एक खुफिया एजेंसी में एक उच्च पद हेतु भर्ती की प्रक्रिया चल रही थी। अंतिम दौर में केवल तीन उम्मीदवार बचे थे जिनमें से किसी एक का चयन किया जाना था। इनमें दो पुरुष थे और एक महिला।
पहले आदमी को एक कमरे में ले जाकर परीक्षक ने कहा, “हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि तुम हर हाल में हमारे निर्देशों का पालन करोगे, चाहे कुछ भी हो जाए।”
फिर उसने उसके हाथ में एक बंदूक थमा दी और दूसरे कमरे की ओर इशारा करते हुये कहा, “उस कमरे में तुम्हारी पत्नी बैठी है। जाओ और उसे गोली मार दो।”
“मैं अपनी पत्नी को गोली नहीं मार सकता,” आदमी ने कहा।
“तो फिर तुम हमारे किसी काम के नहीं हो। तुम जा सकते हो,” परीक्षक ने कहा।
फिर दूसरे आदमी को बुलाया गया। परीक्षक ने उसके हाथ में भी एक बंदूक पकड़ाई और दूसरे कमरे की ओर इशारा करते हुये कहा, “उस कमरे में तुम्हारी पत्नी बैठी है। जाओ और उसे गोली मार दो।”
आदमी उस कमरे में गया और पांच मिनट बाद वापस आ गया। ” मैं अपनी पत्नी को गोली नहीं मार सका। मुझे माफ कर दीजिए।”
“तो फिर तुम भी हमारे किसी काम के नहीं हो। तुम जा सकते हो,” परीक्षक ने उससे कहा।
अब अंतिम उम्मीदवार के रूप में केवल महिला बची थी।
उन्होंने उसे भी बंदूक पकड़ाई और उसी कमरे की तरफ इशारा करते हुये कहा, “उस कमरे में तुम्हारा पति बैठा है। जाओ और जाकर उसे गोली से उड़ा दो।”
महिला ने बंदूक ली और कमरे के अंदर चली गई।
कमरे के अंदर घुसते ही फायरिंग की आवाजें आने लगीं। लगभग 11 राउंड फायर के बाद कमरे से चीख पुकार, उठा पटक की आवाजें आनी शुरू हो गईं।
यह क्रम लगभग बीस मिनटों तक चला। इसके बाद खामोशी छा गई।
फिर पांच मिनट बाद कमरे का दरवाजा खुला और माथे से पसीना पोंछते हुए महिला बाहर आई। वह बोली, “तुम लोगों ने मुझे बताया नहीं था कि बंदूक में कारतूस नकली हैं। मजबूरन मुझे उसे पीट-पीटकर मारना पड़ा।”