पार्टियों का लोकपाल समर्थन एक दिखावा ?

जिस लोकपाल बिल को अन्ना हजारे शीतकालीन सत्र में आने और पारित हाने की उम्मीद लगाये बैठे थे वह उम्मीद अब अन्ना हजारे की टूटती हुई नजर आ रही हैं। जिसके लिए अन्ना हजारे एक बार फिर अनशन पर जाने की बात कहकर यह कोशिश कर रहे है कि सरकार शीतकालीन सत्र के बचे हुए दिनों में बिल को पेश कर पारित करवाएं, जो नामुमकीन सा दिख रहा है। दरअसल संसद का शीतकालीन सत्र 22 दिसंबर को ख़त्म हो रहा है। जिससे बिल का पारित होना आसान नहीं दिख रहा है। अन्ना का कहना है कि अगर लोकपाल बिल पारित होने में ज्यादा समय लगता है तो संसंद को शीतकालीन सत्र को बढाना चाहिए।

अभी पिछले दिनों अन्ना हजारे ने लोकपाल विधेयक को राजनीतिक ताकत दिलाने के लिए जंतर – मंतर पर राजनेताओं के साथ एक दिन का महाबहस किया। जिसमे कई पार्टियों के नेताओं ने पहुँच कर अपना समर्थन लोकपाल बिल के पक्ष में जताया। अन्ना हजारे ने लोकपाल बिल पास होने में होने वाली देरी के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराया। जिसके बाद अन्ना हजारे की टीम की कोर कमेटी ने आगे की रणनीति के लिए बैठक किया। जिसमे अन्ना हजारे ने सरकार को यह बताने कि कोशिश की कि अगर 20 दिसंबर को संसद में लोकपाल बिल पर बहस नहीं हुई तो वह 27 दिसंबर को मुंबई में फिर से अनशन शुरू करेंगे।

जिसके लिए केंद्र सरकार ने सभी पार्टियों के नेताओ के साथ लोकपाल के मुद्दे पर बात करने के लिए सर्वदलीय बैठक किया। जिसका नतीजा तो यही दर्शाता है कि अभी निकट भविष्य में आम पार्टियों में सहमती नहीं है। जो नेताओं की तरफ इस बात का इशारा करता है कि हाथी के दांत खाने को कुछ और दिखने को कुछ और है। जो लोकपाल का समर्थन तो करती है लेकिन जब बात आम सहमती की आती है तो वह सहमत ही नहीं होते हैं। ऐसे में कांग्रेस की हालत कुछ ठीक नहीं दिख रही है, क्यों कि कांग्रेस को पता है विरोधी पार्टियां ये नहीं चाहेंगी की लोकपाल पारित हो क्यों कि अगर लोकपाल बिल पारित नहीं होगा तो उन्हें होने वाले चुनाव के लिए एक ऐसा मुद्दा मिल जायेगा जिससे जनमत हासिल करने का एक आसान सा कार्य होगा। जिसके लिए पार्टियों ने तो अन्ना के साथ होने की बात तो कर रहे है, साथ में ये भी कोशिश कर रहे है कि लोकपाल अभी फ़िलहाल शीतकालीन सत्र में पास न हो। शायद यही वजह है कि अब तक कई राज्यों के मुख्य मंत्री ने अन्ना के साथ होने की बात कह कर आगामी चुनाव में भ्रष्टाचार और अन्ना के साथ होने की बात उठाकर अपना उल्लू सीधा करेंगे। जिसका एक कारण ये भी हो सकत है कि ये पार्टियों लोकपाल बिल में प्रधान मंत्री , सीबीआई , ग्रुप ‘सी’ और ‘डी’ के कर्मचारियों के मामले को उठाकर टालने की कोशिश कर रही हो।

प्रधानमंत्री के मुद्दे को लेकर कुछ पार्टियों का मानना है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में नहीं आना चाहिए तो वही ज्यादा पार्टियों का मानना है कि कुछ प्रावधानों और सावधानियों के साथ प्रधान मंत्री को लोकपाल के दायरे में आना चाहिए।  कुछ लोग इस बात को लेकर असहमत है कि सीबीआई को लोकपाल को दायरे में नहीं आना चाहिए। वहीं कुछ पार्टियों का कहना है कि सी बी आई को सरकारी नियंत्रण के मुक्त होना चाहिए लोगों को इस बात के लेकर मतभेद है कि अगर ऐसा हुआ तो सीबीआई का लोकपाल से कैसा संबंध होगा। पार्टियों के बीच मतभेद का एक और मुद्दा है, ग्रुप ‘सी’ और ‘डी’ के कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाने का। क्यों की टीम अन्ना का कहना है कि भ्रष्टाचार का सामना अधिकांस लोगों को ग्रुप ‘सी’ और ‘डी’ के कर्मचारियों से करना पड़ता है। इस लिए इसे लोकपाल के दायरे में लाना चाहिए। वहीं सरकार इन ग्रुप ‘सी’ और ‘डी’ के कर्मचारियों के लिए अलग कानून बनाने के पक्ष में है।

अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों के साथ इस समय जनता का समर्थन भले ही हो लेकिन सच्चाई ये भी है कि संसद में जनता के द्वारा भेजे गए सांसदों के द्वारा ही लोकपाल बिल को पारित किया जायेगा। ऐसे में सांसदों का यह दाइत्व बनता है कि सांसद जनता के भरोसे को कायम रखते हुए एक प्रभावी लोकपाल बिल संसद में पेश करे जिससे जनता का भला हो सके।

मानेन्द्र कुमार भारद्वाज
इंडिया हल्ला बोल

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