जानें किन सुन्दर स्त्रियों की वजह से हुआ था महाभारत

1. सत्यवती : महाभारत की शुरुआत राजा शांतनु से होती है। शांतनु को गंगा से एक वीर और देवतुल्य संतान मिली थी, लेकिन शांतनु ने उस संतान की इच्छा या अनिच्छा का ध्यान रखे बगैर अपनी इच्छाओं को ज्यादा महत्व दिया।कहते हैं कि शांतनु भोग-विलासी राजा था, क्योंकि उनको राज्य से ज्यादा अपने कुल की वृद्धि की चिंता ज्यादा रहती थी। गंगा के चले जाने के बाद उनका जीवन जब अकेलेपन में बीतने लगा, तब एक दिन नदी के तट पर वे घूम रहे थे, तो उन्होंने एक निषाद कन्या को देखा। उसे देखकर वे मोहित हो गए। उन्होंने उसके साथ विवाह करने की ठानी। वे उस कन्या के पिता के पास गए। कन्या का नाम था सत्यवती।इस पर धीवर (कन्या के पिता) ने कहा, ‘राजन्! मुझे अपनी कन्या का विवाह आपके साथ करने में कोई आपत्ति नहीं है, किंतु मैं चाहता हूं कि मेरी कन्या के गर्भ से उत्पन्न पुत्र को ही आप अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाएं, तो ही यह विवाह संभव हो पाएगा।’ यह बात सुनकर शांतनु महल लौट आए और उदास तथा चुप–चुप रहने लगे।महाराज की इस दशा को देखकर उनके पुत्र देवव्रत (भीष्म) को चिंता हुई। जब उन्हें मंत्रियों द्वारा पिता की इस प्रकार की दशा होने का कारण पता चला तो वे निषाद के घर जा पहुंचे और उन्होंने निषाद से कहा, ‘हे निषाद! आप सहर्ष अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह मेरे पिता शांतनु के साथ कर दें। मैं आपको वचन देता हूं कि आपकी पुत्री के गर्भ से जो बालक जन्म लेगा वही राज्य का उत्तराधिकारी होगा। कालांतर में मेरी कोई संतान आपकी पुत्री के संतान का अधिकार छीन न पाए इस कारण से मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं आजन्म अविवाहित रहूंगा।’

उनकी इस प्रतिज्ञा को सुनकर निषाद ने हाथ जोड़कर कहा, ‘हे देवव्रत! आपकी यह प्रतिज्ञा अभूतपूर्व है।’ इतना कहकर निषाद ने तत्काल अपनी पुत्री सत्यवती को देवव्रत तथा उनके मंत्रियों के साथ हस्तिनापुर भेज दिया।

परिणाम : मित्रों आप ही सोचिए, यदि शांतनु सत्यवती को न चाहते तो कुरु वंश का भाग्य कुछ और ही होता। इस राजा ने एक स्त्री के लिए अपने पुत्र के जीवन को नष्ट कर दिया। इससे पता चलता है कि शांतनु एक सामान्य राजा था। उसने अपने राज्य तथा पुत्र को प्राथमिकता न देकर अपनी भोगवृत्ति को प्राथमिकता दी। तो यह कहना उचित होगा कि सत्यवती ही एक प्रमुख कारण थी जिसके चलते हस्तिनापुर की गद्दी से कुरुवंश नष्ट हो गया। यदि भीष्म सौगंध नहीं खाते तो वेदव्यास के 3 पुत्र पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर हस्तिनापुर के शासक नहीं होते या यह कहें कि उनका जन्म ही नहीं होता। तब इतिहास ही कुछ और होता।

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