रोहिणी साइबर थाना पुलिस ने किया दिल्ली में फर्जी डिग्री बेचने वाले गैंग का पर्दाफाश

रोहिणी साइबर थाना पुलिस ने बड़े शैक्षिक संस्थानों में दाखिला दिलाने और फर्जी डिग्री बेचने वाले अंतरराज्यीय गैंग का पर्दाफाश करते हुए एक शातिर जालसाज को धर दबोचा।गैंग अब तक जाने माने विश्वविद्यालयों और स्कूल बोर्ड के एक हजार से ज्यादा जाली सार्टििफकेट और मार्कशीट बेच चुका है।

इससे करोड़ों की कमाई भी कर चुका है। इसका नेटवर्क पूरे देशभर में फैला है।  पुलिस को शक है कि फर्जी डिग्री की सहायता से युवाओं ने विभिन्न बड़े संस्थानों में नौकरी भी हासिल की है। पकड़े गए आरोपी की पहचान शकरपुर निवासी जितेंद्र कुमार साहू के रूप में हुई है।
वह मूलरूप से ओडिशा का रहने वाला है।

आरोपी के कब्जे से लैपटॉप, सीपीयू, वाईफाई डोंगल, पांच मोबाइल फोन, पांच सिमकार्ड, एटीएम कार्ड और 65 नकली मार्कशीट जब्त की हैं। दीपक कुमार नामक युवक ने 15 अप्रैल को रोहिणी साइबर थाना पुलिस को शिकायत दी थी।

उसने बताया कि उसने यमुना आईएएस संस्थान के विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश के संबंध में एक ऑनलाइन विज्ञापन देखा था। वह दिए पते पर पहुंचा तो उसकी मुलाकात आरोपी से हुई। आरोपी ने बीएचएमएस पाठ्यक्रम में प्रवेश दिलाने का आासन दिया और इसकी एवज में तीन लाख रुपयों की मांग की।

उसने आरोपी के खाते में ढाई लाख रु पए जमा भी करा दिए। वह छह महीने तक उसको टालता रहा। एक दिन जब वह उसके ऑफिस गया तो वहां ताला लगा था। फोन भी स्वीच ऑफ था। पुलिस ने मामला दर्ज किया।

एसीपी सुभाष वत्स की देखरेख में एसएचओ अजय दलाल, एसआई सोहनलाल, एसआई चेतन, महिला एसआई शिप्रा, कांस्टेबल निजामुद्दीन और प्रमोद को आरोपी को पकड़ने का जिम्मा सौंपा गया। पुलिस ने जांच कर आरोपी को पकड़ लिया।

आरोपी वेदांग आईएएस अकादमी में गणित और रिजनिंग पढ़ाता था। कोरोना की वजह से उसकी नौकरी चली गई। इसके बाद,उसने स्कूल और कॉलेजों में एडमिशन लेने वालों की लिस्ट बनाई। अखबारों और सोशल मीडिया पर एजेंसी का विज्ञापन देकर अपने शिकार की तलाश करना शुरू किया।

वह नकली मार्कशीट बनाने का धंधा करने वालों के भी संपर्क में आया और फर्जी मार्कशीट तैयार करने लगा।गैंग वेबसाइट हैक करके विश्वविद्यालयों/बोडरे के डेटा चार्ट में सेंध भी लगाया करता है। इसके बाद वह छात्रो से संपर्क किया करते थे।

गैंग मार्कशीट आदि दस्तावेज बनाने के लिये नकली होलोग्राम और टिकटों के साथ हाई-टेक प्रिंटर और स्कैनर का इस्तेमाल करते थे। ये दस्तावेज छात्रों को डाक के जरिये भेजा करते थे। विश्वविद्यालय की वेबसाइटों के झूठे डोमेन नाम बनाकर डिग्री डाउनलोड करने के लिए लिंक भी भेजा करते थे।

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