में डाल दिया था। क्यों? इसके लिए पढ़े मामा शकुनि थे कौरवों के दुश्मन नामक लेख।
वयोवृद्ध और ज्ञानी होने के बावजूद धृतराष्ट्र के मुंह से कभी न्यायसंगत बात नहीं निकली। पुत्रमोह में उन्होंने कभी गांधारी की न्यायोचित बात पर ध्यान नहीं दिया। गांधारी के अलावा संजय भी उनको न्यायोचित बातों से अवगत कराकर राज्य और धर्म के हितों की बात बताता था, लेकिन वे संजय की बातों को नहीं मानते थे। वे हमेशा ही शकुनि और दुर्योधन की बातों को ही सच मानते थे। वे जानते थे कि यह अधर्म और अन्याय कर रहे हैं फिर भी वे पुत्र का ही साथ देते थे। अधर्म का साथ देने वाला कैसे नहीं खलनायक हो सकता है?
तीसरा खलनायक…
दुर्योधन : दुर्योधन की जिद, अहंकार और लालच ने लोगों को युद्घ की आग में झोंक दिया था इसलिए दुर्योधन को महाभारत का खलनायक कहा जाता है। महाभारत की कथा में ऐसा प्रसंग भी आया है कि दुर्योधन ने काम-पीड़ित होकर कुंवारी कन्याओं का अपहरण किया था।
द्यूतक्रीड़ा में पांडवों के हार जाने पर जब दुर्योधन भरी सभा में द्रौपदी का का अपमान कर रहा था, तब गांधारी ने भी इसका विरोध किया था फिर भी दुर्योधन नहीं माना था। यह आचरण धर्म-विरुद्ध ही तो था। जब दुर्योधन को लगा कि अब तो युद्ध होने वाला है तो वह महाभारत युद्घ के अंतिम समय में अपनी माता के समक्ष नग्न खड़ा होने के लिए भी तैयार हो गया।
महाभारत में दुर्योधन के अनाचार और अत्याचार के किस्से भरे पड़े हैं। पांडवों को बिना किसी अपराध के उसने ही तो जलाकर मारने की योजना को मंजूरी दी थी।
चौथा खलनायक…
अश्वत्थामा : माना जाता है कि अश्वत्थामा इस युद्ध का सबसे बड़ा खलनायक थे, क्योंकि उनके ही अप्रत्यक्ष संचालन में युद्ध चल रहा था। युद्ध में सबसे शक्तिशाली वही एकमात्र योद्धा थे। गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा युद्ध की संपूर्ण कलाओं के ज्ञाता थे। उन्हें संपूर्ण वेदों और धर्मशास्त्रों का ज्ञान था। द्रोण ने अपने शिष्यों को हर तरह की शिक्षा दी थी लेकिन कुछ ऐसी विद्याएं और शिक्षाएं थीं, जो सिर्फ अश्वत्थामा ही जानते थे।
अश्वत्थामा महाभारत युद्ध में कौरव-पक्ष के एक सेनापति थे। उन्होंने भीम-पुत्र घटोत्कच को परास्त किया तथा घटोत्कच पुत्र अंजनपर्वा का वध किया। उसके अतिरिक्त द्रुपदकुमार, शत्रुंजय, बलानीक, जयानीक, जयाश्व तथा राजा श्रुताहु को भी मार डाला था। उन्होंने कुंतीभोज के 10 पुत्रों का वध किया।
जब पिता-पुत्र की जोड़ी (द्रोण-अश्वत्थामा) से महाभारत युद्ध में पांडवों की सेना में भय व्याप्त हो गया था और सेना तितर-बितर हो गई थी, तब पांडवों की सेना की हार देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छलनीति का सहारा लेने को कहा, लेकिन युधिष्ठिर इसके लिए तैयार नहीं हुए। सभी के कहने पर युधिष्ठिर माने।
इस योजना के तहत युद्धभूमि पर यह बात फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’। जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा के मारे जाने की सत्यता जानना चाही, क्योंकि द्रोण जानते थे कि युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलेंगे। तो युधिष्ठिर ने जवाब दिया- ‘हां, अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।’
