30 लोगों की मौत हुई थी.

अमेरिका और इराक अप्रैल में इस बात पर सहमत हो गए थे कि इराक में अमेरिका की भूमिका सैनिकों को सलाह देने और प्रशिक्षित करने की हो साथ ही अमेरिकी सैनिक लड़ाकू भूमिका में न रहे. हालांकि इसकी कोई तारीख तय नहीं हो पाई थी.

बहरहाल, यह ऐलान ऐसे वक्त में हुआ है जब इराक में 10 अक्टूबर को चुनाव होने हैं जिसके कुछ महीने ही बचे हैं.अल-काज़िमी ने अमेरिका की यात्रा पर रवाना होने से पहले साफ किया था कि उनका मानना है कि वक्त आ गया है कि अमेरिका अपना लड़ाकू मिशन खत्म करे.

उन्होंने कहा था कि अब इराकी धरती पर किसी विदेशी लड़ाकू बल की जरूरत नहीं है. इराक में पिछले साल के आखिर से अमेरिकी सैनिकों की संख्या करीब 2500 है जब तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बलों की संख्या को घटाकर तीन हजार करने का निर्देश दिया था.

इससे पहले भी अमेरिकी की ओर से अफगानिस्तान से अपनी सेना पूरी तरह वापस बुलाने का फैसला किया गया था. सितंबर 2001 में हुए आतंकी हमले के जवाब में अमेरिकी ने अपनी सेना को वहां तैनात किया था. इराक और अफगानिस्तान में सेना की तैनाती से अमेरिक पर काफी आर्थिक बोझ भी पड़ रहा था जिससे चीन की चुनौती से निपटना उससे लिए मुश्किल हो रहा था.

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