होली के त्यौहार का महत्व

होली का हर मनुष्य के जीवन में अलग ही महत्व होता है. इस वर्ष होली का त्यौहार 6 तारीख को मनाया जायेगा. होली रंगों का त्यौहार होता है लेकिन कुछ लोग इस दिन शराब पि कर लड़ाई करते है तथा इस त्यौहार को बदनाम करते है . कान्हा की नगरी मथुरा, वृंदावन में महिलाएं छेड़-छाड़ के डर से होली के दिन घरों के अंदर ही रहना पसंद करती हैं। दरअसल, इस दिन ज्यादातर पुरुष खुद कान्हा बन और महिलाओं को गोपियां मान उनके साथ शरारत करते हैं। वृंदावन के इस्कॉन मंदिर के नजदीक दुकान लगाने वाले अविनाश बजाज कहते हैं कि साल-दर-साल होली का उत्साह बढ़ता जा रहा है लेकिन एक समय में इसे जिस पवित्रता के साथ मनाया जाता था, वह पवित्रता धीरे-धीरे खत्म हो रही है। बजाज ने बताया कि अब से छह-सात साल पहले हम बांके बिहारी मंदिर में होली खेलने जाने के लिए बहुत उत्साहित रहते थे। लोग आश्वस्त रहते थे कि यह बहुत शुद्ध होली होगी लेकिन यदि आज कोई होली खेलने जाने का निर्णय लेता है तो वह अपने जोखिम पर ऐसा करता है। उन्होंने कहा कि आप नई शर्ट या कुर्ता पहनकर मंदिर में होली खेलने जाते हैं लेकिन जब आप लौटते हैं तो आपके कपड़े फटे होते हैं और पुरुषों व महिलाओं दोनों के ही साथ ऐसा होता है।

उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए गम्भीर चिंता का विषय है। हम अपनी बहनों और यहां तक की मां को भी होली खेलने के लिए बाहर भेजने में असुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि वहां बहुत ही अभद्रताएं होती हैं। हम घर पर ही परिवार के साथ होली का त्योहार मनाना पसंद करते हैं। 15 साल की पायल गुप्ता अपनी दोस्तों के साथ कृष्ण जन्मभूमि मंदिर पहुंची थीं। वह स्वीकार करती हैं कि होली का त्योहार उनके जैसी लड़कियों के लिए खुशी और उत्साह के स्थान पर डर की भावनाएं लेकर आता है। दसवीं की छात्रा गुप्ता कहती हैं कि यहां लड़कियों के साथ बहुत बुरा व्यवहार होता है, बहुत छेड़-छाड़ होती है। लड़के इधर-उधर हाथ लगाते हैं और मौके का फायदा उठाते हैं।

एक अन्य छात्रा माला शर्मा कहती हैं कि होली के समय लड़कियों की स्वतंत्रता छिन जाती है। उन्होंने कहा कि होली के नजदीक आते ही हमें हमारे माता-पिता घर से निकलने की इजाजत नहीं देते। कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में प्रसिद्ध लट्ठमार होली होती है लेकिन हम यहां अपने माता-पिता के साथ ही आ सकते हैं नहीं तो हमारे साथ गलत हरकतें हो सकती हैं।

पुलिस भी खुद को मजबूर बताती है और कहती है कि लोग इस मामले में लिखित शिकायत दर्ज नहीं कराते। दूसरी ओर रंग लगा होने के कारण लोगों को पहचानना मुश्किल होता है। लट्ठमार होली में बरसाना की महिलाएं पुरुषों को लाठियों से मारती हैं और पुरुष अपना बचाव करते हैं। यह होली 14 मार्च को शुरू हो गई है और 16 मार्च तक मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर में जारी रहेगी।

बांके बिहारी मंदिर में पांच दिन तक होली मनाई जाती है। यहां 16 मार्च को एकादशी के दिन इसकी शुरुआत होगी और 20 मार्च को दोपहर दो बजे तक होली खेली जाएगी।

होली हमारे देश का एक परंपरागत त्यौहार है जो उल्लास से मनाया जाता रहा है। यह अलग बात है कि इसे मनाने का ढंग अब लोगों का अलग अलग हो गया है। कोई रंग खेलने मित्रों के घर पर जाता है तो कोई घर पर ही बैठकर खापीकर मनोरंजन करते हुए समय बिताता है। इसका मुख्य कारण यह है कि जब तक हमारे देश में संचार और प्रचार क्रांति नहीं हुई थी तब तक इस त्यौहार को मस्ती के भाव से मनाया जरूर जाता था पर अनेक लोगों ने इस अवसर पर दूसरे को अपमानित और बदनाम करने के लिये भी अपना प्रयास कर दिखाया। केवल शब्दिक नहीं बल्कि सचमुच में नाली से कीचड़ उठाकर फैंकने की भी घटनायें हुईं। अनेक लोगों ने तो इस अवसर पर अपने दुश्मन पर तेजाब वगैरह डालकर उनको इतनी हानि पहुंचाई कि उसे देख सुनकर लोगों का मन ही इस त्यौहार से वितृष्णा से भर गया। तब होली उल्लास कम चिंता का विषय बनती जा रही थी।