जब युधिष्ठिर के मुख से ‘हाथी’ शब्द निकला, तब श्रीकृष्ण ने उसी समय जोर से शंखनाद कर दिया जिसके शोर से गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द नहीं सुन पाए और वे अपने प्रिय पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार सुनकर हताश हो गए और उन्होंने अपने शस्त्र त्याग दिए और युद्धभूमि में आंखें बंद कर शोक अवस्था में भूमि पर बैठ गए।
गुरु द्रोणाचार्य को इस अवस्था में देखकर द्रौपदी के भाई द्युष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला। यह युद्ध की सबसे भयंकर घटना थी। इस छल ने अश्वत्थामा को क्रोधित कर दिया।
अश्वत्थामा ने द्रोणाचार्य वध के पश्चात अपने पिता की निर्मम हत्या का बदला लेने के लिए पांडवों पर नारायण अस्त्र का प्रयोग किया जिसके चलते पांडवों की सारी सेना मारी जाती है। कृष्ण ने पांडवों से कहा कि तुम तुरंत ही रथ से उतरकर इस नारायणास्त्र की शरण में चले जाओ, यही बचने का एकमात्र उपाय है। सभी पांडव भूमि पर घुटने टेककर हाथ जोड़कर बैठ जाते हैं। नारायण अस्त्र का प्रतिशोध नहीं करने से सभी बच जाते हैं।
यह युद्ध का अंतिम दौर चल रहा था। दुर्योधन की जान संकट में पड़ गई थी। वह भीम से गदा युद्ध हार गया था। दुर्योधन के हारते ही पांडवों की जीत पक्की हो गई थी। सभी पांडव खेमे के लोग जीत की खुशी मना रहे थे। अश्वत्थामा दुर्योधन की यह हालत देखकर और दुखी हो जाता है।
एक उल्लू द्वारा रात्रि को कौवे पर आक्रमण करने एक उल्लू उन सभी को मार देता है। यह घटना देखकर अश्वत्थामा के मन में भी यही विचार आता है और वह घोर कालरात्रि में कृपाचार्य तथा कृतवर्मा की सहायता से पांडवों के शिविर में पहुंचकर सोते हुए पांडवों के 5 पुत्रों को पांडव समझकर उनका सिर काट देता है। इस घटना से धृष्टद्युम्न जाग जाता है तो अश्वत्थामा उसका भी वध कर देता है।
अश्वत्थामा के इस कुकर्म की सभी निंदा करते हैं। अपने पुत्रों की हत्या से दुखी द्रौपदी विलाप करने लगती है। उसके विलाप को सुनकर अर्जुन उस नीच-कर्म हत्यारे ब्राह्मण पुत्र अश्वत्थामा के सिर को काट डालने की प्रतिज्ञा लेते हैं। अर्जुन की प्रतिज्ञा सुन अश्वत्थामा भाग निकलता है, तब श्रीकृष्ण को सारथी बनाकर एवं अपना गाण्डीव-धनुष लेकर अर्जुन उसका पीछा करता है। अश्वत्थामा को कहीं भी सुरक्षा नहीं मिली तो भय के कारण वह अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर देता है।
मजबूरी में अर्जुन को भी ब्रह्मास्त्र चलाना पड़ता है। ऋषियों की प्रार्थना पर अर्जुन तो अपना अस्त्र वापस ले लेता है लेकिन अश्वत्थामा अपना ब्रह्मास्त्र अभिमन्यु की विधवा उत्तरा की कोख की तरफ मोड़ देता है। कृष्ण अपनी शक्ति से उत्तरा के गर्भ को बचा लेते हैं।
अंत में श्रीकृष्ण बोलते हैं, ‘हे अर्जुन! धर्मात्मा, सोए हुए, असावधान, मतवाले, पागल, अज्ञानी, रथहीन, स्त्री तथा बालक को मारना धर्म के अनुसार वर्जित है। इसने धर्म के विरुद्ध आचरण किया है, सोए हुए निरपराध बालकों की हत्या की है। जीवित रहेगा तो पुनः पाप करेगा अतः तत्काल इसका वध करके और इसका कटा हुआ सिर द्रौपदी के सामने रखकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।‘
श्रीकृष्ण के इन वचनों को सुनने के बाद भी अर्जुन को अपने गुरुपुत्र पर दया आ गई और उन्होंने अश्वत्थामा को जीवित ही शिविर में ले जाकर द्रौपदी के समक्ष खड़ा कर दिया। पशु की तरह बंधे हुए गुरुपुत्र को देखकर द्रौपदी ने कहा, ‘हे आर्यपुत्र! ये गुरुपुत्र तथा ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण सदा पूजनीय होता है और उसकी हत्या करना पाप है। आपने इनके