सुषमा स्वराज ने कहा कि संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए क्योंकि यह लोगों के मष्तिष्क को शुद्ध करती है और इस तरह से पूरे विश्व को पवित्र करती है.बैंकाक में 60 देशों के संस्कृत विद्वानों के पांच दिवसीय सम्मेलन की रविवार को शुरूआत हुई.इस सम्मेलन में उद्घाटन भाषण में सुषमा ने संस्कृत को ‘आधुनिक और सार्वभौमिक’ भाषा करार दिया और कहा कि इसकी परंपरा गंगा नदी के तुलनीय है. 600 से अधिक संस्कृत विद्वानों की मौजूदगी वाले इस सम्मेलन में सुषमा ने अपना पूरा भाषण संस्कृत में दिया.
उन्होंने कहा, ‘‘गोमुख से निकलने और गंगा सागर जहां यह समुद्र में गिरती है, तक पहुंचने में गंगा पवित्र बनी रहती है. उसने सहायक नदियों को पावन बनाया जिनको गंगा की प्रकृति मिली. इसी तरह संस्कृत है जो स्वयं तो पवित्र है ही और अन्य जो भी उसके संपर्क में आया, उन सभी को पवित्र बनाया.’’विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘ऐसे में संस्कृत को प्रचारित-प्रसारित किया जाना चाहिए ताकि यह लोगों के मस्तिष्क को शुद्ध करे और इस तरह से पूरे विश्व को पवित्र करे. आप संस्कृत के विद्वान लोग संस्कृत की पवित्र गंगा में स्नान करते हैं और सौभाग्यशाली हैं.’’
‘16वें विश्व संस्कृत सम्मेलन’ में मुख्य अतिथि के तौर पर अपने संबोधन में सुषमा ने यह भी ऐलान किया कि विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (संस्कृत) का पद तैयार किया गया है.उन्होंने कहा, ‘‘मौजूद समय में आप जानते हैं कि वैज्ञानिकों का विचार है कि भाषा पहचान, अनुवाद, साइबर सुरक्षा और कृत्रिम खुफिया सेवा के दूसरे क्षेत्र के लिए सॉफ्टवेयर विकसित करने में संस्कृत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.’’
सुषमा ने कहा, ‘‘संस्कृत का ज्ञान तापमान में बढ़ोतरी, अरक्षणीय खपत, सभ्यताओं के टकराव, गरीबी, आतंकवाद जैसी समकालीन समस्याओं के समाधान तक ले जाएगा.’संस्कृत के एक श्लोक का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि तुच्छ मानसिकता के लोग कुछ लोगों को अपने और कुछ को दूसरे ग्रह से आए व्यक्ति के तौर पर भेद करते हैं, जबकि व्यापक सोच वाले लोग पूरे ब्रह्मांड को अपना मानते हैं.
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘हमारा प्रयास शास्त्र और विज्ञान के अध्ययन में अंतर को कम करने की दिशा में है.’’यह पहली बार है कि विश्व संस्कृत सम्मेलन में सुषमा की वरिष्ठता के स्तर का कोई केंद्रीय मंत्री शामिल हुआ है और यह इस बात का संकेत है कि राजग सरकार इस प्राचीन भाषा के प्रचार-प्रसार को कितना महत्व देती है.मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी दो जुलाई को इस सम्मेलन के समापन समारोह में शामिल होंगी. पहला संस्कृत सम्मेलन 1972 में दिल्ली में हुआ था.
इस बार भारत से 250 संस्कृत विद्वान भाग ले रहे हैं जिनमें करीब 30 राष्ट्रीय सेवक संघ की संस्था संस्कृत भारती से हैं.संस्कृत भारती की भूमिका की सराहना करते हुए सुषमा ने कहा कि यह संस्था न सिर्फ भारत, बल्कि विश्व के कई देशों में बोलचाल से संबंधित पाठ्यक्रमों का संचालन करके संस्कृत को बढ़ावा दे रही है.उन्होंने संस्कृत के विद्वानों से संस्कृत की पढ़ाई की गुणवत्ता में सुधार करने और इसे आकर्षक बनाने का आग्रह किया.
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘संस्कृत की प्रशंसा करना और इसके गुणों को बताना पर्याप्त नहीं है. संस्कृत विद्वानों को इसको लेकर चर्चा करनी चाहिए कि भाषा के विकास के लिए क्या किया जाना है. संस्कृत की पढ़ाई आकर्षक होनी चाहिए, इसकी गुणवत्ता में सुधार होना चाहिए और संस्कृत में शोध अधिक कार्यात्मक होने चाहिए.’’
सुषमा ने कहा कि संस्कृत को आधुनिक विषयों से जोड़ने, समकालीन मुद्दों पर साहित्य का विकास करने से संस्कृत को जोड़ने की जरूरत है और इस कार्य को संस्कृत के विद्वानों को अपने हाथ में लेने की जरूरत है.उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा विषय है जो समकालीन चिंताओं का निवारण करता है और इसे लोगों द्वारा स्वीकार किया जाएगा, अध्ययन होगा तथा फिर यह लोकप्रिय एवं प्रासंगिक होगा.विदेश मंत्री ने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ने संस्कृत में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विद्वान के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्कृत पुरस्कार देने का फैसला किया है. इस पुरस्कार के तहत 20,000 डॉलर की राशि और प्रमाणपत्र दिया जाएगा.