आज पीएम मोदी के साथ वाराणसी पहुंचेंगे फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों

पीएम मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों आज वाराणसी पहुंचेंगे। दोनों यूपी में करीब साढ़े पांच घंटे बिताएंगे। इस दौरान दोनों राज्यभर में करीब 1500 करोड़ से अधिक के प्रोजेक्टस का लोकार्पण और शिलान्यास करेंगे। पीएम मोदी वाराणसी में बनने वाले 1000 की क्षमता वाले विधवा आश्रम का एलान भी कर सकते हैं।

मोदी भारत दौरे पर आए राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों की भी भव्य खातिरदारी करेंगे।उन्हें नाव से गंगा की सैर कराएंगे और वाराणसी के घाट दिखाएंगे। बताया जा रहा है कि सुरक्षा के मद्देनजर आखिरी समय में कुछ कार्यक्रम रद्द किए जा सकते हैं। जापान के पीएम शिंजो आबे के बाद मैक्रों वाराणसी वाले दूसरे राष्ट्राध्यक्ष होंगे। जापान के पीएम शिंजो आबे ने यहां गंगा आरती भी की थी।

पीएम मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों मिर्जापुर जिले के छानबे दादर कला गांव में प्रदेश के सबसे बड़े सोलर पावर प्लांट का शुभारंभ करेंगे। 650 करोड़ की लागत से 382 एकड़ में बना ये प्लांट 18 महीनों में तैयार हुआ है। इसमें 3 लाख 18 हजार सोलर प्लेटें लगाई गई हैं। गांव के प्रधान विजय कुमार बिन्द ने बताया कि गांव में सिर्फ पांच लोग ग्रेजुएट हैं।

तीन हजार की आबादी में एक व्यक्ति शिवशंकर पाल सरकारी नौकरी में है। बाकी युवा रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। इतना बड़ा प्लांट लगने में सिर्फ 18 महीने लगे, लेकिन अभी तक किसी को रोजगार नहीं मिला। यहां सिर्फ एक प्राथमिक और जूनियर हाई स्कूल है।12 मार्च को दरभंगा घाट स्थित ब्रज रमा पैलेस पहुंचते ही 21 ब्राह्मण वैदिक मंत्रों के साथ मोदी और मैक्रों का स्वागत करेंगे। दोनों यहीं लंच लेंगे।

पैलेस की ऊपरी मंजिल पर स्थित ओपन रेस्टोरेंट को काशी का लुक देने के लिए घाटों पर लगने वाली छतरियों को लगाया गया है।लंच के बाद दोनों नेता यहां भारत की पहली अनोखी हैंड लिफ्ट भी देखेंगे। रेस्टोरेंट में दोनों नेता सोलर एनर्जी, एजुकेशन, कल्चर, गंगा घाटों के विकास, हेरीटेज बिल्डिंगों पर बातचीत करेंगे।

बीएचयू के प्रोफेसर आर श्रीवास्तव बताते है कि नागपुर के राजा मुंशी श्रीधर ने 1812 में महल का निर्माण कराया था। 1920 में इसको दरभंगा नरेश कामेश्वर नाथ ने खरीद लिया और नाम दरभंगा पैलेस रख दिया। उस समय रानी और राजमाता के गंगा स्नान के लिए महल के पिछले हिस्से से निकलती थीं। दासियां गलियों, सीढ़ियों और घाट पर साड़ियों से घेरा बना देती थी।

बाद में नरेश कामेश्वर नाथ ने लकड़ी और लोहे के चक्र पर चलने वाली पहली हैण्ड लिफ्ट को दरभंगा महल में लगवाया। रानी और राजमाता को आम जनता न देख पाए इसलिये नरेश कामेश्वर नाथ ने 70 फीट ऊंचे दरभंगा महल के बाहरी हिस्से की मीनार में हाथ से चलने वाली लिफ्ट बनवाई। 35 साल पहले इस पैलेस को स्वर्गीय बृज लाल दास ने खरीद लिया और होटल में तब्दील कर दिया।

पुरानी लिफ्ट को ठीक कराने की काफी कोशिशें की गईं, लेकिन बाद में इसमें इलेक्ट्रिकल लिफ्ट लगवानी पड़ा।पैलेस के जर्जर हिस्सों को ठीक करने और ओल्ड लुक देने में 12 साल लग गए। दिल्ली, जयपुर, साउथ, कोलकाता, बिहार के दर्जनों इंजीनियरों और मजदूरों ने काम करके 1812 और उसके बाद 1920 में कराये गए नक्काशियों में जान डाली। होटल में 32 कमरे हैं।

मोदी और मैक्रों बड़ालालपुर में बने बुनकरों, शिल्पियों के लिए ट्रेड फैसिलिटी सेंटर के म्यूजियम देखने जाएंगे। 305 करोड़ की लागत और 43445 स्कवायर मीटर बने में इस सेंटर का इनॉग्रेशन पीएम मोदी ने सितंबर 2017 में किया था। म्यूजियम के दोनों वस्त्र, कार्पेट, क्राफ्ट, समेत कई पुरानी चीजों को देखेंगे। 

ग्राउंड फ्लोर में बनारसी साड़ी की हिस्ट्री, इनकी वेरायटी और हैंडलूम देखने को मिलेगा। म्यूजियम के मैनेजर रोशन कुमार के मुताबिक, बनारसी वस्त्र महाभारत और रामायण के समय भी बनता था, जिसे पीताम्बर कहा जाता था। बौद्धकाल में यहां के वस्त्रों को कासिया कहा गया। गौतम बुद्ध भी यहीं के वस्त्र पहनते थे।

राम नगर की रामलीला: 1803 में शुरू हुए काशी के वर्ल्ड फेमस रामनगर की रामलीला की भी झलक दिखेगी। अनंत चतुर्दशी के दिन काशी नरेश उदितनारायण सिंह ने शुरू किया था। आज भी पंचलाइट में ही रामलीला होती है।घाटों की 3D पेंटिंग: म्यूजियम में इंट्री करते सबसे पहले काशी के घाटों का करीब 45 फीट लम्बी और 20 फीट चौड़ी थ्रीडी पेंटिंग नजर आएगी।

कार्पेट और दरियों के गैलरी में खांस इंतजाम: फारस से 1529 के आस पास अब्बासी राजवंश के लोग भदोही पहुंचे थे। लुकमान हाकिम नाम का बुनकर इनके साथ आया था। लुटेरों ने इनके सामान, गहने सब लूट लिए थे। गांव वालों ने इनमें से कई लोगों को शरण दी। बाद में इन्हीं के जरिये कालीन बनाने का आर्ट भदोही में शुरू हुआ।

चुनार की लाल पॉटरी: मुगलकाल में मिर्जापुर के चुनार में आर्ट डबलप हुआ। कुम्हार लाल मिट्टी के बुरादे से सजावट सामान, बर्तन, मूर्ति, खिलौने रजवाड़ो के लिए बनाते थे।रेपोस और धातुओं पर आर्ट: मुगलकाल के समय पीतल और तांबे पर यहां के कारीगरों ने काम शुरू किया। उभार के साथ बेहतरीन नक्कासी का काम देखने को मिलता है।

लकड़ी के खिलौने: 16वीं शताब्दी में कुछ क्राफ्ट कारीगरों ने लकड़ियों पर काम करना शुरू किया। आज गौरीगंज इलाका लकड़ी के खिलौने के लिए जाना जाता है। दुल्हन के लिए सिंधोरा, रोली के डब्बे मशहूर हैं।इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रो पीएम मोदी के काशी विजिट को लेकर चर्चा है। बीएचयू (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) के पॉलिटिक्ल साइंस डिपार्टमेंट के प्रोफेसर केके मिश्रा ने दोनों राष्ट्राध्यक्षों के काशी विजिट को लेकर इंटरनेशनल पॉलिटिक्स के 7 फायदे बताए। 

उन्होंने बताया- पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत को विश्व गुरु और काशी को राष्ट्र गुरु बनाने का सपना देखा है। इससे पहले 12 दिसंबर, 2015 जापानी पीएम शिंजो आबे को गंगा आरती दिखाने लाये थे। यहां की संस्कृति, गंगा, घाट, मंदिरों से लघु भारत को एक ही बार में बताना मकसद है।पूरा विश्व जब टेरोरिज्म से जूझ रहा है, ऐसे में पीएम मोदी दुनिया को बताना चाहते है बनारस विश्व शांति का केंद्र है।

जहां स्वामी विवेकानंद, शंकराचार्य, रविदास, बुद्ध जैसे संत महात्मा भी इसी तलाश में आये थे।वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का सपना तभी पूरा होगा। जब काशी के गलियों, उद्योग, संस्कृति, रहन-सहन, मंदिरों और 84 घाटों की चर्चा राष्ट्राध्यक्षों के जरिये कई देशों में होगी।ग्राउंड पॉलिटिक्स के जरिये पाकिस्तान, चीन जैसे देशों को संदेश देना कि दिल्ली, मुंबई ही नहीं बल्कि भारत के काशी जैसे स्थान भी महत्वपूर्ण हैं। 

एनर्जी प्लांट के उद्घाटन से भारत पूरे विश्व संदेश देगा कि एनर्जी, इन्वायरमेंट, इम्प्लॉयमेंट, इन्वेस्टमेंट के साथ टूरिज्म को लेकर बड़ा काम कर रहा है।जापान और फ्रांसीसी राष्ट्राध्यक्षों की विजिट से दुनिया के दूसरे देशों के पीएम, राष्ट्रपति भी वाराणसी आना चाहेंगे। गंगा और यहां के सात किमी लंबे घाट पर्यटकों को सबसे ज्यादा पसंद है।

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