केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट आज सुना सकती है अपना फैसला

केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच फैसला सुना सकती है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। जिसमें कोर्ट ने कहा था कि उपराज्यपाल (एलजी) ही दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया हैं और कोई भी फैसला उनकी मंजूरी के बिना नहीं लिया जाए।

दिल्ली सरकार की याचिकाओं पर सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने पिछले साल 2 नवंबर से सुनवाई शुरू की थी। महज 15 सुनवाई में पूरे मामले को सुनने के बाद 6 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। आप सरकार की ओर से पी चिदंबरम, गोपाल सुब्रह्मण्यम, राजीव धवन और इंदिरा जयसिंह जैसे नामी वकीलों ने दलीलें रखीं।

एक सुनवाई में कोर्ट ने कहा था चुनी हुई सरकार के पास कुछ शक्तियां होनी चाहिए, नहीं तो वह काम नहीं कर पाएगी। वहीं, केंद्र और उपराज्यपाल की ओर से दलील दी गई थी कि दिल्ली एक राज्य नहीं है, इसलिए उपराज्यपाल को यहां विशेष अधिकार मिले हैं।

फरवरी, 2015 में दूसरी बार सत्ता के आने के बाद से आप सरकार उपराज्यपाल के साथ अधिकारों की लड़ाई में उलझी है। पहले तत्कालीन एलजी नजीब जंग के द्वारा नियुक्तियां रद्द करने पर केजरीवाल ने उन्हें केंद्र सरकार का एजेंट बताया।

इसके बाद उन्होंने जंग की तुलना तानाशाह हिटलर तक से की। दिसंबर, 2016 में अनिल बैजल के एलजी बनने के बाद से अब तक अधिकारों की लड़ाई जारी है। मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट के बाद अधिकारियों की हड़ताल और घर-घर राशन वितरण की योजना को मंजूरी नहीं देने पर भी विवाद रहा।

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