इन 18 पिछड़ी जातियों को SC की लिस्ट में डालने के आदेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने किया रद्द

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी सरकार के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत 18 अन्य पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की लिस्ट में डालने का नोटिफिकेशन जारी किया गया था. चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जेजे मुनीर की बेंच ने गोरखपुर की डॉ. बीआर आंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति की जनहित याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया.

इस याचिका में 21 और 22 दिसंबर, 2016 की अधिसूचना को यह कहते हुए चुनौती दी गई थी कि अखिलेश यादव की तत्कालीन प्रदेश सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत बिना अधिकार के यह अधिसूचना जारी की.

इसके बाद, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 24 जनवरी, 2017 को एक अंतरिम आदेश पारित कर इन 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र जारी करने पर रोक लगा दी थी.इन याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान 24 जून  2019 को योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार ने इसी मुद्दे पर एक अन्य अधिसूचना जारी की और इस अधिसूचना को भी चुनौती दी गई और इस मामले में भी अंतरिम आदेश पारित किया गया.

बुधवार को संबंधित पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के पास ही एक जाति को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का अधिकार है और राज्य सरकार के पास इस संबंध में कोई अधिकार नहीं है.हाई कोर्ट के फैसले को लेकर बीजेपी पर सपा ने हमला बोलते हुए कहा कि18 अति पिछड़े समुदायों को आरक्षण बीजेपी सरकार की निष्क्रिय कार्रवाई की वजह से निरस्त किया गया.

पार्टी ने ट्वीट में कहा अखिलेश यादव ने 18 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का अपना वादा पूरा किया था जिसे बीजेपी की केंद्र सरकार की ओर से खारिज किया गया.तत्कालीन सपा सरकार और योगी सरकार ने मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोदिया, मांझी और मछुआ जातियों को अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करने का प्रयास किया था.

Check Also

आरबीआई ने सभी क्रेडिट सूचना कंपनियों को दिया एक आंतरिक लोकपाल नियुक्त करने का निर्देश

आरबीआई ने सभी क्रेडिट सूचना कंपनियों को 1 अप्रैल, 2023 तक एक आंतरिक लोकपाल नियुक्त करने …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *