भारतीय स्टेट बैंक के पांच बैंकों के एसबीआई में विलय के विरोध में देश भर के बैंक कर्मचारी एवं अधिकारी 13 जुलाई को हड़ताल करेंगे.बैंक कर्मचारियों के सबसे बड़े संगठन अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) तथा अखिल भारतीय बैंक अधिकारी संघ (एआईबीओए) ने हड़ताल का आवान किया है. इसके अलावा एसबीआई की पांचों अनुषंगी बैंकों के कर्मचारी एवं अधिकारी 12 जुलाई को भी हड़ताल पर रहेंगे.
इनमें स्टेट बैंक ऑफावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ बिकानेर एंड जयपुर तथा स्टेट बैंक ऑफ पटियाला शामिल हैं.एआईबीईए के महासचिव सीएच वेंकटाचलम ने आज यूएनआई को बताया कि कर्मचारी तथा अधिकारी संघों के प्रतिनिधियों ने पिछले दिनों वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात कर प्रस्तावित विलय के विरोध में अपना पक्ष रखा.
उन्होंने कहा हमने उन्हें बताया कि इन बैंकों को बंद कर एसबीआई में इनका विलय अपरिहार्य नहीं है. हमने वित्त मंत्री से कहा कि ऐसे समय जब बैंक जोखिम में फंसे ऋण के मामले में उलझे हुये हैं और बैंकों को मजबूत किये जाने की ज्यादा जरूरत है बैंकों के विलय को प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिये.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में गत सप्ताह हुई मंत्रिमंडल की बैठक में देश के सबसे बडे वाणिज्यिक बैंक एसबीआई में उसके पाँच अनुषंगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक के विलय के प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी प्रदान कर दी गई. लेकिन, इस प्रस्ताव को एक बार फिर मंत्रिमंडल के समक्ष लाना पड़ेगा क्योंकि कुछ कानूनी पहलुओं का समाधान किया जाना बाकी है.
वेंकटाचलम ने बताया कि श्री जेटली ने अपनी तरफ से बैंकों को और अधिक मजबूती देने तथा वैिक स्तर पर बड़े बैंकों की श्रेणी में शामिल होने लायक बनाने की केंद्र सरकार की नीतियों के बारे में समझाने की कोशिश की. वहीं, बैंक प्रतिनिधियों ने अपना पक्ष दोहराते हुये उनसे विलय के फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया.
उन्होंने कहा कि जेटली के रुख से ऐसा लगता है कि सरकार विलय प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के मूड में है और दोनों संघों ने हड़ताल के जरिये अपना विरोध जताने का फैसला किया है.एआईबीओए के महासचिव एस. नागार्जन ने बताया कि सोमवार को सभी केंद्रों पर कर्मचारी एवं अधिकारी प्रदर्शन कर रहे हैं. 30 जून को वे राज्यों की राजधानियों में प्रदर्शन करेंगे और इसके बाद 13 जुलाई को पूर्ण हड़ताल होगी.
उन्होंने आरोप लगाया कि बैंकिंग क्षेा में सुधार के नाम पर सरकारी बैंकों को निजी करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि इन बैंकों को निजी कॉपरेरेट घरानों के हवाले कर उन्हें आम लोगों की बचत लूटने दी जाये।वेंकटाचलम और नागार्जन ने कहा कि बैंकों के कारोबार का विस्तार कर उनका आकार बढ़ाने की जगह सरकार उनका विलय कर उनका आकार बढ़ाने का प्रयास कर रही है.
उन्होंने कहा कि देश को मजबूत सरकारी बैंकों की आवश्यकता है और इसके लिए जरूरी नहीं है कि उनका आकार बड़ा हो. सरकार का ध्यान 13 लाख करोड़ रुपये के जोखिम में फंसे कर्ज पर होना चाहिये. कड़े कदम उठाकर इनकी वसूली की जानी चाहिये, न/न कि इनके लिए प्रावधान किये जाने चाहिये और इन्हें बट्टे खाते में डाला जाना चाहिये.