दादा देखो…चरमरा रही हैं भारतीय अर्थव्यवस्था

रिजर्व बैंक पिछली दर्जन भर बैठकों से लगातार ब्याज दरों में वृद्धि कर रहा है. साथ ही संकेत दे रहा है। कि मंहगाई को कम करना उनकी प्राथमिकता है। और इसके लिए अभी और कड़े कदम भी उठाये जा सकते है मतलब साफ़ है। कि अभी कुछ और बैठकों में भी ब्याज दरें बढने का सिलसिला बदस्तूर जारी रह सकता है.। रिजर्व बैंक के ब्याज दरों में बढोत्तरी के कारण ही देश भर के सभी छोटे और बड़े बैंकों ने कर्ज मंहगा कर दिया है.। असल में इस पूरी कवायद के पीछे मकसद लोगों की purchasing power यानि खरीदने की शक्ति को प्रभावित करना होता है.। कर्ज महंगा होने से लोग कर्ज लेने से बचेंगे जिससे मांग में कमी आएगी और मंहगाई पर काबू पाया जा सकेगा.। क्योकि अर्थशास्त्र का सिद्धांत कहता है। कि जहाँ मांग पूर्ती से अधिक हो वहां पर ही मंहगाई जैसी समस्याएं सामने आती है.।

रिजर्व बैंक के साथ-साथ भले सरकार ने यथार्थ के धरातल पर कोई कदम ना उठाए हो पर देश के वित्त मंत्री प्रणव दा के भाषणों में भी ये दावे लगातार किये जा रहे है। की मंहगाई को कम करने के लिए सरकार सख्ती से कदम उठा रही है.। कदम कहाँ उठ रहे है ये देख पाना या समझ पाना मुश्किल है.। रिजर्व बैंक और सरकार के इतने कठोर रबैये के बाद भी मंहगाई रुकने का नाम नहीं ले रही। ना तो सब्जी के ठेले पर टमाटर और प्याज के तल्ख़ तेवर नरम पड़ रहे है। ना ही दूध की धार की तरह दूध के दाम नीचे को आ रहे है.। महीने के राशन का परचा छोटा और बिल का आकर लगातार बड़ा होता जा रहा है. सब्जियां भी अब थैलों कि जगह टोकरिओं में ली जाने लगी है। असल में इसे आम आदमी कि मंहगाई कह सकते है। क्योकि आम आदमी पहले दूध सब्जी राशन की सोचता है। और उसके बाद घर या कार लेने की. ये बात गौरतलब है। कि आम आदमी की मंहगाई के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है। क्योकि आम आदमी अपनी किसी भी मद के लिए लोन नहीं लेता अगर वो दूध सब्जी राशन लोन पर लेना शुरू कर दे तो। शायद इस ओर ब्याज बढ़ाना एक सार्थक कदम साबित हो सकता है।. सरकार अभी शायद खास तबके की बारें में सोच रही है। बाद में आमआदमी के बारें में भी सोचेगी.

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