बांग्लादेशियों ने झारखंड के पांच जिलों में बदल दी है डेमोग्राफी

बांग्लादेशियों ने झारखंड के पांच जिलों की डेमोग्राफी तेजी से बदली है। पिछले तीन दशकों में बांग्लादेश से लाखों की तादाद में घुसपैठिए साहिबगंज, पाकुड़, दुमका, गोड्डा और जामताड़ा जिलों के अलग-अलग इलाकों में आकर बस गये हैं। इन इलाकों में हो रहे जनसांख्यिकीय बदलाव को लेकर सरकारी विभागों ने केंद्र और राज्य सरकारों को समय-समय पर कई बार रिपोर्ट मिली है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर 1994 में साहिबगंज जिले में 17 हजार से अधिक बांग्लादेशियों की पहचान हुई थी। इन बांग्लादेशियों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए थे, मगर इन्हें वापस नहीं भेजा जा सका। वर्ष 2018 में झारखंड की पूर्ववर्ती रघुवर दास सरकार के कार्यकाल में गृह विभाग ने बांग्लादेशी घुसपैठियों की वजह से इलाके की बदली हुई डेमोग्राफी के मद्देनजर पूरे राज्य में एनआरसी लागू कराने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था।

इसपर केंद्र की ओर से कोई निर्णय नहीं हो पाया था।विधानसभा के बीते बजट सत्र के दौरान राजमहल विधायक अनंत ओझा ने कार्यस्थगन सूचना के जरिए संथाल परगना के जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठ का मामला उठाया था। उन्होंने अपनी सूचना में कहा था कि साहिबगंज जिलों पिछले कुछ वर्षों से बांग्लादेशी घुसपैठ से जनसंख्या संतुलन बिगड़ गया है।

घुसपैठिये फर्जी नाम और कई प्रमाण पत्र बना कर भारत के नागरिक बन बैठे हैं। सरकारी जमीन का अतिक्रमण कर रहे हैं। यहां के सरकारी संसाधनों का फायदा ले रहा है।बांग्लादेशियों के बढ़ते प्रभाव पर गृह विभाग को भी झारखंड से रिपोर्ट भेजी गयी थी। रिपोर्ट में जिक्र था कि बांग्लादेशी बिहार और बंगाल के रास्ते झारखंड आ रहे।

इसमें अवैध प्रवासियों को चिन्हित करने के लिए टास्क फोर्स गठित करने की सिफारिश की गई थी। आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि बांग्लादेश के करीब स्थित झारखंड के जिलों में मुस्लिम आबादी अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है। मसलन, पाकुड़ में 2001 में मुस्लिम आबादी 33.11 प्रतिशत थी जो 2011 में 35.87 प्रतिशत हो गई।

झारखंड में बांग्लादेशी नागरिकों के पकड़े जाने, गलत तरीके से यहां की मतदाता सूची में नाम दर्ज करवा लेने, बांग्लादेशी नागरिक को भारतीय पासपोर्ट जारी कर दिये जाने जैसे छिटपुट मामले हर महीने-दो महीने पर आते रहते हैं। करीब 25 दिन पहले गिरिडीह जिले के गांवा थाना क्षेत्र की पुलिस ने पिहरा-चटनियादाह गांव से मोहम्मद नौशाद नामक एक शख्स को गिरफ्तार किया था।

जांच में पता चला कि उसने बांग्लादेश और भारत दोनों देशों की नागरिकता हासिल कर रखी थी।खुफिया एजेंसियों ने भी समय-समय पर सरकारों को ऐसी रिपोर्ट भेजी है, जिनमें बांग्लादेशियों के घुसपैठ के तौर-तरीकों के बारे में विस्तृत ब्योरा दर्ज है। गृह विभाग को भेजी ऐसी ही एक रिपोर्ट में बताया गया है कि संथाल परगना के साहिबगंज व पाकुड़ में चिह्न्ति अवैध प्रवासियों ने वोटर आईडी, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस तक बनवाए हैं।

इन इलाकों में जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश व पापुलर फ्रंट आफ इंडिया और अंसार उल बांग्ला जैसे प्रतिबंधित संगठनों की पकड़ बढ़ रही है। ऐसे कई उदाहरण हैं कि बांग्लादेश से आये लोगों ने स्थानीय महिलाओं से शादी कर ली और यहीं बस गये।दुमका के अंकिता हत्याकांड के बाद ऐसे कई मामले उजागर हो रहे हैं।

मसलन, दुमका की सानी डंगाल मोहल्ला की रहने वाली एक युवती के मुताबिक उससे एक लड़के ने अपने धर्म की पहचान छिपाकर दोस्ती की, प्यार का वास्ता दिया और फिर शादी के बाद उसे धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर कर दिया। उसके सामने इसके अलावा कोई चारा ही नहीं बचा। उसने घटनाक्रम को अपनी नियति मान लिया है।

इसी तरह दुमका गांधी मैदान के निकट रहने वाली एक युवती के पिता ने कहा कि आठ साल पहले उनकी बेटी परिवार को छोड़कर एक युवक के साथ चली गयी। बाद में पता चला कि उसने धर्म की पहचान छिपाकर उसे झांसा दिया था। अब उसके सामने सिर्फ पछतावा है। घर-परिवार के लोग लोकलाज की वजह से चुप रह गये।

दुमका के दुमका के डंगालपाड़ा, सानीडंगाल, जरुवाडीह और बंदरजोड़ी के अलावा साहिबगंज, पाकुड़ और जामताड़ा में भी ऐसे कई उदाहरण हैं। भाजपा और हिंदुत्ववादी संगठनों का आरोप है कि ऐसे मामले लव जिहाद की सोची-समझी साजिश के परिणाम हैं।

भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी का कहना है कि अंकिता की नृशंस हत्या करने वाले शाहरूख और उसका दोस्त मो. नईम बांग्लादेश के आतंकी संगठन अंसार-उल-बांग्ला से प्रेरित थे। नईम का मोबाइल रिकॉर्ड इस बात की गवाही देता है। मरांडी के मुताबिक अंसार-उल-बांग्ला भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा का एक फ्रंट ग्रुप है, जिसका मकसद गैर मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाना और उनका धर्म परिवर्तन कराना है।

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