मोहन भागवत ने छेड़ी आरक्षण पर बहस

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संघ के संरसंघचालक मोहन भागवत ने अब आरक्षण जैसे अतिसंवेदनशील मुद्दे पर बहस छेड दी है.आरक्षण पर राजनीति और इसके दुरूपयोग का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सुझाव दिया है कि एक समिति बने जो तय करे कि कितने लोगों को और कितने दिनों तक आरक्षण की आवश्यकता होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ऎसी समिति में राजनीतिकों से ज्यादा सेवाभावियों का महत्व होना चाहिए.

गुजरात में पाटीदार और राजस्थान में गुर्जर सहित कई क्षेत्रों में कई जातियों को आरक्षण देने की बढती मांगों की पृष्ठभूमि में संघ के संरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने संगठन के मुखपत्रों पांचजन्य और ऑर्गेनाइजर में दिए साक्षात्कार में यह सुझाव दिया है.आरक्षण पर राजनीति और उसके दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सुझाव दिया है कि एक समिति बनाई जानी चाहिए जो यह तय करे कि कितने लोगों को और कितने दिनों तक आरक्षण की आवश्यकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी समिति में राजनीतिकों से ज्यादा ‘सेवाभावियों’ का महत्व होना चाहिए।

उन्होंने कहा, संविधान में सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग पर आधारित आरक्षण नीति की बात है तो वह वैसी हो जैसी संविधानकारों के मन में थी. वैसा उसको चलाते तो आज ये सारे प्रश्न खड़े नहीं होते. उसका राजनीति के रूप में उपयोग किया गया है..उन्होंने कहा, हमारा कहना है कि एक समिति बना दो, जो राजनीति के प्रतिनिधियों को भी साथ ले, लेकिन इसमें चले उसकी जो सेवाभावी हों। उनको तय करने दें कि कितने लोगों के लिए आरक्षण आवश्यक है और कितने दिनों तक उसकी आवश्यकता पड़ेगी.

दबाव की राजनीति के बारे में एक सवाल के जवाब में मोहन भागवत ने कहा, प्रजातंत्र की कुछ आकांक्षाएं होती है, लेकिन दबाव समूह के माध्यम से दूसरों को दुखी करके इन्हें पूरा नहीं किया जाना चाहिए. सब सुखी हों, ऐसा समग्र भाव होना चाहिए.सत्ता और समाज के बीच संघर्ष पर सरसंघचालक ने कहा कि सत्ता और समाज के आपसी सहयोग से देश बना है, इसके संघर्ष से नहीं. एकात्मक मानवदर्शन बिल्कुल व्यवहारिक बात है, इसे धरती पर उतारने के लिए हमको और कुछ करना पड़ेगा। जब तक हम प्रयोग द्वारा वह नहीं दिखा पाते, तब तक इसकी व्यवहारिकता सिद्ध नहीं कर सकते.

आरक्षण के मुद्दे पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि आरक्षण समाज के कमजोर वर्ग को बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए 10 वर्ष के लिए लागू किया गया था. राजनेताओं ने इस पर राजनीति की और आरक्षण बढ़ता गया.

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