कांग्रेस सत्ता के बिना नहीं रह पा रही है : रघुनंदन शर्मा

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में होने हैं लेकिन भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां आदिवासी मतदाताओं को लुभाने में जुटी हैं. इससे पहले ओबीसी वर्ग के आरक्षण का श्रेय लेने में दोनों पार्टियां जुटी हैं, अब आदिवासियों को भी अपने-अपने पाले में करने की कोशिशें तेज हो गई हैं.

अपनी इन्हीं कोशिशों के तहत पूर्व सीएम कमलनाथ आज बड़वानी में आदिवासी अधिकार यात्रा निकालेंगे.पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ आज दोपहर करीब 12 बजे बड़वानी पहुंचेंगे. इसके बाद कमलनाथ बड़वानी से आदिवासी अधिकार जन आक्रोश यात्रा की शुरुआत करेंगे.

बड़वानी में कमलनाथ आम सभा को संबोधित भी करेंगे. कमलनाथ के साथ ही इस यात्रा में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता, आदिवासी नेता भी शामिल होंगे. कांग्रेस की यह आदिवासी अधिकार जन आक्रोश यात्रा बड़वानी के बाद मंडला, शहडोल में भी निकाली जाएगी.

जिला स्तर पर भी इसके आयोजन किए जाएंगे. बारिश की आशंका को देखते हुए कार्यक्रम के लिए वाटरप्रूफ टेंट लगाया गया है और आयोजन स्थल पूरी तरह से पोस्टरों से भरा हुआ है.बता दें कि कांग्रेस पार्टी हाल ही में घटी नेमावर और नीमच की घटनाओं को लेकर सरकार पर हमलावर है और अपनी आदिवासी अधिकार जन आक्रोश यात्रा में इन घटनाओं को जोर-शोर से उठा सकती है.

कांग्रेस पार्टी खुद को आदिवासी हितैषी बता रही है. कांग्रेस प्रवक्ता विभा पटेल ने आरोप लगाया है कि भाजपा ने आदिवासियों के हित में कोई कदम नहीं उठाया है. भाजपा ने आदिवासियों का विकास रोका है. उन्होंने कहा कि आदिवासी, कांग्रेस के साथ हैं.

बीजेपी के पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस सत्ता के बिना रह नहीं पा रही है! पहले देश तोड़ने का काम किया. देश के टुकड़े, कांग्रेस की वजह से हुए. उन्होंने आरोप लगाया कि आदिवासी अधिकार यात्रा के जरिए कांग्रेस, आदिवासियों को उकसाने में जुटी है.

कांग्रेस समाज को वर्गों में बांटने की राजनीति करती है. अंग्रेज, कांग्रेस को फूट डालो और राज करो की विरासत देकर गए हैं और कांग्रेस उन्हीं के रास्ते पर चल रही है.मध्य प्रदेश की राजनीति में आदिवासी वर्ग सत्ता की कुंजी माना जाता है.

इसकी वजह ये है कि राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति यानी कि आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं. सामान्य वर्ग की 31 सीटों पर भी आदिवासी समुदाय निर्णायक भूमिका में है. यही वजह है कि दोनों ही पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस, आदिवासी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में जुटी हैं.

बता दें कि साल 2003 से पहले आदिवासी मतदाता, कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाते थे. हालांकि बाद में भाजपा ने इनमें सेंध लगा दी. हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर आदिवासियों ने कांग्रेस पर भरोसा जताया और आरक्षित 47 सीटों में से 30 सीटें कांग्रेस को दी.

वहीं भाजपा को 16 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. प्रदेश के मंडला, डिंडौरी, अनूपपुर, उमरिया आदि जिले आदिवासी बहुल हैं. राज्य में 6 लोकसभा सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. इनमें बैतूल, धार, खरगोन, मंडला, रतलाम और शहडोल शामिल हैं.

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