इस बार राज्यसभा चुनाव अखिलेश यादव के लिए काफी कठिन होंगे : बीजेपी

इस बार राज्यसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश के सामने कड़ी चुनौती पेश करने वाले हैं। 11 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी को सात और सपा को तीन सीटें मिलना तय हैं। जबकि 11वीं सीट के लिए भाजपा और सपा के बीच में संघर्ष होगा। शिवपाल और आजम को लेकर पहले ही पार्टी में खींचतान हो रही है।

ऐसे में यह चुनाव भी अखिलेश के सामने चुनौती पेश करने वाले होंगे। उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की जो 11 सीटें खाली हो रही हैं, उनमें भाजपा के पास 5, सपा के पास 3, बसपा के पास 2 और कांग्रेस के पास एक है। एक सीट जीतने के लिए करीब 38 वोट की जरूरत होगी। भाजपा के पास 273 विधायक है।

ऐसे में उनकी सात सीटों पर जीत पक्की है। एक पर दांव खेलने होगा। वहीं सपा की तीन सीटों पर जीत तय हैं। एक सीट के लिए उन्हें संघर्ष करना होगा। क्योंकि 11 विधायक बचेंगे।विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से ही चाचा शिवपाल और आजम खान की नाराजगी देखने को मिल रही है। इसे लेकर कई दल सपा को घेर चुके हैं।

आजम को लेकर उनके समर्थक भी खुले मंचों से अपना विरोध जता चुके हैं। सपा मुखिया को कई बार सफाई देने पड़ी है। उनके साथ रहने की दुहाई भी देनी पड़ी है।सपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार आजम खान भी अपने के हितैषी के लिए टिकट चाहते हैं। इनके अलावा भी सपा के कई नेता राज्यसभा के लिए अपनी दावेदारी जता रहे हैं।

लेकिन सपा के सामने निष्ठवान और जनाधार वाले नेता को राज्यसभा भेजने की बड़ी चुनौती है। सहयोगी दल के लोग भी अपने-अपने खास को चाहेंगे। ऐसे में पार्टी मुखिया को निर्णय लेना होगा। प्रसपा मुखिया शिवपाल यादव और आजम खां के समर्थक विधायकों ने भी अपना मूड बना लिया होगा। ऐसे में उन्हें भी संभालना होगा।

दशकों से राजनीति में नजर रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विष्लेषक गिरीश पांडेय कहते हैं कि विधानसभा और विधानपरिषद के चुनाव में मिली हार के बाद अखिलेश के सामने कई चुनौतियां है। जिनसे पार पाना अभी मुश्किल दिखाई दे रहा है। जहां तक राज्यसभा चुनाव का सवाल है। उसमें आजम व शिवपाल की बड़ी भूमिका हो सकती है।

क्योंकि इनके समर्थक इधर-उधर कर सकते है। ऐसे में सभी को एकजुट रखने के लिए अखिलेश के सामने चुनौती है। इसके बाद कौन-कौन से नेता राज्यसभा भेजे जाने है। इस पर भी लोग पैनी निगाह रखेंगे। क्योंकि तमाम हारे नेता अब राज्यसभा ही जाना चाहेंगे। क्योंकि सपा और सहयोगी दलों को मिलाकर इनके पास कुल 125 विधायक है।

तीन सीट तो आसानी से निकाल लेगी। अगर चैथी के लिए प्रयास किया तो भाजपा से संघर्ष करना पड़ेगा। विधायकों को भी क्रास वोटिंग से बचाना होगा।ज्ञात है कि राज्यसभा में एक सदस्य के निर्वाचन के लिए 37.63 वोटो की जरूरत होती है। सपा के पास 111 विधायक हैं। उसके गठबंधन सहयोगी रालोद के पास 8 और सुभासपा के पास 6 विधायक हैं।

सपा गठबंधन अगर तीन प्रत्याषी उतरता है तो उसे 113 विधायकों की जरूरत होगी। ऐसे में उसके पास 12 विधायक अतरिक्त बचेंगे। दो सीटों का सहयोग कांग्रेस भी कर सकती है। वहीं भाजपा के पास वर्तमान में 255 विधायक हैं। सहयोगी अपना दल के पास 12 व निषाद पार्टी के पास 6 है। इस हिसाब से सात सीटे पक्की है।

इसके बाद गठबंधन के बाद 12 विधायक बचते हैं। राजा भाइया की पार्टी जनसत्ता दल के दो विधायकों का साथ मिल सकता है। पार्टी को इनके समेत दूसरी वरीयता के वोटों के साथ 8 सीटें जीतने की स्थित में है। अगर 9वां प्रत्याशी उतरा तो उसे सपा के वोंटो पर सेंधमारी करनी पड़ेगी।

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