दिल्ली विश्वविद्यालय में सैलरी नहीं मिलने पर शिक्षकों ने दिया ऑनलाइन धरना

दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने दिल्ली सरकार के पूर्ण वित्त पोषित 12 कॉलेजों की ग्रांट रिलीज कराने की मांग दिल्ली के मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री से की है। ग्रांट रिलीज कराने की मांग को लेकर डूटा के नेतृत्व में शिक्षकों ने घरों में ही रहकर ऑनलाइन धरना दिया।

डूटा के मुताबिक ग्रांट रिलीज न किए जाने से अतिथि, एडहॉक और कंट्रक्च कर्मचारियों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। पिछले तीन महीने से इन शिक्षकों को सैलरी नहीं मिली है।डूटा के अध्यक्ष राजीब रे ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक एक बार फिर दिल्ली सरकार के साथ टकराव की स्थिति में हैं।

दिल्ली सरकार द्वारा 100 फीसदी वित्त पोषित 12 कॉलेजों को अनुदान दिए जाने में देरी हो रही है, कर्मचारियों को वेतन जारी करने में देरी हो रही है।उन्होने कहा कि डूटा अनुदानों को समय पर जारी करने के प्रति दिल्ली सरकार के आपराधिक लापरवाह रवैये की निंदा करता है।

क्योंकि इससे संस्थानों के शैक्षणिक कामकाज पर हानिकारक प्रभाव पड़ा है और महामारी के इस कठिन समय में कर्मचारियों को भारी कठिनाई हुई है।राजीब रे ने कहा कि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल द्वारा इन महाविद्यालयों के लिए सहायता अनुदान के रूप में 28 करोड़ की राशि जारी करने के बारे में की गई भव्य घोषणाओं के बावजूद, तथ्य यह है कि अपर्याप्त अनुदान के कारण वेतन और अन्य बकाया राशि के वितरण में देरी हो रही है।

डूटा ने मंगलवार को एक दिवसीय हड़ताल की।इसके तहत एक ऑनलाइन विरोध बैठक आयोजित की गई, जिसमें बड़ी संख्या में शिक्षकों ने भाग लिया। शिक्षकों के मुताबिक दिल्ली सरकार की चूक और कृत्यों से शैक्षणिक वातावरण को दूषित किया जा रहा है।

अनुदानों को तत्काल जारी करने की मांग करते हुए, शिक्षकों ने सरकार को ऐसा करने में विफल रहने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी।वहीं डीटीए के अध्यक्ष डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि दिल्ली सरकार के पूर्ण वित्त पोषित 12 कॉलेजों के हजारों शैक्षिक और गैर-शिक्षण कर्मचारियों और उनके परिवारों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।

एक तरफ कोविड 19 महामारी और दूसरी तरफ उन्हें अप्रैल-जुलाई महीने से वेतन का भुगतान न होना है। उन्होंने बताया है कि इनमें बहुत से अतिथि, एडहॉक और कंट्रक्च ुअल कर्मचारियों को हर महीने मकान का किराया, ईएमआई ,मकान की किस्त, गाड़ी की किस्त, बच्चों की फीस आदि भरनी पड़ती है।

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