Interesting Untold stories of Mahabharata : महाभारत की कहानियाँ हम बचपन से सुनते आ रहे हैं, टेलीविज़न पर देखते आ रहे है फिर भी हम सब महाभारत के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते है क्योकि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत बहुत ही बड़ा ग्रंथ है, इसमें एक लाख श्लोक है। आज हम आपको महाभारत की कुछ ऐसी ही कहानियां पढ़ाएंगे जो आपने शायद पहले कभी नहीं पढ़ी होगी। तो आइये शुरुआत करते है मामा शकुनि से।
हम सब मानते है की शकुनि कौरवों का सबसे बड़ा हितैषी था जबकि है इसका बिलकुल विपरीत। शकुनि ही कौरवों के विनाश का सबसे बड़ा कारण था, उसने ही कौरवों का वंश समाप्त करने के लिए महाभारत के युद्ध की पृष्टभूमि तैयार की थी। तो जानते हैं आखिर उसने यह क्यों किया??
शकुनि ही थे कौरवों के विनाश का कारण :- ध्रतराष्ट्र का विवाह गांधार देश की गांधारी के साथ हुआ था। गंधारी की कुंडली मैं दोष होने की वजह से एक साधु के कहे अनुसार उसका विवाह पहले एक बकरे के साथ किया गया था। बाद मैं उस बकरे की बलि दे दी गयी थी। यह बात गांधारी के विवाह के समय छुपाई गयी थी. जब ध्रतराष्ट्र को इस बात का पता चला तो उसने गांधार नरेश सुबाला और उसके 100 पुत्रों को कारावास मैं डाल दिया और काफी यातनाएं दी।
एक एक करके सुबाला के सभी पुत्र मरने लगे। उन्हैं खाने के लिये सिर्फ मुट्ठी भर चावल दिये जाते थे। सुबाला ने अपने सबसे छोटे बेटे शकुनि को प्रतिशोध के लिये तैयार किया। सब लोग अपने हिस्से के चावल शकुनि को देते थे ताकि वह जीवित रह कर कौरवों का नाश कर सके। मृत्यु से पहले सुबाला ने ध्रतराष्ट्र से शकुनि को छोड़ने की बिनती की जो ध्रतराष्ट्र ने मान ली।
सुबाला ने शकुनि को अपनी रीढ़ की हड्डी क पासे बनाने के लिये कहा, वही पासे कौरव वंश के नाश का कारण बने।शकुनि ने हस्तिनापुर मैं सबका विश्वास जीता और 100 कौरवों का अभिवावक बना। उसने ना केवल दुर्योधन को युधिष्ठिर के खिलाफ भडकाया बल्कि महाभारत के युद्ध का आधार भी बनाया।
एक श्राप के कारण धृतराष्ट्र जन्मे थे अंधे :- धृतराष्ट्र अपने पिछले जन्म मैं एक बहुत दुष्ट राजा था। एक दिन उसने देखा की नदी मैं एक हंस अपने बच्चों के साथ आराम से विचरण कर रहा हे। उसने आदेश दिया की उस हंस की आँख फोड़ दी जायैं और उसके बच्चों को मार दिया जाये। इसी वजह से अगले जन्म मैं वह अंधा पैदा हुआ और उसके पुत्र भी उसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुये जैसे उस हंस के प्राप्त हुए थे।
एक वरदान के कारण द्रोपदी बनी थी पांच पतियों की पत्नी :- द्रौपदी अपने पिछले जन्म मैं इन्द्र्सेना नाम की ऋषि पत्नी थी। उसके पति संत मौद्गल्य का देहांत जल्दी ही हो गया था। अपनी इच्छाओं की पूर्ति की लिये उसने भगवान शिव से प्रार्थना की। जब शिव उसके सामने प्रकट हुए तो वह घबरा गयी और उसने 5 बार अपने लिए वर मांगा। भगवान शिव ने अगले जन्म मैं उसे पांच पति दिये।
