राजनीति से हटकर सोचो…

मौजूदा समय में  उत्तर प्रदेश के बंटवारे को लेकर बहस तेज हो गई है। कोई कहता है कि उत्तर प्रदेश का बंटवारा सही नहीं है, तो कोई कहता है कि उत्तर प्रदेश का बंटवारा होने से विकास के काम अच्छी तरह से होंगे। सबका
राज्य के बंटवारे के बारे में अपनी – अपनी दलीले हैं।  आबादी के दृष्टी से देश के सबसे बड़े प्रान्त उत्तर प्रदेश ने विकास में अहम भूमिका न निभाई हो, लेकिन एक बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि उत्तर प्रदेश ने
राजनीति में अहम योगदान दिया है, परन्तु इसके बदले में उत्तर प्रदेश को मिला क्या है ? उत्तर प्रदेश आज भी आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। न यहाँ पर लोगो को उचित शिक्षा मिल पाती है और न ही नौकरी। हद तो तब हो जाती है जब खुद अपने ही देश के दुसरे शहरों में काम के लिए गए उन लोगो को बाहर निकाल दिया जाता है कि वह यूपी से सम्बन्ध रखते है। तब इस बात को लेकर नेताओ में उतनी दिलचस्पी नहीं होती जितनी की आज के समय में उत्तर प्रदेश के बंटवारे और राहुल के बयान को लेकर है।

उतर प्रदेश भी अन्य राज्यों कि तरह आर्थिक और सामाजिक तरक्की, बेहतर प्रशासन, बेहतर अवसर और आगे बढ़ने की बेहतर सम्भावनाये चाहता है। यह तभी हो सकेगा जब यूपी को हम छोटे राज्यों में विभाजित करेंगे उत्तर प्रदेश अगर भारत का एक राज्य न हो कर एक देश होता,  तो उसकी गिनती आज दुनिया में आबादी की द्रष्टि से छठे स्थान पर होती। इसके आधार पर आप सोच सकते है कि इतनी बड़ी आबादी वाले क्षेत्र पर नियत्रण रखना कितना मुश्किल होता होगा।

मैं उत्तर प्रदेश के कई ऐसे गावों को जानता हूँ जहाँ पर अभी भी न तो रोड है, न ही बिजली है, न ही स्कूल है और  न ही अस्पताल है। ऐसे गावों के हालत के बारे में आप अनुमान लगा सकते है कि वहा के लोगों आज भी 40 साल पहले जैसी जिंदगी जी रहे है। ऐसे में अगर हमें उन्हें इस बदलती हुई दुनिया से जोड़ना है तो हमें उनको वह सब कुछ मुहैया करना पड़ेगा जो आज के दौर में न केवल जीवन जीने के लिए जरुरी है बल्कि दुनिया के साथ कन्धा मिलकर चलने के लिए भी जरुरी है।

ऐसे में उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री का उत्तर प्रदेश के विभाजन का बयान ज्यादातर नेताओ को सही नहीं लगता हो क्यों कि उनका मानना है कि मायावती विधानसभा चुनाव के लिए यह सब कर रही है, अगर उनको यही करना था तो वह चार साल पहले भी कर सकती थी। हकीकत तो ये है कि राज्य के विकास के लिए विभाजन सही है लेकिन मायावती की गलती इतनी है कि उन्होंने यह निर्णय लेने में चार साल का वक्त ले लिया और विभाजन का ऐलान किया भी तो विधानसभा चुनाव के पहले जाहिर से बात है इस बात का विरोध होना ही था खैर मायावती ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में राज्य विभाजन के प्रस्ताव को पारित कर केंद्र सरकार को भेज दिया। अब केंद्र के सरकार के ऊपर लोकपालबिल पास करने के साथ उत्तर प्रदेश के विभाजन का भी भार आ गया है। जिससे केंद्र सरकार काफी मुसीबत में घिरती नजर आ रही है।

अगर हम अब तक के विभाजन की बात करे तो परिणाम मिले जुले है। जहाँ वर्ष 2000 में देश में तीन नए राज्यों का गठन किया गया था। उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड, बिहार से झारखंड और मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़| इन राज्यों के निर्माण के बाद क्रमशः रांची, रायपुर और देहरादून का विकास हुआ है। ये शहर राजनीतिक और प्रशासनिक रूप से महत्वपूर्ण हो गए हैं। तो वही झारखंड में भ्रष्टाचार के कारण मुख्य मंत्री को जेल में भी जाना पड़ा, लेकिन इससे पहले भी जब झारखंड बिहार से अलग नही हुआ था तब भी वहां भ्रष्टाचार था। इसी तरह छत्तीसगढ़ जब मध्य प्रदेश का हिस्सा था, तब भी वहां माओवादी था। इसलिए इसमें कुछ नया नहीं है।

हमें उत्तर प्रदेश को विकास से जोड़ना है तो हमें राजनीति के स्तर पर न सोचकर  देश के एक  नागरिक के स्तर पर सोचना होगा। जिससे देश और देश के नागरिको की भलाई हो सके। शायद तब या फैसल सही दिखेगा और रही बात विधानसभा चुनाव के पहले बटवारे की राजनीती की बात तो आज नहीं तो कल बड़े राज्यों को छोटे राज्यों में विभाजित तो करना ही पड़ेगा। क्यों कि छोटे राज्यों के होने से हर मामलों पर नियत्रण कुछ ज्यादा ही हो जाता है, अक्सर देखा गया है कि सुदूर ग्रामीण इलाको में रहने वालो की बात वहां तक नहीं पहुँच पाती जहाँ तक उसे पहुँचाना चाहिए, जिससे लोग न्याय से वंचित रह जाते है। यूपी जैसे विशाल राज्य में कोई भी अपने अधिकार और विकास से वंचित न रह सके उसके लिए जरुरी है कि छोटे राज्यों का गठन हो। यूपी में मनरेगा के असफल होने का एक कारण यह भी है, राज्य का बड़ा होना औरनियंत्रण का आभाव।

मानेन्द्र कुमार भारद्वाज
इंडिया हल्ला बोल

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