अगस्ता-वेस्टलैंड कांग्रेस के लिए दूसरा बोफोर्स है. इटली की अदालत के फैसले में इसका ब्योरा है कि 12 हेलीकॉप्टर्स की डील में करोड़ों रुपये की दलाली दी गई.इसमें तीन बिचौलियों के नाम हैं, जिन्होंने भारत के तत्कालीन वायुसेनाध्यक्ष एसपी त्यागी के माध्यम से तत्कालीन भारतीय नेतृत्त्व को साधा. जिस तरह से फैसले के 17 पृष्ठों में त्यागी का जिक्र है, उससे उनकी सक्रियता का संकेत मिलता है. ‘सिग्नोरा’ (यानी श्रीमती) गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भी नाम हैं. इनमें सिग्नोरा ‘सौदे की मुख्य कारक’ हैं.
यह श्रीमती गांधी कौन हो सकती हैं? भाजपा कहती है, यह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं. डील में इनके अलावा, यूपीए सरकार तथा कांग्रेस पार्टी के और भी कद्दावर नेता शामिल हैं. कह सकते हैं कि भाजपा या मोदी सरकार के हमलावर होने के पर्याप्त वैधानिक साक्ष्य हैं. यह ठीक है कि उच्चस्तरीय दलाली की बात उजागर होने पर यूपीए सरकार ने जांच शुरू की, जो अब तक जारी है.
हालांकि उसकी इस बात की पुष्टि बाकी है कि उसने तो अगस्ता-वेस्टलैंड बनाने वाली कम्पनी को काली सूची में डाल दिया था. पर तथ्यों के इस आलोक में कांग्रेस कठघरे में खड़ी हुई लगती है. उसके लिए अगस्ता प्रसंग बड़ी राजनीतिक कीमत के रूप में आया है, जो मोदी सरकार के विरुद्ध मुद्दे चुन-चुन कर विपक्ष के रूप में जिंदा रहने की कोशिश कर रही थी.
हालांकि जिस तरह राज्य सभा में वह तथ्यों को रखने के बजाय हंगामे का सहारा ले रही है, उससे उसकी मुश्किलें आसान होती नहीं लगतीं. इटली के दो नाविकों की रिहाई के बदले सोनिया गांधी का नाम मामले में शामिल करने के लिए इटली-भारत के प्रधानमंत्रियों के बीच सौदेबाजी के आरोप भी इसी तरह के प्रतीत होते हैं. बोफोर्स सौदे में भी गांधी परिवार के करीबी क्वात्रोच्चि के नाम आने पर किसी तरह के संबंधों का खंडन किया गया था.
पर यह बात भले किसी अदालत में साबित न हुई हो पर एक व्यापक वर्ग ने माना कि दलाली की रकम गांधी परिवार तक पहुंचाई गई. ताजा मामले में पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी की यह बात जायज है कि सरकार के पास एजेंसियां हैं, वह जांच कर दोषियों को गिरफ्तार करे. अगर एंटनी ने अगस्ता को बैन किया था तो रक्षा मंत्री मनोहर र्पीकर बताना चाहिए कि यह प्रतिबंध क्यों वापस लिया गया?