तीनों कृषि सुधार कानूनों को वापस ले सरकार : गुलाम नबी आजाद

विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने सरकार से किसानों से लड़ाई का रास्ता छोड़कर बातचीत से समस्याओं को समाधान करने तथा तीन कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने की मांग की।आजाद ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद के प्रस्ताव पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि इन तीनों कानूनों को बनाने से पहले प्रवर समिति में भेजा गया होता तो विवाद की स्थिति उत्पन्न नहीं होती।

उन्होंने 26 जनवरी को लाल किले पर हुई हिंसा की घटना की परिनिंदा करते हुए कहा कि इस घटना के लिए दोषी लोगों को सजा दी जानी चाहिए और निर्दोष लोगों को किसी मामले में फंसाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए।उन्होंने कहा कि विपक्ष लाल किले की घटना की कड़ी निंदा करता है।

उन्होंने इस घटना को लोकतंत्र और कानून व्यवस्था के खिलाफ बताया।उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किसी हालत में बर्दास्त नहीं किया जाएगा।उन्होंने कहा कि कुछ वरिष्ठ पत्रकारों, सांसद शशि थरूर के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया है। जिसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।

उन्होंने सवाल किया कि जो व्यक्ति विदेश राज्य मंत्री रहा हो वह देशद्रोही कैसे हो सकता है। आजाद ने कहा कि मामले में शामिल किए गए कुछ संपादक लोकतंत्र को जिंदा रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। सरकार के समक्ष आर्थिक और कई बड़ी बड़ी चुनौतियां है जिसका समाधान किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने से किसानों का संघर्ष होते रहा है और सभी सरकारों को किसान विरोधी कानून वापस लेने पड़े हैं।उन्होंने किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए 175 किसानों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि सैंकड़ों साल से किसान संघर्ष कर रहे हैं।

कांग्रेस नेता ने कहा कि 1906 में अंग्रेजी सरकार ने किसानों के खिलाफ तीन कानून बनाए थे और उनका मालिकाना हक ले लिया गया था।
इसके खिलाफ 1907 में सरदार भगत सिंह के भाई अजीत सिंह के नेतृत्व में पंजाब में आंदोलन हुआ और उसे लाला लाजपत राय का समर्थन मिला।

किसानों के आंदोलन को देखते हुए कानून में कुछ संशोधन किए गए, जिससे लोग और भड़क गए बाद में तीनों कानूनों को वापस लिया गया।
आजाद ने कहा कि 1917 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नील की खेती के खिलाफ चंपारण सत्याग्रह का नेतृत्व किया था बाद में अंग्रेजी सरकार ने नील की खेती बंद करने की घोषणा की।

उन्होंने कहा कि 1918 में गुजरात में किसानों पर कर को लेकर के पूरे आंदोलन का नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया था, बाद में इस कर को समाप्त कर दिया गया।उन्होंने कहा कि इसी तरह से 1928 में भी कर को लेकर एक आंदोलन हुआ था और उसके दवाब में किसानों की जमीन वापस की गई थी और कर की दर को 22 फीसदी से घटाकर 6.03 फीसदी कर दिया गया था।

आजाद ने कहा कि वर्ष 1988 में कांग्रेस ने किसानों के मुद्दे को लेकर के दिल्ली के वोट क्लब पर एक रैली का आयोजन किया था लेकिन रैली के आयोजन से पहले वोट क्लब पर किसानों के एक समूह के आ जाने के कारण उसने अपने रैली स्थल बदलकर लाल किला कर दिया था।

उन्होंने कहा कि किसानों के बगैर कुछ भी नहीं सोचा जा सकता है। यह न केवल 130 करोड़ लोगों के अन्नदाता हैं बल्कि दुनियाभर के लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध कराते हैं।किसानों के मुद्दे को लेकर राज्यसभा में भारी हंगामा कर रहे आम आदमी पार्टी के तीनों सांसद संजय सिंह, सुशील कुमार गुप्ता और एन.डी. गुप्ता को बुधवार को दिन भर के लिए निष्कासित कर दिया गया।

सभापति एम. वेंकैया नायडू ने शून्यकाल काल के बाद राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा कराने प्रयास किया तो आप के संजय सिंह, सुशील कुमार गुप्ता और एन.डी. तिवारी अपनी सीटों पर खड़े होकर नारे लगाने लगे। उन्होंने कृषि कानूनों को रद्द करो के नारे लगाए।

नायडू ने कहा कि अभिभाषण पर चर्चा के दौरान ही किसानों के मुद्दे पर बहस करने की सहमति बन चुकी है। ऐसे में इन सदस्यों का सदन की कार्यवाही को बाधित करना अनुचित है। ये लोग वास्तव में किसानों के मुद्दे पर चर्चा नहीं करना चाहते हैं।

उन्होंने तीनों सदस्यों से शांत होने और सदन की कार्यवाही चलने देने का अनुरोध किया, लेकिन इस पर भी तीनों सांसद नारे लगाते रहे।इसके बाद नायडू ने तीनों सांसदों को  नियम 255 के तहत सदन की कार्यवाही से बाहर करने की चेतावनी दी लेकिन सदस्यों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वे नारे लगाते रहे।

इस पर  सभापति ने कहा कि इन तीनों सदस्यों को सदन की कार्यवाही से दिनभर के लिए बाहर कर रहे हैं और उन्होंने तीनों सदस्यों को दिन भर के लिए सदन से बाहर जाने का आदेश दिया और सदन की कार्यवाही 9:30 बजे पांच मिनट के लिए स्थगित कर दी।

इससे पहले सदन की कार्यवाही शुरु करते हुए नायडू ने सदन को बताया कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद चर्चा का समय बढ़ाकर 15 घंटे कर दिया गया है  इसी चर्चा में किसानों के मुद्दे पर पर भी चर्चा की जाएगी।

सदन में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि  परंपरा के अनुसार राष्ट्रपति के अभिभाषण  पर धन्यवाद चर्चा से पहले  किसी अन्य मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकती। इसलिए  इस चर्चा के दौरान किसानों के मुद्दे पर भी चर्चा होगी।

विपक्षी पार्टी  इस पर सहमत हैं कि चर्चा का समय पांच घंटे और बढ़ाया जाए। पहले राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद चर्चा का समय 10 घंटे निर्धारित था। सदन के सभी  सदस्यों ने इसका समर्थन किया।

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