अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ पर 2009 से एकछत्र राज करने वाले प्रफुल्ल पटेल ने जब भी असंतोष के स्वर उठे, उन्हें दबा दिया, वह नियत कार्यकाल से अधिक समय तक पद पर बने रहे लेकिन आखिर में उन्हें उच्चतम न्यायालय ने बाहर का रास्ता दिखा दिया।पटेल का तीसरा कार्यकाल दिसम्बर 2020 में समाप्त होना था, लेकिन वह 2017 से उच्चतम न्यायालय में लंबित एक मामले की दुहाई देकर अपने पद से चिपके रहे।
उन्होंने नये संविधान के मसले पर शीर्ष अदालत का फैसला आने तक चुनाव कराने से भी इनकार कर दिया था।यही कारण है कि उच्चतम न्यायालय को एआईएफएफ के संचालन और राष्ट्रीय खेल संहिता के दिशानिर्देशों के अनुरूप इसके संविधान को लागू करने की दिशा में उचित कदम उठाने के लिए पूर्व न्यायाधीश एआर दवे की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय प्रशासकों की समिति नियुक्त करने के लिए मजबूर किया।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी और भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान भाष्कर गांगुली सीआईए के दो अन्य सदस्य हैं। यह पिछले 85 वर्षों में पहला अवसर है जबकि प्रशासकों की समिति एआईएफएफ का कार्यभार संभालेगी। इससे पहले उसने कभी चुनावों को नहीं टाला था लेकिन पटेल की अगुआई में यह नया चलन शुरू हो गया था।
पटेल ने पहली बार 2008 में एआईएफएफ के तत्कालीन प्रमुख प्रियरंजन दासमुंशी को दिल का दौरा पड़ने के बाद अध्यक्ष पद संभाला था क्योंकि तब वह वरिष्ठ उपाध्यक्ष थे।इसके बाद पटेल 2009 में पूर्णकालिक अध्यक्ष बन गये और फिर लंबे समय तक इसके सव्रेसर्वा बने रहे और अब सीओए के आने से उनका कार्यकाल समाप्त हुआ।
गांगुली ने शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत किया और इसे भारतीय फुटबॉल की बड़ी जीत करार दिया।एआईएफएफ की राज्य इकाईयों को उच्चतम न्यायालय से इस तरह के फैसले की उम्मीद थी, हालांकि वे खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं।