What is the truth about Aghori Sadhus । जानें कापालिक साधू के बारें में जो हड्डियों में खाते और पीते हैं

KAPALIK-SADHU

What is the truth about Aghori Sadhus : भारत में एक से एक प्रकार के साधू मिलते हैं बहुत से नागा है, कुछ दिगम्बर होते हैं तो कुछ तो हट योगी होते हैं, भारतीय संस्कृति इन्हीं साधुओं द्वारा पुरे विश्व में जानी जाती है। आज हम बात कर रहे हैं कापालिक साधुओं की जो इंसान की हड्डी में खाना औऱ पीना पसंद करते हैं। यह दिखने में बहुत डरावने होते हैं। आईये जानते हैं।अगर कोई आपको इंसान की खोपड़ी में भोजन परोसे या पानी पिलाए तो क्या आप इसे ग्रहण कर सकेंगे। आपके लिए ये सोचना भी कितना दुष्कर हो सकता है, लेकिन कापालिक संप्रदाय के लोग इंसान की खोपड़ी में ही भोजन करते और पानी पीते हैं।

तंत्र शास्त्र के अनुसार कापालिक संप्रदाय के लोग शैव संप्रदाय के अनुयायी होते हैं। क्योंकि ये लोग मानव खोपडिय़ों (कपाल) के माध्यम से खाते-पीते हैं, इसीलिए इन्हें ‘कापालिक’ कहा जाता है। प्राचीन समय में कापालिक साधना को विलास तथा वैभव का रूप मानकर कई साधक इसमें शामिल हुए। इस तरह इस मार्ग को भोग मार्ग का ही एक विकृत रूप बना दिया गया। मूल अर्थों में कापालिकों की चक्र साधना को भोग विलास तथा काम पिपासा शांत करने का साधन बना दिया गया। इस प्रकार इस मार्ग को घृणा भाव से देखा जाने लगा।

जो सही अर्थों मे कापालिक थे, उन्होंने अलग-अलग हो कर व्यक्तिगत साधनाएं शुरू कर दीं। आदि शंकराचार्य ने कापालिक संप्रदाय में अनैतिक आचरण का विरोध किया, जिससे इस संप्रदाय का एक बहुत बड़ा हिस्सा नेपाल के सीमावर्ती इलाके में तथा तिब्बत मे चला गया। यह संप्रदाय तिब्बत में लगातार गतिशील रहा, जिससे की बौद्ध कापालिक साधना के रूप मे यह संप्रदाय जीवित रह सका। इतिहासकार यह मानते हैं कि कापालिक पंथ से शैव शाक्त कौल मार्ग का प्रचलन हुआ। इस संप्रदाय से संबंधित साधनाएं अत्यधिक महत्वपूर्ण रही हैं।

कापालिक चक्र में मुख्य साधक ‘भैरव’ तथा साधिका को ‘त्रिपुर सुंदरी’ कहा जाता है तथा काम शक्ति के विभिन्न साधन से इनमें असीम शक्तियां आ जाती हैं। फल की इच्छा मात्र से अपने शारीरिक अवयवों पर नियंत्रण रखना या किसी भी प्रकार के निर्माण तथा विनाश करने की बेजोड़ शक्ति इस मार्ग से प्राप्त की जा सकती है।इस मार्ग में कापालिक अपनी भैरवी साधिका को पत्नी के रूप में भी स्वीकार कर सकता था।

इनके मठ जीर्णशीर्ण अवस्था मे उत्तरी पूर्व राज्यों में आज भी देखे जाते हैं। यामुन मुनि के आगम प्रामाण्य, शिवपुराण तथा आगम पुराण में विभिन्न तांत्रिक संप्रदायों के भेद दिखाए गए हैं। वाचस्पति मिश्र ने चार माहेश्वर संप्रदायों के नाम लिये हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि श्रीहर्ष ने नैषध में समसिद्धान्त नाम से जिसका उल्लेख किया है, वह कापालिक संप्रदाय ही है।

कापालिक साधनाओं में महाकाली, भैरव, चांडाली, चामुंडा, शिव तथा त्रिपुरासुंदरी जैसे देवी-देवताओं की साधना होती है। पहले के समय में मंत्र मात्र से मुख्य कापालिक साथी कापालिकों की काम शक्ति को न्यूनता तथा उद्वेग देते थे, जिससे योग्य मापदंड में यह साधना पूरी होती थी। इस प्रकार यह अद्भुत मार्ग लुप्त होते हुए भी गुप्त रूप से सुरक्षित है। विभिन्न तांत्रिक मठों मे आज भी गुप्त रूप से कापालिक अपनी तंत्र साधनाएं करते हैं।

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