Vehicles of the Gods । पशु-पक्षियों की सवारी क्योँ करते है देवी-देवता जानें

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Vehicles of the Gods : शास्त्रों के मुताबिक हर देवी और देवता का एक वाहन होता है। खास बात ये है कि इनके वाहन के लिए पशु-पक्षियों को चुना गया है। क्या आप जानते हैं इसके पीछे क्या कहानी है क्यों देवी-देवता की सवारी के लिए पशु-पक्षियों को ही चुना गया।अध्यात्मिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक कारणों से भारतीय मनीषियों ने देवताओं के वाहनों के रूप में पशु-पक्षियों को जोड़ा। माना जाता है कि देवताओं के साथ पशुओं को उनके व्यवहार के अनुरूप जोड़ा गया है।

अगर पशुओं को भगवान के साथ नहीं जोड़ा जाता तो शायद पशु के प्रति हिंसा का व्यवहार और ज्यादा होता। भारतीय मनीषियों ने प्रकृति और उसमें रहने वाले जीवों की रक्षा का एक संदेश दिया है। हर पशु किसी न किसी भगवान का प्रतिनिधि है, उनका वाहन है, इसलिए इनकी हिंसा नहीं करनी चाहिए।

ज्ञान की देवी मां सरस्वती के लिए का वाहन हंस माना जाता है। हंस पवित्र, जिज्ञासु और समझदार पक्षी होता है। हंस अपने चुने हुए स्थानों पर ही रहता है। तीसरी इसकी खासियत हैं कि यह अन्य पक्षियों की अपेक्षा सबसे ऊंचाई पर उड़ान भरता है और लंबी दूरी तय करने में सक्षम होता है।

भगवान शिव का वाहन माना जाता है नंदी। विश्‍व की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं में बैल को महत्व दिया गया है। सुमेरियन, बेबीलोनिया, असीरिया और सिंधु घाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई है। इससे प्राचीनकल से ही बैल को महत्व दिया जाता रहा है। भारत में बैल खेती के लिए हल में जोते जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है।

देवी-देवताओं ने अपनी सवारी बहुत सोच समझकर चुनी। उनके वाहन उनकी चारित्रिक विशेषताओं को भी बताते हैं। शिवपुत्र गणेशजी का वाहन है मूषक। मूषक शब्द संस्कृत के मूष से बना है जिसका अर्थ है लूटना या चुराना। सांकेतिक रूप से मनुष्य का दिमाग मूषक, चुराने वाले यानी चूहे जैसा ही होता है। यह स्वार्थ भाव से गिरा होता है। गणेशजी का चूहे पर बैठना इस बात का संकेत है कि उन्होंने स्वार्थ पर विजय पाई है और जनकल्याण के भाव को अपने भीतर जागृत किया है।

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