जो महिलाएं दफ्तर जा रही हैं या बाहर काम कर रही हैं, उन्हीं को तनाव है, ऐसा नहीं है।घर पर रहते हुए अक्सर हमारे पास जो खाली समय होता है, उसमें हम ज्यादा तनाव अर्जित कर लेते हैं और पता भी नहीं चलता। उसमें थोड़ी मदद तो टीवी भी कर ही देता है। जिनके पास थोड़ा काम है, फिर भी वे अपने मन को थोड़ा बहुत संभाल लेते हैं। लेकिन जो महिलाएं घर पर रहती हैं, वे ज्यादा तनाव में रहती हैं।गांव-गांव में मैंने कई कार्यक्रम किए हैं, वहां मैंने महिलाओं के साथ ज्यादा काम किया है। इस दौरान मैंने देखा है कि महिलाएं जो घर पर होती हैं, वे डिप्रेशन की ज्यादा शिकार हैं। जिंदगी के प्रति उनके अंदर एक अजीब तरह की उदासीनता है।
उनकी जिंदगी में कुछ नयापन नहीं रहता, सिर्फ इसलिए कि उनके अंदर प्राण ऊर्जा की कमी है आैर यह प्राण ऊर्जा सकारात्मक सोच से ही जागृत होती है। योग या ध्यान से हम लोग आसानी से इस ऊर्जा को जागृत कर सकते हैं। ऐसी महिलाओं के लिए बस मेरा एक ही संदेश होता है कि वे अपने खाली समय का सदुपयोग सेहत के लिए करें।योग या ध्यान से खुद को रिचार्ज करें। रोजाना 30 मिनट का ध्यान भी वे अगर सही ढंग से कर पाएं, तो यह आपको इतनी शक्ति से भर देगा कि आप सकारात्मक तरीके से पूरे दिन का निर्वाह कर पाएंगी। इतनी शक्ति है आधे घंटे के ध्यान में।
दूसरों को भी करें प्रेरित
कई बार चाहकर भी हम योग और ध्यान को नियमित नहीं कर पाते हैं। अकेले होने पर कई बार हो जाता है कि हम लोग वापस अपने आलस्य में पड़ जाते हैं या किसी दूसरी उलझन में पड़ जाते हैं।इस दुविधा को दूर करने के लिए जरूरी है सत्संग। सत्संग यानी दो-तीन लोगों का संघ। यदि दो लोग किसी एक उद्देश्य के लिए साथ में हो जाएं, तो संघ बन जाता है। दो-तीन लोग जो समान रुचि या सोच के हों, वे एक-दूसरे की ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करते हैं।
कहते भी हैं अभी कलियुग में सत्संग की और संघ की ही सबसे ज्यादा शक्ति है। अगर हम लोग ऐसा कर पाएं, एक-दो लोग साथ में जुड़कर इस मार्ग पर चलें, तो वे एक-दूसरे का उत्साह बढ़ाए रख सकते हैं। ध्यान को नियमित करने का यह बहुत अच्छा तरीका हो सकता है।वैसे भी जब हम किसी दूसरे के लिए कुछ करने की बात करते हैं, तो हमारी कमिटमेंट बढ़ जाती है। ऐसे में अगर हम जिम्मेदारी ले लें कि घर के 2-3 लोगों, दोस्त या पड़ोस की किसी महिला को साथ में बैठाकर रोजाना योग कराना है, तो फिर यह सिलसिला चल पड़ता है।
इसके बाद आपका लय नियमित हो जाता है, इसे आप डेली रूटीन में शामिल कर लेते हैं। लेकिन कोई भी योग या ध्यान शुरू करने से पहले किसी योग्य गुरु से इसकी ट्रेनिंग भी जरूरी है, तभी आप इसका सही लाभ उठा पाएंगी। हम जितना जल्दी इसे शुरू करें, उतना ही हमारे लिए अच्छा है। बुढ़ापे का इंतजार बिल्कुल भी न करें।
बच्चों को भी करें प्रेरित
बच्चों को भी योग का हिस्सा बना सकती हैं। आर्ट ऑफ लिविंग में बच्चों के लिए अलग से कई कोर्स कराए जाते हैं। यहां आठ वर्ष की उम्र से ही बच्चों को योग सिखाना शुरू कर देते हैं। मैं बहुत से ऐसे लोगों को जानती हूं, जो खुद तो योग करते ही हैं, अपने साथ बच्चों को भी योग की ट्रेनिंग देते हैं। उनको भी सुबह-सुबह योग कराते हैं, इससे उनमें एकाग्रता आती है। योग बच्चों में जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करता है, शरीर, मन और आत्मा को एकीकृत करता है।
बच्चे तो स्वभाव से ही योगी होते हैं, उसके लिए योग सीखना और भी आसान है। बच्चों में प्राण ऊर्जा ज्यादा होती है, लेकिन वे इसका सही ढंग से उपयोग नहीं कर पाते हैं। आजकल खेलने के मैदान तो रहे नहीं, ऐसे में सास-बहू की साजिश और सखियों संग चुगली, जैसी गॉसिप भले ही ज्यादातर महिलाओं को लुभाती हो, लेकिन इससे सिर्फ तनाव ही मिलता है।