शराब पीकर हुड़दंग करने वालों ने लंबे समय तक शहरों में आतंक का वातावरण भी निर्मित किया। समय के साथ सरकारें भी चेतीं और जब कानून का डंडा चला तो फिर हुडदंगबाजों की हालत भी खराब हुई। हर बरस सरकारें और प्रशासन होली पर बहुत सतर्कता बरतता है। इस बीच हुआ यह कि शहरी क्षेत्रों में अनेक लोग होली से बाहर निकलने से कतराने लगे। एक तरह से यह उनकी आदत बन गयी। अब तो ऐसे अनेक लोग हैं जो इस त्यौहार को घर पर बैठकर ही बिताते हैं।

जब सरकारों का ध्यान इस तरफ ध्यान नहीं था और पुलिस प्रशासन इसे सामान्य त्यौहारों की तरह ही लेता था तब हुड़दंगी राह चलते हुए किसी भी आदमी को नाली में पटक देते। उस पर कीचड़ उछालते। शहरों में तो यह संभव ही नहीं था कि कोई पुरुष अपने घर की स्त्री को साथ ले जाने की सोचे। जब पूरे देश में होली के अवसर पर सुरक्षा व्यवस्था का प्रचनल शुरु हुआ तब ऐसी घटनायें कम हो गयी हैं। इधर टीवी, वीडियो, कंप्यूटर तथा अन्य भौतिक साधनों की प्रचुरता ने लोगों को दायरे में कैद कर दिया और अब घर से बाहर जाकर होली खेलने वालों की संख्या कम ही हो गयी है। अब तो यह स्थिति है कि कोई भी आदमी शायद ही अनजाने आदमी पर रंग डालता हो। फिर महंगाई और रंगों की मिलावट ने भी इसका मजा बिगाड़ा।

महंगाई की बात पर याद आया। आज सुबह एक मित्र के घर जाना हुआ। उसी समय उसके मोहल्ले में होली जलाने के चंदा मांगने वाले कुछ युवक आये। हमने मित्र से हाथ मिलाया और अंदर चले गये। उधर उनकी पत्नी पचास रुपये लेकर आयी और लड़कों को सौंपते हुए बोली-‘इससे ज्यादा मत मांगना।’

एक युवक ने कहा-‘नहीं, हमें अब सौ रुपये चाहिये। महंगाई बढ़ गयी है।’

मित्र की पत्नी ने कहा-‘अरे वाह! तुम्हारे लिये महंगाई बढ़ी है और हमारे लिये क्या कम हो गयी? इससे ज्यादा नहीं दूंगी।’

लड़के धनिया, चीनी, आलू, और प्याज के भाव बताकर चंदे की राशि बढ़ाकर देने की मांग करने लगे।

मित्र ने अपनी पत्नी से कहा-‘दे दो सौ रुपया, नहीं तो यह बहुत सारी चीजों के दाम बताने लगेंगे। उनको सुनने से अच्छा है इनकी बात मान लो।’

गृहस्वामिनी ने सौ रुपये दे दिये। युवकों ने जाते हुए कहा-‘अंकल और अंाटी, आप रात को जरूर आईये। यह मोहल्ले की होली है, चंदा देने से ही काम नहीं चलेगा। आना भी जरूर है।’

मित्र ने बताया कि किसी समय उन्होंने ही स्वयं इस होली की शुरुआत की थी। उस समय लड़कों के बाप स्वयं चंदा देकर होली का आयोजन करते थे अब यह जिम्मेदारी लड़कों पर है।’

कहने का अभिप्राय यह है कि इस सामूहिक त्यौहार को सामूहिकता से मनाने की एक बेहतर परंपरा जारी है। जबकि पहले जोर जबरदस्ती सामान उठाकर ले जाकर या चंदा ऐंठकर होली मनाने का गंदा प्रचलन अब बिदा हो गया है। जहां नहीं हुआ वह उसे रोकना चाहिये। सच बात तो यह है कि अनेक बेवकूफ लोगों ने अपने कुकृत्यों से इसे बदनाम कर दिया। यह खुशी की बात है कि समय के साथ अब उल्लास और शांति से यह त्यौहार मनाया जाता है। इंडिया हल्ला बोल की तरफ से सभी को होली की हार्दिक सुभकामनाएँ .

इंडिया हल्ला बोल

 

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