एक घने जंगल के पास से एक सड़क गुजर रही थी। उसके किनारे एक ज्ञानी गुरु अपने चेले के साथ एक बोर्ड लगाकर बैठे हुए थे। इस बोर्ड पर लिखा था, “ठहरिये… आपका अंत निकट है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, रुकिए! हम आपका बहुमूल्य जीवन बचा सकते हैं।”
एक कार फर्राटा भरते हुए वहां से गुजरी। चेले ने ड्राइवर को बोर्ड पढ़ने के लिए इशारा किया। ड्राइवर ने बोर्ड की तरफ देखा और फिर भद्दी सी गाली देकर चेले से यह कहता हुआ निकल गया, “तुम लोग इस जंगल में भी धंधा कर रहे हो। शर्म आनी चाहिए।”
चेले ने असहाय नज़रों से गुरुजी की ओर देखा। गुरुजी बोले, “जैसे प्रभु की इच्छाए।”
कुछ ही पल बाद कार के ब्रेकों के चीखने की आवाज आई और एक जोरदार धमाका हुआ।
थोड़ी देर बाद एक मिनी-ट्रक निकला। उसका ड्राइवर भी चेले को दुत्कारते हुए बिना रुके आगे चला गया। कुछ ही पल बाद फिर ब्रेकों के चीखने की आवाज़ और फिर धड़ाम।
गुरुजी फिर बोले, “जैसी प्रभु की इच्छा।”
अब चेले से रहा नहीं गया और वह बोला, “गुरुजी, प्रभु की इच्छा तो ठीक है, पर कैसा रहे यदि हम इस बोर्ड पर सीधे-सीधे लिख दें कि आगे पुलिया टूटी हुई है।”