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दिल्ली की सड़को पर दो करवट सोती रातें

ठंडक  की सर्द रातों मे जब हम अपने घरो में गर्म बिस्तरॉ की आगोस में होते हैं। तब कई बदनसीब ऐसे भी होते है जिन्हें एक चादर तक नसीब नही होती है। उन्हें सिर्फ़ एक उम्मीद होती है की वो कल का सूरज देख सकेंगे। भारत में 42 करोड़ से ज़्यादा लोग अपनी रातें खुले में बिताते हैं जिनमे से 1
करोड़ से भी ज़्यादा बदनसीब हमारे देश की राजधानी दिल्ली में है। जिन्हें भीख के नाम पर 2 या ज़्यादा से ज़्यादा 5 रुपये या फटे पुराने कपड़े ही नसीब होते हैं।

उनमे से कोई नही जनता की आने वाले समय में वो किस प्रकार जीवित रहेंगे अथवा जीवित रहेंगे भी या नही। सरकार की ओर से चलाई गयी योजनाएं इन ज़रूरतमंद लोगो तक आने से पहले ही दम तोड़ देती है। एक तरफ हमारा हृदय ऐसे लोगो की कठिनाईं देखकर द्रवित हो जाता है। वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी है जो मासूमियत और बेबसी का नकाब ओढकर लाचार लोगो की मदद करने वालो को गुमराह करते है। ऐसी स्थिति में सही मदद सही लोगो तक नही पहुंच
पाती और दोषी भी नही पकड़े जाते है। दिल्ली में कनॉट प्लेस पास स्थित हनुमान मंदिर के पास रात चौकसी पर तैनात एक
कमांडो से बातचीत में हमे ये पता चला की, कुछ ढोंगी अलग समूह बनाकर खुद को विकलांग करके इस कारोबार को बड़ी ही सलीके से चला रहे है। कमांडो देवेश कुमार(काल्पनिक नाम) ने हमे बताया की वो सभी ढोंगी अपना एक अलग समूह बनाकर खुद को विकलांग करते है और वो भी अपना बायाँ पैर ही  गाठं के नीचे से काटते हैं, जिससे  आसानी से  नकली वाला पैर लग जाये जिससे चलने फिरने  में आसानी रहे और वो  इस धंधे  बने रहते हैं।

जब हमे वहां बैठे ऐसे लोगों की फोटो लेनी  चाहिए तो उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया और खीचने से भी मना कर दिया पर हमने बातों- बातों  में उसकी फोटो मोबाइल के द्वारा  खीच ली। जिससे कहा जा सकता है कि “चोर की दाढ़ी  में तिनका”  हमे उनसे यह भी कहा की आपकी बात सरकार तक पहुचायेगें पर उन्होंने कहा की हमे सरकार की मदद नही चाहिए हम ऐसे ही
ठीक है। जिस से यही स्पष्ट होता है वो सब ढोंगी थे जो आम जनता से लिया गया सहानुभूति स्वरुप  रूपया नशाखोरी में खर्च रहें  हैं। अत: आगे से इस बार जब भी सड़क पर पड़े हुए किसी ज़रूरतमंद को कुछ भी देना चाहे तो इस बात पर ज़रूर गौर फरमाए  ले की वो सच मे ज़रूरतमंद है या नही?

आशीष शुक्ला

इंडिया हल्ला बोल

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