एकलव्य ही बना था द्रोणाचार्ये की मृत्यु का कारण :-एकलव्य देवाश्रवा का पुत्र था। वह जंगल मैं खो गया था और उसको एक निषद हिरण्यधनु ने बचाया था। एकलव्य रुक्मणी स्वंयवर के समय अपने पिता की जान बचाते हुए मारा गया। उसके इस बलिदान से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने उसे वरदान दिया की वह अगले जन्म मैं द्रोणाचर्य से बदला ले पायेगा। अपने अगले जन्म मैं एकलव्य द्रष्टद्युम्न बनके पैदा हुआ और द्रोण की मृत्यु का कारण बना।
पाण्डु की इच्छा अनुसार पांडवो ने खाया था अपने पिता के मृत शरीर को :- पाण्डु ज्ञानी थे। उनकी अंतिम इच्छा थी की उनके पांचो बेटे उनके म्रत शरीर को खायैं ताकि उन्होने जो ज्ञान अर्जित किया वो उनके पुत्रो मैं चला जाये। सिर्फ सहदेव ने पिता की इच्छा का पालन करते हुए उनके मस्तिष्क के तीन हिस्से खाये।
पहले टुकड़े को खाते ही सहदेव को इतिहास का ज्ञान हुआ, दूसरे टुकड़े को खाने पे वर्तमान का और तीसरे टुकड़े को खाते ही भविष्य का। हालांकि ऐसी मान्यता भी है की पांचो पांडवो ने ही मृत शरीर को खाया था पर सबसे ज्यादा हिस्सा सहदेव ने खाया था।
कुरुक्षेत्र में आज भी है मिट्टी अजीब :- कुरुक्षेत्र मैं एक जगह हे, जहां माना जाता हे की महाभारत का युध् हुआ था। उस जगह कुछ 30 किलोमीटर के दायरे में मिट्टी संरचना बहुत अलग हे। वैज्ञानिक समझ नहीं पा रहे की यह कैसे संभव हे क्यूंकि इस तरह की मिट्टी सिर्फ तब हो सकती हे अगर उस जगह पे बहुत ज़्यादा तेज़ गर्मी हो। बहुत से लोगों का मानना हे की लड़ाई की वजह से ही मिट्टी की प्रवर्ती बदली हे।
श्री कृष्ण ने ले लिया था बर्बरीक का शीश दान में :- बर्बरीक भीम का पोता और घटोत्कच का पुत्र था। बर्बरीक को कोई नहीं हरा सकता था क्योंकि उसके पास कामाख्या देवी से प्राप्त हुए तीन तीर थे, जिनसे वह कोई भी युध् जीत सकता था। पर उसने शपथ ली थी की वह सिर्फ कमज़ोर पक्ष के लिये ही लड़ेगा। अब चुकी बर्बरीक जब वहां पहुंचा तब कौरव कमजोर थे इसलिए उसका उनकी तरफ से लड़ना तय था।
जब यह बात श्री कृष्ण को पता चली तो उन्होंने उसका शीश ही दान में मांग लिया। तथा उसे वरदान दिया की तू कलयुग में मेरे नाम से जाना जाएगा। इसी बर्बरीक का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के खाटूश्यामजी में है जहाँ उनकी बाबा श्याम के नाम से पूजा होती है।
हर योद्धा का अलग था शंख :-सभी योधाओं के शंख बहुत शक्तिशाली होते थे। भागवत गीता के एक श्लोक मैं सभी शंखों के नाम हैं। अर्जुन के शंख का नाम देवदत्त था। भीम के शंख का नाम पौंड्रा था, उसकी आवाज़ से कान से सुनना बंद हो जाता था। कृष्णा के शंख का नाम पांचजन्य, युधिष्ठिर के शंख का नाम अनंतविजया, सहदेव के शंख का नाम पुष्पकौ और नकुल के शंख का नाम सुघोशमनी था।
अर्जुन एक बार और गए थे वनवास पर :- एक बार कुछ डाकुओं का पीछा करते हुए अर्जुन गलती से युधिष्ठिर और द्रौपदी के कमरे मैं दाखिल हो गया। अपनी गलती की सज़ा के लिये वह 12 साल के वनवास के लिये निकल गया। उस दौरान अर्जुन ने तीन विवाह किये – चित्रांगदा (मणिपुरा), उलूपी (नागा) और सुभद्रा (कृष्ण की बहन) .
इसी नाग कन्या उलूपी से उसे एक पुत्र हुआ जिसका नाम इरावन (अरावन) था। महाभारत के युद्ध में जब एक बार एक राजकुमार की स्वैच्छिक नर बलि की जरुरत पड़ी तो इरावन ने ही अपनी बलि दी थी। इरावन की तमिलनाडु में एक देवता के रूप में पूजा होती है तथा हिंजड़ों की उनसे शादी होती है।