मां की विदाई से दुख सब को होता है पर बिहार के लोग शायद यह दुख सब के साथ नही महसूस करते इसलिए बिहार की मां सबसे बाद मे विदा होती है। इसलिए सबसे खास लगा बिहार की दुर्गा पूजा।
यूँ तो दुर्गा पूजा में कई शहरों में रहने का मौका मिला है। लेकिन ये पहला मौका था। की बिहार की दुर्गा पूजा में शामिल होने का अवसर मिला। हो सकता है कई जगहों की पूजा में तकनीक और मूर्तिकला का ज्यादा अच्छा हो उदाहरण (जैसे इलाहाबाद कोलकत्ता मुंबई सभी) देखने को मिलता हो, पर जो अपनापन बिहार की पूजा में मिलता है। वो शायद ही कहीं महसूस होता है। इस बार भी पटना की पूजा में वही अपनापन और जोश देखने को मिल रहा था। पर असली आकर्षण तो वो पंडाल थे जहाँ तकनीक का इस्तेमाल कर प्रदर्शन किया गया
था। लाइट और साउंड के प्रयोग से दिखाया जा रहा था। की किस प्रकार देवी दुर्गा महिसासुर का वध कर रही हैं. जलती बुझती रौशनी के बीच एक त्रिशूल और तीर आके महिसासुर को लगता था. साथ ही बैक ग्राउंड में अट्टहास और अन्य आवाज़ प्रदर्शन को जीवंत बना रही थी। एक अन्य पंडाल में राक्षश के मुख में गुफा की शक्ल दी गयी थी। और अन्दर में देवी की प्रतिमा स्थापित की गयी थी. बाहर करीब 20-25 फीट ऊँचा पहाड़नुमा आकृति थी जिस पर
भागीरथ द्वारा गंगा को धरती पे लाने का दृश्य दिखाया गया था। जलती – बुझती रोशनी और साउंड इफ्फेक्ट के बीच पानी की निकलती धारा गंगा के धरती पे आने का उत्तम प्रदर्शन था. इन जगहों पे लोगों की भीड़ बेकाबू हो रही थी। बिहार में दुर्गा पूजा बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है । नवरात्री के कुछ दिन पहले ही बंगाल की तरह यहाँ भी मंदिरों में पूजा अर्चना शुरू हो जाती है। मंदिरों में भक्तो की भीड़ जमा होने लगती है। सुबह से ही पूजा अर्चना शुरू हो जाती है, दुर्गा पूजा के इस अवसर पर अनेक रंगा रंग प्रोग्राम हो रहे है। इस अवसर पर बिहार में अनेक गायक आते है। और अपने प्रस्तुति के द्वारा दर्शको का खूब मनोरंजन करते है। और दर्शक भक्ति रस में तल्लीन हो जाते है। कई जगहों पे मूर्तियों की सुन्दरता भी देखते ही बनती थी. साथ की सजावट
से इसमें चार चाँद लग गया था। रोड के दोनों तरफ ट्यूब लाइट की रौशनी पुरे पटना को जगमग बना रही थी. मुख्य सड़कों का शायद ही कोई इलाका दिखा जहाँ रोशनी नहीं थी. सड़कों पे पूरी चहल पहल दिख रही थी. कारों और बाइक का काफिला कई जगहों पे अटका पड़ा था। उनकी गति भी पैदल चलने वालों के सामान ही धीमी थी. हाथों में हाथ डाले लोग (जोड़े) अब पटना की सड़को पर सभी बड़े बेफिक्र से घूम रहे थे। और पूजा का आनंद उठा रहे थे. मुझे याद है कॉलेज के वो दिन जब इन्ही पटना की सड़कों पे ऐसे लोग शायद ही दिखते थे. इसी भीड़ में कई युवा जोड़ों को पीछे छोड़ता हुआ एक बुजुर्ग जोड़ा एक दूसरे का हाथ पकडे तेज़ी से आगे निकलता हुआ दिखा. माता – पिता या बड़े भाई – बहन अक्सर छोटे भाई – बहनों का हाथ पकड़ कर इसलिए चलते हैं कि कहीं खो न जाएँ. कई लोग इस भीड़ में खो भी जाते हैं. ऐसे में इस बार भी जगह – जगह पे पंडालों में
अनाउंस किया जा रहा था. सड़क के दोनों किनारों पर दुकाने सजी थी बच्चे और बूढ़े इन दुकानों पर खाने का मजा ले रहे थे। बिहार के दुर्गा पूजा की सबसे बड़ी विशेषता यह है। की यहाँ की पूजा नवरात्री के बाद भी चलती रहती है। सभी लोग सब कुछ भूल कर एकता का परिचय दे रहे थे। लेकिन इस भीड़ में कुछ अपने थे तो कुछ पराये। फिर भी
सभी संस्कृति का मिसाल पेश कर रहे थे।
दिलीप पाठक
इंडिया हल्ला बोल