दलितों पर राजनीति

किसी की आलोचना करना और अनुशासन का पाठ पढ़ाना आसान होता है लेकिन जब बात अपने पर आती है तो कथनी और करनी में फर्क दिखाई पड़ने लगता है। जी हाँ, अब उनकी उम्मीदें राहुल गाँधी पर टिकी है 1999 के चुनाव में कांग्रेस की बागडोर सोनिया गाँधी ने संभाली थी। लेकिन इस बार की तस्वीर साफ है और आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए जनता को रिझाने के लिए राहुल गाँधी मैदान में हैं।

2012 के विधानसभा चुनाव के लिए सभी राजनितिक पार्टियों ने अपनी गोट बिछानी शुरू   कर दी हैं, कोई साईकिल यात्रा पर है तो कोई जनचेतना रथ यात्रा। ऐसे स्थिति में कांग्रेस कहां पीछे रहने वाली है। उत्तर प्रदेश में पार्टी की दयनीय हालत से कांग्रेस काफी चिंतित है, साल भर पहले जो कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में लग रही थी, वहीं पार्टी इस समय एकदम निचले पायदान पर चली गई है। भ्रष्टाचार और महंगाई डायन इसे खाए जा रही है। कांग्रेस का भरपूर प्रयास है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा जाये। लेकिन भाजपा लगातार उनके मंसूबो पर पानी फेर रही है।

जिस राहुल के सहारे कांग्रेस इतना बड़ा दाव खेलना चाहती है उसकी, योग्यता पर कुछ कांग्रेसियों को भरोसा नहीं है क्योंकि उन्हें पता है कि राहुल कभी न कभी कुछ ऐसा बोल देते है जिससे मुंह छिपाने की नौबत आ जाती है। कांग्रेस को पता है कि दलितों और पिछडो को साथ लिए बिना सत्ता की सीढियों पर चढ़ना मुश्किल है, इसलिए राहुल गाँधी का दलित प्रेम जोड़ा गया है। वह पिछडो में महा पिछड़ा, दलितों सभी महा दलित की बात करने लगे हैं इसके लिए राहुल गाँव – गाँव जाकर चौपाल लगाकर दलितों को रिझाने की कोशिश कर रहें हैं।

दलित शब्द पढते-सुनते ही शोषित पीड़ित, मैले कुचले व्यक्ति की बात जेहन में आते ही मानस पटल पर झुग्गी – झोपड़ी में रहने वाले जिन्दगी से बदहाल लोगो क़ी तस्वीर उभर कर आती है हांलाकि ये सच है कि आर्थिक – सामाजिक विकास केन्द्रित तमाम  सरकारी विकास कार्यकर्मो के बावजूद इस वर्ग के अधिकांश हिस्से की आज भी यही हालत है जो सादियो पहले थी, इसमें कोई शक नहीं है कि दलित वर्ग के लोगो का सादियों   से हो रहे अनाचार – भेदभाव सामाजिक अन्याय को सामने लाये बिना समाज की सच्चाई समझी नहीं जा सकती है इनके पिछड़े होने का सबसे बड़ा कारण इनका आर्थिक रूप से कमजोर होना है।

इन्द्रा गांधी आवास योजना आदि सभी योजनाये इस वर्ग तक आकर ख़त्म हो जाती है इन योजनाओ का लाभ उन्ही लोगो को मिलता है जिनकी पहुंच उपर तक होती है ऐसे में आज भी हमारी मानसिकता वही कि वही बनी हुई है दलितों के मसीहा कहे जाने वाले राहुल गाँधी जैसे नेता वोट के लिए अपनापन का दिखावा तो करते है लेकिन समस्या सुलझाने क़ी जब बात आती है तो मुंह चिढाने के सिवा ये कुछ नहीं करते है।

हांलाकि गौर करें तो राहुल का यह दलित प्रेम कोई नया नहीं है यह तो उनके पुराने एजेंडे में शामिल है। आये दिन किसी दलित के यहाँ इनको पाया जाता है और मीडिया में छाए रहते हैं। लेकिन शायद वे ये भूल रहे है कि किसी गरीब, दलित के साथ खाना खा लेने से, उनके यहाँ सो लेने से उनकी समस्या का निदान नहीं होने वाला है, उनको भी रोटी, कपडा, मकान की जरूरत होती है। योजना आयोग ने तो गरीबी का मानक तो निर्धारित कर दिया है।

क्या राहुल दलितों के यहाँ जाकर इस बात का जिक्र करते हैं कि जो योजनायें सरकार केंद्र द्वारा पारित कि जाती हैं उन तक पहुचती हैं? शायद नहीं! जब चुनाव आतें है तो हर पार्टी को यात्रायें याद आती हैं उससे पहले क्यों नहीं? कारण वोट नीति। इस समय चारो  तरफ हर पार्टी के नेताओं की यात्राये ही नजर आ रही है। ये कहना गलत न होगा कि दलितों – पिछडो को ही मंचो पर सज़ा लेने से न तो समाज का भला होगा और न ही  विकास कि रथ दौड़ेगी। ऐसे में कांग्रेस को दलित प्रेम का मोह त्यागकर विकास की परिपाटी को लाना होगा। गांवो में बुनयादी सुविधाओ पर जोर देना होगा।

अम्बरीश द्विवेदी

इंडिया हल्ला बोल

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