Shri Hanuman Swapna Siddhi Mantra : हनुमानजी कलयुग में अति शीघ्र फल प्रदान करने वाले प्रभावी देवता माने जाते हैं। इनकी आराधना मे पूर्ण सात्विकता, विधि एवं ब्रह्मचर्य का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसके अभाव में ये शीघ्र कुपित भी शीघ्र हो जाते हैं ऐसा अनुभवीय है। अतः इनकी साधना अनुभवी गुरु या विद्वान के संरक्षण में ही करनी चाहिये। प्रस्तुत मंत्र को ‘स्वप्न-विद्या-मंत्र’ कहा जाता है।
‘स्वप्न-मंत्र’ को रात्रिकाल में दस बजे के बाद ही सिद्ध करना चाहिये। नित्य जप के पश्चात् बिना कोई वार्तालाप किये वही देवता के पास लालवस्त्र पर भूमि शयन करना चाहिये। एक समय हल्का एवं पूर्ण सात्विक भोजन करे। स्वप्न में प्रश्नोत्तर के अतिरक्ति इस मंत्र से तंत्र-बन्धन, कठिन से कठिन रोग एवं अन्य संकट से भी छुटकारा पाया जा सकता है। मेरे एक शिष्य नेे मेरे संरक्षण में इस मंत्र को विधिपूर्वक सिद्ध किया था।
इस मंत्र के प्रभाव से उस व्यक्ति को स्वप्न में अपने प्रश्न का संकेत तो मिला ही एवं एक लम्बी बीमारी में भी विशेष सुधार हुआ। इस मंत्र का ध्यान व विनियोग आदि प्राप्त नहीं है। अतः प्रस्तुत मंत्र से पूर्व हनुमानजी के किसी कवच का पाठ कर लेना चाहिये। उसी कवच के विनियोग व ध्यान को पढ़ लेने के बाद अधिकारानुसार इस मंत्र की साधना आरम्भ कर सकते हैं।
मंत्र- ‘
Om ह्रौं नमो हनुमन्ताय आवेशय आवे शय स्वाहा।
दशहरा, दीपावली, नवरात्र, हनुमान-जयन्ती, श्रावण-मास, ग्रहण-काल, शु क्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार या अन्य शुभ काल आदि में स्नानादि करके एकान्त पवित्र स्थान में सुयोग्य गुरु के संरक्षण में निष्ठापूर्व क मंत्र साधना आरम्भ करें। गुरुदेव, गणेशजी, श्रीराम, शिवजी एवं दुर्गाजी का सूक्ष्म पूजन कर हनुमानजी का पंचोपचार पूजन करे।
हनुमानजी की रक्तवर्ण प्रतिमा या मूर्ति की स्थापना कर लाल रंग के रेशमी कम्बल के आसन पर बैठकर हनुमानजी के दर्शन की अभिलाषा के लिये मंत्र साधना आरम्भ करें। रुद्राक्ष या रक्त चन्दन की अभिमंत्रित माला से जप करना चाहिये। नित्य रात को हनुमान जी को गुड़ के चूरमे का भोग लगाये और उस चूरमे को हनुमानजी की मूर्ति के समक्ष रखा रहने दे।
जब दूसरे दिन चूरमे का भोग लगाये तब पहले वाला चूरमा एक पात्र मे एकत्र करते जायें। इसी प्रकार नित्य क्रिया से 31वें दिन तक एकत्रित चूरमे को हनुमानजी के मन्दिर में दान-दक्षिणा के साथ अर्पित कर दें। इसके अतिरक्त एक विधि यह भी है कि नित्य प्रस्तुत चूरमा मन्दिर में अर्पित कर दे या बन्दर को खिला दे।
नित्य 41 माला 31 दिन तक करें। तत्पश्चात् विधिपूर्वक दशांश हवन करे या करवाए। इस क्रिया से साधक की योग्याता व आवश्यकतानुसार हनुमानजी अपने साधक का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मागदर्शन अवश्य करते हैं और भी कई अनुभव होते हैं जिसका अनुभव साधक स्वयं करता है।