"समाजवाद की आंधी में उड़ा सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला"

अप्रत्याशित, अदभुत, अकल्पनीय..| यह तीनो शब्द वैसे तो एक दूसरे के पर्याय हैं ,लेकिन यहाँ इन तीनो का उल्लेख करना आवश्यक है | अप्रत्याशित  इस लिए क्योंकि समाजवादियो की इस  जीत की प्रत्याशा नहीं की गयी थी | अदभुत इसलिए क्योंकि यह जीत वाकई अदभुत थी और ऐसी जीत समाजवादियो ने पहले नहीं की थी | अकल्पनीय इस लिए क्योंकि मीडिया क्या खुद समाजवादियो ने इसकी कल्पना नहीं की होगी | समाजवादियो की इस जीत के कई कारण गिनाए जा सकते हैं | अखिलेश यादव के  कुशल राजनीतिक प्रबंधन व संयत भाषा और जमीनी मुद्दों से जुड़ाव के ही कारन यह जीत संभव हुई है |

वही उनके समकक्ष कांग्रेसी युवराज राहुल गाँधी चुनाव भर सिर्फ अपने आक्रामक भाषणों ,तल्ख़ -तीखे टिप्पणियों और बाहें बटोरकर एंग्रीयंग मैन की  छवि दिखाई और जमकर तालियाँ बटोरी ,लेकिन इन तालियों को ई वी एम तक नहीं  पहुंचा सके | लोकतंत्र में जनता को सिर्फ वादों से नहीं मोहा जा सकता है | उन वादों में जमीनी सरोकार का होना आवश्यक है, उन्हें अपने जीवन निर्वाह में कुछ ठोस निर्णयों का इन्तजार रहता है ,यहाँ इस ठोस निर्णय की कमी दिखी और यही कारण रहा की ई वी एम में यह लाक नहीं हो सका |

इसके अलावा नेताओं का बडबोलापन भी कांग्रेस को ले डूबा | चुनाव के दौरान श्री प्रकाश जयसवाल ,बेनीप्रसाद वर्मा ,पी एल पुनिया समेत नेताओं ने परस्पर जनभावना को ठेस पहुँचाने वाले बयान देते रहे | राष्ट्रपति शासन वाला बयान देने वाले श्री प्रकाश जी के जनपद में कांग्रेस को केवल एक सीट मयस्सर हुई | इसके अलावा बेनी बाबू को तो  अपने गृह जनपद में ही अपने पुत्र राकेश वर्मा को नहीं जिता पाए | इससे बुरी दुर्गति की आशा कांग्रेस ने शायद कभी नहीं की होगी|

वही भाजपा में मुख्य चुनाव प्रचारक केवल अतिथि कलाकारों की भूमिका में थे | भाजपा ने पूरे चुनाव भर किसी को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट नहीं किया था ,लगभग सभी नेता अपने आपको सर्वशक्तिशाली बता रहे थे |फलतः खुद प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही पथरदेवा से चुनाव हार गए | इसके अलावा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष केशरी नाथ त्रिपाठी इलाहाबाद दक्षिण से हारे |

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया भी पांच वर्षो तक मुख्यमंत्री आवास के बाहर जनता से मिलने उनके बीच नहीं गईं | अगर उन्हें मिर्जापुर में बिजलीघर या सहारनपुर में किसी पुल का उद्घाटन करना होता तो वह अपने आवास से ही रिमोट से करती थी | उन्हें अपने जाति समीकरणों और नौकरशाहों पर भरोसा जनता से कही ज्यादा थाऔर प्रचार अभियान की शुरुआत भी पहले चरण के चुनाव से बारह दिन पहले ही शुरू किया था | मायावातो को अपने भ्रष्टाचार कभी नहीं दिखाई दिया | पूरे समय वे केंद्र सरकार और पूर्व में सरकारों के किए भ्रष्टाचारो को ही केंद्र बनाती रही |इन पांच वर्षो में वे मीडिया से भी कटी रही |प्रेस कांफ्रेंस में सवाल पूंछने की मनाही थी |

कुल मिलाकर समाजवादी पार्टी की जीत के पीछे का कारण बसपा सरकार के असम्वेदनशील होना था ये नतीजे 2007 के नतीजो से अलग नहीं थे | पिछली बार जहाँ सपा बुरी तरह हारी थी लेकिन वोटबैंक कम नहीं हुए थे ,इस बार बसपा के वोट बैंक केवल एक या डेढ़ फीसदी कम हुए ,सीटे 120 से कम हुई |मतलब साफ़ है सपा बसपा की अपने वोट बैन सुरक्षित हैं | केवल सवर्ण ,अति पिछड़े और मुसलमान का एक बड़ा हिस्सा जिसके साथ चला जाता है वही सरकार बनाता है |और यही फार्मूला अबकी बार समाजवादियो को फायदा दे गया |

अभिषेक द्विवेदी —

[इण्डिया हल्लाबोल स्पेशल डेस्क}

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